खाद्य पदार्थ के आसमान छू रहे दाम से पहले ही लोग परेशान थे। अब पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी ने उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया है। यूपी चुनाव खत्म होने के बाद इनके दाम बढ़ने के कयास लगाए जा रहे थे, जो सच होने लगा है। चुनाव खत्म होते होने के महज कुछ ही दिन बादर सोई गैस के दाम बढ़ा दिए गए, तो वहीं पेट्रोल-डीजल के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं। मौजूदा हालत यह है कि देश के कई हिस्सों में ईंधन की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि अब पेट्रोलियम विपणन कंपनियां अपने घाटे की भरपाई कर रही हैं। कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ोतरी के बावजूद 137 दिन पेट्रोल और डीजल की कीमतें नहीं बढ़ाने से भारत की तेल कंपनियों को 19,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सरकार की दलील है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 2008 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है।
इसकी कीमतों में करीब चालीस फीसदी का इजाफा हुआ है। यूक्रेन संकट से कच्चा तेल, पाम आयल और गेहूं के दामों में जबरदस्त उछाल आया है। खैर, विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं में महंगाई मुद्दा न बने, इसके चलते तेल कंपनियों ने सरकार के दबाव में दाम नहीं बढ़ाए थे। सवाल उठना स्वाभाविक है कि चुनाव व सरकार बनने के बीच कीमतें बढ़ाने का यह खेल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनपक्षीय कहा जा सकता है? वैसे महंगाई केवल पेट्रोलियम पदार्थों की ही बढ़ी हो, ऐसा भी नहीं है। पिछले दिनों दूध, सीएनजी की कीमतों में वृद्धि हुई है। महंगाई की चौतरफा मार का सिलसिला यह नहीं खत्म हुई हैं। बल्कि 1 अप्रैल से कई जरूरी दवाओं की कीमतें बढ़ गई हैं। भारत की ड्रग प्राइसिंग अथॉरिटी ने शेड्यूल दवाओं के लिए कीमतों में 10.7 फीसदी की बढ़ोतरी की अनुमति के बाद दवाओं के दाम बढ़ गए हैं। चिंता की बात यह भी है कि कोरोना संकट से उपजे हालात में आय के संकुचन के चलते महंगाई की मार दोहरी नजर आ रही है। कह सकते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभावों का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी नजर आने लगा है।
सरकार अकसर इस सच से मुंह चुरा लेती है, क्योंकि जितना उसका वास्तविक मूल्य होता है, उतने ही कर-शुल्क भी सरकार वसूलती है। इसीलिए बार-बार मांग उठती है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्य में भारी वृद्धि का पूरा बोझ आम उपभोक्ता पर डालने के बजाय सरकार अपने कर-शुल्कों में भी कुछ कमी करे। कुल मिलाकर इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी को उसके सोच में बदलाव लाने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में, क्या सरकार का यह फर्ज नहीं बनता है कि वह जनता को महंगाई से राहत दिलाने की संजीदा कोशिश करे। इसमें कोई शक नहीं कि आम आदमी के लिए महंगाई आज एक बड़ा मुद्दा है। सवाल है कि बढ़ती महंगाई पर लगाम कैसे लगाई जाए? सबसे पहला काम आपूर्ति श्रृंखला को दुरुस्त करने का होना चाहिए। बाजार तक खाद्यान्न की पर्याप्त आमद सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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