रूस-यूक्रेन के बीच मंगलवार को युद्ध 20वें दिन भी जारी रहा। अब तक हजारों लोगों की मौत, शहरों में मलबे के ढ़ेर और 30 लाख लोगों का बेघर होना दु:खद घटना है। युद्ध में तबाही के अलावा कुछ नहीं हासिल होता। किसी देश के लिए हिंसक हमले से बचाव के लिए हथियारबंद तैयारी आवश्यक है लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध किस आधार पर लड़ा जा रहा है इसका कोई स्पष्ट जवाब रूस के पास भी नहीं। इससे यह साबित होता है कि युद्ध के खातिर ही युद्ध लड़ा जा रहा है। आम तौर पर युद्ध का कारण किसी हमले की साजिश या हमला होने की सूरत में जवाबी कार्यवाही से शुरू होता है लेकिन रूस और यूक्रेन में ऐसे कारण और परिस्थितियां तलाशना कठिन है। दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला भी बेहद कमजोर है। युद्ध के हालातों के चलते अलग-अलग देश अपने नागरिकों को यूक्रेन से निकाल रहे हैं।
वास्तव में आज इतने घातक हथियार बन गए हैं कि पल भर में पूरी दुनिया तबाह करने की क्षमता रखते हैं लेकिन युद्ध समाप्त कर शांति बहाल करने के प्रयास बेहद कमजोर दिख रहे हैं। विश्व की महाशक्तियों में गुटबाजी के कारण कोई भी देश स्पष्ट रूप से पहल करने से गुरेज कर रहा है। कहने को युद्ध रूस और यूक्रेन में हो रहा है लेकिन वास्तव में युद्ध दो गुटों के बीच चल रहा है जो विश्व युद्धों में भी शामिल रह चुके हैं। शक्ति संतुलन के इस युद्ध में दशकों पुराना वैर-विरोध और मुकाबलेबाजी जारी है।
विगत कई दशकों में रूस और अमेरिका की लड़ाई आर्थिक युद्ध में तबदीली हो चुकी थी लेकिन यही आर्थिक युद्ध इतना तूल पकड़ गया कि अब सैन्य युद्ध में तबदील हो गया। संयुक्त राष्ट्र और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों के बावजूद महाशक्तियों के पुराने टकराव का जारी रहना इस बात का संदेश है कि लोकतंत्र, अमन-शांति और खुशहाली की नीतियों के बावजूद विभिन्न देशों के नेताओं में शक्तिशाली बनने, एकाधिकार की होड़ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। इस बात की उम्मीद करना कठिन है कि विश्व के शक्तिशाली देश हथियारों की होड़ को छोड़कर विकास को ही आधुनिक तरक्की का प्रथम मापदंड समझें। रोजी-रोटी, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मामले अभी नजरअंदाज ही रहेंगे।
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