श्रीलंका में वित्तीय संकट इस हद तक पहुंच गया है कि आखिर सरकार को एमरजैंसी का ऐलान करना पड़ा है। भारत ने पड़ोसी देश की सहायता के लिए 40 हजार टन डीजल भेज दिया है और इसी तरह चावल भी भेजने की तैयारी है। भारत लगातार श्रीलंका की सहायता कर रहा है। चाहे यह वित्तीय अस्थिरता है लेकिन भारत के लिए यह चिंताजनक बात है। दरअसल चीन गरीब देशों में अपने पैर पसारने के लिए रणनीति बनाता आ रहा है। भारत को इस स्थिति पर पूरी तरह नजर रखनी होगी। भारत-श्रीलंका के संबंध बहुत ही मजबूत रह चुके हैं। मौजूदा परिस्थितियों में भारत को वित्तीय सहायता देकर मानवता का कर्तव्य निभाने के साथ-साथ हिंद महासागर में अपनी स्थिति को भी मजबूत बनाना होगा। श्रीलंका का हाल भी नेपाल जैसे देशों वाला ही हो रहा है, जहां भी चीन लगातार अपना प्रभाव जमाने की कोशिशें करता आ रहा है।
विकास प्रॉजैक्टों के नाम पर गरीब और विकासशील देश धड़ाधड़ सम्पन्न देशों से कर्ज ले रहे हैं। वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह के लिए चीनी निवेश को श्रीलंका की बर्बादी की शुरूआत माना जा रहा है। यह तथ्य हैं कि जब वित्तीय परिस्थितियां डगमगाएंगी तो राजनीतिक नेतृत्व अस्थिर होंगे। इसकी मिसाल पाकिस्तान भी है। इमरान की जर्जर नीतियों के कारण पाकिस्तान आर्थिक तौर पर बर्बाद हो गया है। इसी कारण ही इमरान की कुर्सी क्या, पूरी पाकिस्तानी संसद ही ढ़ह गई। आगामी चुनावों में इमरान और उनकी पार्टी के लिए अच्छे समय की उम्मीद करना बेहद मुश्किल है। पाकिस्तान में अब तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, वह देश की वित्तीय परिस्थितियां सुधारने की बजाय आतंकवाद और कश्मीर मुद्दे पर ही केन्द्रित होकर रह जाती हैं। श्रीलंका को अंतरराष्टÑीय सरगर्मियों से दूरी बनाकर अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने पर जोर देना चाहिए।
बीते समय में श्रीलंका में हुई राजनीतिक उथल-पुथल ने देश को कमजोर किया है। विश्व की महाशक्तियों की प्रयोगशाला बने इस देश को महज पैसे ही नहीं बल्कि राजनीतिक स्थिरता और सिस्टम की भी आवश्यकता है। देश में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एक अच्छी राजनीतिक संस्कृति का निर्माण करना होगा। लिट्टे की सरगर्मियों के दौरान देश ने बड़ी तबाही का सामना किया है। अमन-शांति और राजनीतिक स्थिरता के बिना विकास असंभव है। वास्तविकता में श्रीलंका को अच्छे मित्र देशों की आवश्यकता है न कि कर्ज के लुभावने जाल बिछाने वाले स्वार्थी देशों की। इसके साथ ही धर्म, नस्ल और संस्कृति के भेदभाव से ऊपर उठना होगा। तामिल और सिंहली का भेदभाव श्रीलंका की बहुत बड़ी समस्या है। श्रीलंकाई राष्टÑ भावना मजबूत करने से देश मजबूत होगा।
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