दो साल से चली आ रही से महामारी से अभी पूरी तरह निजात मिलने की उम्मीद भी नहीं दिखायी दे रही है। पिछले वर्ष जिन छात्रों ने स्नातक कक्षाओं में प्रवेश लिया था, उन्हें कॉलेज कैंपस में पढ़ने का मौका नहीं मिला और अब वे दूसरे वर्ष के छात्र हो गये हैं। दो अकादमिक सत्रों से सामान्य कक्षाएं नहीं चल पा रही हैं। शैक्षणिक संस्थानों के पास शिक्षण के अन्य विकल्प तलाशने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता है। इस दौर में तीन तरह के शिक्षण संस्थान उभरे हैं। सर्वप्रथम जिन संस्थानों के पास डिजिटल ढांचा था, उन्होंने कक्षाओं को आॅनलाइन माध्यम में बदल लिया। दूसरी श्रेणी में तकनीकी रूप से उभरते संस्थान हैं, जिन्होंने आॅनलाइन और आॅफलाइन शिक्षण का एक मिश्रित रूप बनाया है। तीसरी श्रेणी में ऐसे स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं, जो तकनीकी रूप से बहुत पीछे हैं। इन संस्थाओं के नामांकित छात्र ‘डिजिटल असमानता’ के शिकार हैं। इसमें भी लड़कियां और महिलाएं डिजिटल और जेंडर दोनों नजरिये से विषमता की शिकार हैं।
स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक के शिक्षकों पर तकनीक के साथ सामंजस्य बिठाने का दबाव भी है। बिना कंप्यूटर और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर वाले स्कूल के बच्चों के लिए चुनौतियां तो कम होती नहीं दिख रही हैं। जिन स्कूलों में अभी तक शिक्षकों और फर्नीचर की जरूरत पूरी नहीं हुई है, वहां के बच्चे 21वीं शताब्दी में शिक्षा के जरिये अपने लिए कैसा सुनहरा सपना बुनते हैं, यह शोध (और शायद क्षोभ!) का विषय होगा! जिन विश्वविद्यालयों में अभी हाइब्रिड मॉडल का अध्यापन भी शुरू नहीं हुआ, उनको आने वाले दिनों में संसाधनों और छात्रों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। कोरोना काल में तकनीकी कंपनियों के लिए शिक्षा जगत में विशाल बाजार खुल गया है। दुनियाभर में कई कंपनियां शिक्षा को आॅनलाइन करने में लगी हुई हैं क्योंकि यह क्षेत्र लाखों-करोड़ों डॉलर के सालाना व्यापार की संभावना जगाता है। तकनीक के सहारे कंटेंट से लेकर एप बनानेवाली कंपनियां शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए अनुबंधित कर रही हैं।
कई देशों में सरकारें भी शिक्षकों के लिए आॅनलाइन प्रशिक्षण की व्यवस्था बना रही हैं। कुछ तकनीकी कंपनियां शिक्षकों की भूमिका को एक ‘रिसोर्स मैनेजर’ के तौर पर देख सकती हैं, जो जरूरत के अनुसार बने-बनाये कंटेंट को बच्चों के लिए उपलब्ध करा दें। कोरोना महामारी के बाद के दिनों में विश्वविद्यालय कैसे होंगे, इसकी एक झलक पूर्वी चीन के एक शिक्षण संस्थान को देख कर मिल जायेगी। जहेजिंग विश्वविद्यालय मूलत: एक शोध संस्थान हैं और यहां संभवत: दुनिया का सबसे बड़ा दूरस्थ शिक्षा का प्रयोग किया गया है। इस विश्वविद्यालय में ट्रांजिशन के दौरान शिक्षकों के लिए दो सौ से अधिक स्मार्ट क्लासरूम बनाये गये, जिनमें वीडियो बनाने, आवाज पहचानने और साथ ही अनुवाद करने की तकनीक समाहित की गयी है। संकट शिक्षकों पर भी है और सरकारी शिक्षण संस्थानों पर भी। शिक्षा में बदलाव के लिए जरूरी है कि पहले इसका दार्शनिक और वैचारिक आधार तय किया जाये।
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