करके रहमत बेमिसाल, कर दिया मालामाल
दरबारा सिंह पुत्र स्व. श्री हरदम सिंह उर्फ हाथी राम शास्त्री नगर, नई दिल्ली ने बताया कि पहले हम बहुत ज्यादा गरीब थे। जमीन तो हमारे पास तब भी काफी थी लेकिन सारी जमीन बंंजर थी। यदि बरसात अच्छी हो जाती तो कुछ फसल हो जाती। आमतौर पर उन दिनों में सूखा ज्यादा पड़ता था इसलिए फसल न के बराबर ही होती थी। हम उस अभी बच्चे ही थे। एक दिन मेरे बापू जी ने पूजनीय मुर्शिद-ए-कामिल के पवित्र चरण कमलों में अर्ज की कि सांई जी! हमारे परिवार में बहुत ही गरीबी है, दया-मेहर करो जी।
इस पर सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘‘भाई! हम तो राम नाम का डंका बजाते हैं और रूहों को नाम देकर चौरासी की जेल से निकालते हैं।’’ मेरे बापू जी ने फिर अर्ज की कि सांई जी! आपजी से ना मांगें तो फिर किससे मांगें। मेरे बापू जी की पुकार सुनकर शहनशाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘तेरी अर्जी लिखवाएंगे।’’ मेरे बापू जी ग्रामीण और सीधे-साधे स्वभाव के थे। उन्होंने समझा कि आश्रम के किसी जिम्मेवार भाई के पास अर्जी लिखवानी होगी। इसलिए मेरे बापू जी उस समय के एक जिम्मेवार भाई के पास अपना नाम लिखवाने के लिए चले गए। लेकिन उस सेवादार भाई ने अर्जी लिखने से इन्कार करते हुए कहा कि अर्जी लिखने की जरूरत नहीं है। उस जिम्मेवार सेवादार की बात मेरे बापू जी ने बतौर शिकायत पूजनीय शहनशाह जी से कही कि फलां सेवादार मेरी अर्जी नहीं लिखता है जी।
पूजनीय बेपरवाह जी ने पावन वचन फरमाए, ‘‘भाई! तेरी अर्जी तो लिखी गई।’’ पूजनीय शहनशाह जी का सत्संग जहां भी होता मेरे बापू जी जरूर वहां पहुंच जाते। वे पूजनीय शहनशाह जी की पावन हजूरी में एक टांग पर ऊंची छलांग लगाते हुए नाचा करते थे। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने खुश होकर वचन फरमाया,‘‘भाई! ये जंड का हाथी है।’’ शहनशाह जी उसी दिन से उसे ‘हाथी’ कहने लगे और यहां से उनका नाम ‘हाथी राम’ पड़ गया। एक दिन पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज डेरा सच्चा सौदा निर्भयपुर धाम चोरमार में पधारे। वहां शहनशाह जी ने मेरे बापू जी को हुक्म फरमाया, ‘‘अपने साथ एक सत् ब्रह्मचारी सेवादार ले जा, और अपने गांव में डेरे के प्याज बेचकर आओ।’’ अपने मुर्शिद-ए-कामिल के हुक्मानुसार मेरे बापू जी ने प्याजों का टोकरा सिर पर रखकर अपने गांव में घर-घर जाकर, ऊंची आवाज में ‘प्याज ले लो’ ‘प्याज ले लो’ बोलकर प्याज बेचे।
यह देखकर हमारे सगे-सम्बन्धियों, परिवारजनों, भाई-बन्धुओं ने इस बात का बहुत ही मजाक उड़ाया और कहने लगे कि अब यह भूखा मरेगा। समय गुजरता गया और प्यारे सतगुरू जी की दया मेहर से हमारे दिन फिरने लगे। दिन-प्रतिदिन हमारा कारोबार (खेतीबाड़ी का कार्य) अच्छा चलने लगा। हमारे परिवार में और समाज में मान-सम्मान बढ़ा। पहले कोई पूछा भी नहीं करता था लेकिन नाम-शब्द लेने के बाद लोगों में हमारी मान-प्रतिष्ठा बढ़ी। यह देखकर हमारे सगे-संबंधियों ने भी पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से नाम-शब्द ले लिया। इससे प्रभावित होकर गांव के व आसपास के बहुत से लोगों ने नाम-शब्द ले लिया। हमारा कारोबार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला गया तथा हम और तरक्की करने लगे। पूजनीय बेपरवाह जी की दरगाह में हमारी अर्जी मंजूर हो गई। अब न जमीन जायदाद की कमी है और न ही धन की। हमारी सभी भाईयों की दिल्ली में अलग-अलग कोठियां हैं और धन-दौलत आदि किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है।
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