यह बात सन् 1976 की है। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने गांव घुद्दा, जिला भटिंडा में सत्संग फरमाया। सत्संग पंडाल की व्यवस्था के लिए सेवादारों ने एक सत्संगी दुकानदार से बांस के डंडे, रस्से आदि यह कहकर ले गए कि हम आपको सत्संग के बाद सारा सामान वापिस दे देंगे। उसने खुश होते हुए कहा, ह्यह्यकोई बात नहीं, ले जाओ।ह्णह्ण सत्संग की सभी तैयारियां पूरी हो गई। निश्चित समय पर सत्संग का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। सभी सेवादारों ने शामियानें, कनातें, दरियां व स्टेज का सामान संभाल लिया परंतु रस्से व डंडे यह कहकर वहां पर छोड़ दिए कि सुबह संभाल लेंगे क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी। रात को वह सामान वहां से चोरी हो गया। वायदे के अनुसार दुकानदार को सारा सामान वापिस सौंपना था।
सेवादार दुकानदार के पास गए और कहा, ह्यह्यभाई, आपका सामान चोरी हो गया है, इसके बदले जितने पैसे बनते हैं, आप ले सकते हो।ह्णह्ण दुकानदार ने यह कहकर एक बार पैसे लेने से मना कर दिया कि आप एक-दिन और रूक जाओ। क्या पता सामान मिल जाए। यदि नहीं मिला तो बाद में देखेंगे। सभी सेवादारों ने कुछ देर सुमिरन किया और पूजनीय परम पिता जी से अरदास की कि जो व्यक्ति सामान लेकर गया है, उसे सद्बुद्धि दो। उधर जो व्यक्ति सामान चोरी करके ले गया था, उसे सारी रात बैचेनी रही। वह सो नहीं सका। उसने सोचा कि ये संत-महात्मा तो सत्संगों द्वारा लोगों को बुराईयों के बारे में समझाते हैं हालांकि उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं होता। परंतु मैंने यह सामान चोरी करके बहुत ही बुरा किया है। ऐसा सोचकर उस व्यक्ति ने अगले दिन सारा सामान वापिस करने का फैसला कर लिया और सेवादारों के पास आकर बोला, ह्यभाई जी, मुझसे गलती हो गई, मुझे माफ कर देना। मैं अपने मन के अधीन होकर यह बुराई कर बैठा। आप अपना सामान वापिस ले लो। सेवादारों ने अपने मुर्शिद का बहुत धन्यवाद किया और सारा सामान ले जाकर दुकानदार का धन्यवाद सहित वापिस कर दिया।
श्री सोहन सिंह, गांव घुद्दा, भटिंडा पंजाब
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