पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा एवं मणिपुर-में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं। साफ-सुथरी निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग भी दमखम के साथ सक्रिय है। कोरोना की वजह से इस बार बड़ी-बड़ी रैलियां कम देखने को मिल रही हैं। गनीमत है कि इस बार चुनाव आयोग ने थोड़ी सख्ती दिखायी है, नहीं तो नेता नहीं मानने वाले थे। खैर, चुनाव हैं, तो मुद्दे भी हैं। वायदे हैं, फायदे हैं और हैं बड़े-बड़े सपने। आप रैलियों में कही गई बड़ी बातों के बाद का असर खुद एक बार याद कर देख लीजिये, आपको भी भरोसा हो जायेगा। अब जब चुनाव सपने बेचने का एक बड़ा मेला है, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर के विधानसभा चुनाव में इन राज्यों की महिलाओं और लड़कियों के लिए क्या सपने हैं? हम इन्हें सपना ही कहेंगे, आप मुद्दे समझिये। क्योंकि चुनावी मुद्दे सपने सरीखे ही हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि वह टिकट बंटवारे में महिलाओं को 40 फीसदी का आरक्षण देगी जो उसने दिया भी। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने बाल विवाह निषेध कानून में लड़कियों के विवाह की वैधानिक उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का संशोधन विधेयक प्रस्तावित किया है। गोवा चुनाव की बात करें, तो वहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी महिलाओं को नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण देने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस ने वादा कर गई है कि चुनाव के बाद अगर उसकी सरकार बनती है, तो गोवा में वह ‘गृहलक्ष्मी कार्ड योजना’ शुरू करेगी। इस योजना के तहत गोवा की महिलाओं को प्रत्येक महीने 5000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जायेगी। इस आपाधापी में आम आदमी पार्टी भी पीछे न रहते हुए यह वादा किया है कि यदि उसकी सरकार बनती है, तो गोवा की महिलाओं को हर माह 1000 रुपये की वित्तीय सहायता मिलेगी।
पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने महिलाओं से यही वित्तीय सहायता राशि देने का वादा किया है। अब अगर इन्हीं कुछ सपनों की बात करें, जो महिलाओं के लिये आरक्षित किये गये हैं। अगर इन पांच राज्यों के चुनावी माहौल में महिलाओं और लड़कियों के लिए इतना कुछ ही है, तब साफ-साफ समझ आता है कि हमारी-आपकी औकात क्या है, हम इस पूरे तंत्र में कितनी भागीदारी रखती हैं और इन पार्टियों को हमारी-आपकी कितनी चिंता है। पार्टियों को अब गैस चूल्हा, मुफ्त भत्ता और मां-ममता जैसी योजनाओं से आगे बढ़ना चाहिए। पर लगता है कि 2022 में भी महिलाओं के मुद्दे से जुड़े सपने 1990 के ही हैं या पार्टियां हमें यही सपने दिखाना चाह रही हैं।
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