सन् 1978 की बात है। उस समय मेरी माता जी ने नाम-शब्द नहीं लिया हुआ था। एक दिन मेरी माता जी ने मुझसे पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की। उसी समय मैं अपनी माता जी के साथ पूजनीय परम पिता जी के दर्शन करने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा के लिए चल पड़ा। हम घर से ही चलते वक्त लेट हो गए। रास्ते में मैंने अपनी माता जी को कहा कि हमें आज सुबह की मजलिस में दर्शन नहीं होंगे क्योंकि हम लेट हो गए हैं।
मेरी माता जी कहने लगीं कि यदि तुम्हारे गुरू पूर्ण हैं तो फिर हमें दर्शन हो ही जाएंगे। उस समय मैंने कहा कि इसमें हमारी ही गलती है। हम ही घर से लेट चले हैं। पूजनीय परम पिता जी तो सही समय पर मजलिस कर तेरावास में चले जाते हैं। मेरी माता जी ने कहा मैं तो तब ही मानूंगी जब आपके सतगुरू हमें जाते ही दर्शन दें। हम सुबह 11 बजे आश्रम के मुख्य द्वार पर पहुंचे। सेवादारों ने हमें बताया कि अभी पिता जी तेरावास में नहीं गए हैं। यह सुनकर हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और हम भागकर दर्शनों के लिए गए तो पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘‘बेटा, आगे से लेट नहीं होना, हम आपका ही इंतजार कर रहे थे।’’
इतना कहकर पूजनीय पिता जी (Miracles of Param Pita ji) आशीर्वाद देते हुए तेरावास में चले गए। वहां पर सेवादारों ने हमें बताया कि आज पिता जी मजलिस की समाप्ति के बाद भी काफी देर तक तेरावास में नहीं गए। यह सुनकर मेरा मन भर आया और सतगुरू के प्रति मेरा विश्वास और भी दृढ़ हो गया। मेरी माता जी की भी शंका दूर हो गई और उसी मासिक सत्संग पर उन्होंने पूजनीय परम पिता जी से नाम-शब्द ले लिया।
प्रेम सागर, मंडी डबवाली (हरियाणा)
‘‘बेटा, अगर पूरी लगन के साथ सुमिरन करो तो ऐसा भी संभव है।’’
तीन प्रेमी सरसा के पास के किसी गांव से तीन दिन से लगातार आश्रम में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज (Miracles of Param Pita ji) के दर्शन करने के लिए आ रहे थे। एक दिन पूजनीय परम पिता जी ने उनको मजलिस में खड़ा करके कहा, ‘‘बेटा, तुम तीन दिन से हर रोेज इक्ट्ठे आते हो, आने-जाने में समय लगाते हो, घर का कोई काम नहीं कर पाते हो और किराया भी प्रतिदिन लगाते हो।
तुम रोजाना न आया करो, हम घर बैठे ही तुम्हें सत्संग का फल दे देंगे।’’ इस पर वे बोले, ‘‘पिता जी हमें सत्संग का फल नहीं चाहिए। अगर आप हमें घर पर ही प्रतिदिन साक्षात् दर्शन दें तो हम यहां नहीं आएंगे।’’ पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘‘बेटा, अगर पूरी लगन के साथ सुमिरन करो तो ऐसा भी संभव है।’’ इस उदाहरण के द्वारा पूजनीय परम पिता जी ने साध-संगत को समझाया कि गुरू के दर्शनों की इतनी तड़प इन्सान को होनी चाहिए, तभी जीवात्मा की शुद्धि होती है।
श्री सुभाष चन्द्र, चंडीगढ़ (हरियाणा)
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