रेवाड़ी के छात्र ने बताई दर्दभरी आपबीती
रेवाड़ी (सच कहूँ न्यूज)। अंकल! दो दिन के इंतजार के बाद पहले एक फैमिली की गाड़ी में लिफ्ट लेकर रोमानिया बॉर्डर की ओर रवाना हुआ। वहां जाम में फंसने के बाद कड़ाके की ठंड में करीब 70 किलोमीटर तक पैदल चला। इसके बाद इमिग्रेशन के लिए 6 घंटे से अधिक समय तक लाइन में खड़ा रहा। न सर्दी से बचाव के लिए कपड़े मिले हैं और न ही पेट भरने के लिए खाना। (Ukrainians)
मुझे इस बात का डर है कि अब मैं भूख और सर्दी के कारण बेहोश होकर जमीन पर नहीं गिर जाऊं। यह दास्तां है यूक्रेन निकलकर तमाम मुश्किलों का सामना करने वाले रेवाड़ी निवासी छात्र दीक्षित की, जो अपने दोस्त आशुतोष के पिता रेवाड़ी निवासी एडवोकेट सतीश यादव से मंगलवार की रात फोन पर बात कर रहा था। एडवोकेट सतीश यादव ने दीक्षित को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए उसके साथ कभी वाइस, तो कभी वीडियो कॉल के जरिए संपर्क बनाए रखा।
सतीश यादव का बेटा आशुतोष और उसका दोस्त दिक्षित दोनों अभी पौलेंड और हंगरी में एयरलिफ्ट के लिए अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं। एयरपोर्ट तक पहुंचने से पहले के घटनाक्रम की आपबीती रौंगटे खड़े करती है। आशुतोष ने अपना एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करते हुए बताया कि भारतीय दूतावास की ओर से रोमानिया बॉर्डर तक पहुंचने के बाद भारतीयों को सुविधाएं देने के सराहनीय कदम उठाए जा रहे हैं, परंतु यूक्रेन के अंदरूनी इलाकों में भारतीय बच्चों को अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है।
आशुतोष ने बताया कि जिस बेसमेंट में वह ठहरा हुआ था, वहां करीब दो सौ भारतीय बच्चे अभी भी मौजूद हैं। बेसमेंट में यूक्रेन के नागरिक (Ukrainians) हथियारों के साथ प्रवेश करते हैं और भारतीय बच्चों के साथ जमकर मारपीट करते हैं। रोमानिया बॉर्डर की ओर जाते समय भी वहां के लोकल लोग भारतीय बच्चों का रास्ता रोककर खुद पहले निकलने के लिए मारपीट करते हैं।
आशुतोष और दीक्षित से हुई सतीश की बातचीत के अनुसार राजधानी कीव व इसके आसपास के इलाकों में स्थिति तीन यूनिविर्सिटी के विद्यार्थियों को बॉर्डर तक पहुंचने में तमाम विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। यूक्रेन के अंदरूनी इलाकों में भारत सरकार और भारतीय दूतावास दोनों के मदद पहुंचाने के प्रयास विफल साबित हो रहे हैं।
यूक्रेन की सेना के जवान भी भारतीय बच्चों के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहे हैं। रोमानिया बॉर्डर तक पहुंचने वाले बच्चे अपनी जान पर खेलकर ही वहां तक पहुंच पा रहे हैं। जो बच्चे यूक्रेन के अंदरूनी इलाकों में फंसे हुए हैं, उनके लिए अभी भी बॉर्डर तक सुरक्षित पहुंचने की राह आसान नहीं है।
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