15 जनवरी को संयुक्त समाज मोर्चा पर ले सकते हैं अह्म फैसला
चंडीगढ़ (सच कहूँ न्यूज)। पंजाब के किसान संगठनों ने किसान आंदोलन फतेह करने के बाद अब चुनाव मैदान में उतरने का मन बनाते हुये कल अपनी नयी पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा का ऐलान किया। नयी सियासी पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा का ऐलान करते हुये भारतीय किसान यूनियन के नेता बलबीर राजेवाल को पार्टी का चेहरा घोषित करते हुये सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। वहीं इस को लेकर किसान नेताओं की अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही है।
किसान नेता व संयुक्त किसान मोर्चा की को-आर्डिनेशन कमेटी के सदस्य दर्शन पाल ने कहा, ‘मुझसे यह लिखवा कर ले लो जो पालिटिक्स में जाएंगे, वह न किसान नेता रहेंगे व न आंदोलनकारी कहलाएंगे और न ही सियासत में कुछ योगदान दे सकेंगे। मेरे ख्याल से अब किसान आंदोलन बुरी तरह नीचे आएगा और जो आज राजनीति में जा रहे हैं, वह ‘अर्श से फर्श’ पर गिरेंगे। वहीं मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब के किसान संगठनों के चुनाव लड़ने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा 15 जनवरी को अह्म फैसला ले सकता है।
चुनावी तालमेल पर जल्द लेंगे कोई फैसला: राजेवाल
उन्होंने कहा कि जहां तक किसी सियासी पार्टी से चुनावी तालमेल का सवाल है तो उसके बारे में जल्द कोई फैसला लिया जायेगा । आगे की रणनीति पर विचार करने के बाद आप को अवगत कराया जायेगा। राजेवाल ने कहा कि पंजाब की जवानी नशे से बर्बाद हो रही है तथा जवान बच्चे विदेश जा रहे हैं । ऐसे में रोजगार से लेकर नशे के खात्मे को लेकर हम गंभीर हैं । हम पंजाब की जनता को विश्वास दिलाते हैं कि उनके हितोंं को ध्यान में रखकर कोई फैसला लिया जायेगा।
किसान संगठनों के चुनाव में उतरने से पंजाब के बदलेंगे सियासी समीकरण
किसान संगठनों के पंजाब के विधानसभा चुनाव में उतरने से सियासी समीकरण बदलेंगे। राजनीति विशेषज्ञों के अनुसार, पंजाब विधानसभा चुनाव में अकालीदल, कांग्रेस और आप पार्टी को नुक्सान होने की संभावना है। भाजपा का गांव में पहले से ही ज्यादा कोई आधार नहीं है। अब देखना दिलचस्प होगा कि किसान संगठन चुनाव में कैसा प्रदर्शन करते है।
राजनीति की बजाय संघर्ष पर ध्यान दें: भाकियू
भारतीय किसान यूनियन ने कहा कि संघर्षशील किसान संगठनों को शासकों की वोट राजनीति में उलझने की बजाय किसान मांगों के लिए संघर्ष पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां व महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां ने कहा कृषि कानूनों के खिलाफ चले किसान संघर्ष ने भी यह साबित किया है कि किसान हकों व हितों की रक्षा संसद या विधानसभा में बैठकर नहीं होती, बल्कि उसके मुकाबले सड़कों पर संघर्ष करने से होती है।
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