पंजाब के 19 किसान संगठनों ने अपनी राजनीतिक पार्टी ‘संयुक्त समाज मोर्चा’ का ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही चर्चित किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश कर दिया है। कृषि प्रधान राज्यों में किसान की तरफ से राजनीतिक शुरुआत एक बड़ी घटना है। खासकर तब जब किसानों ने अपनी एकता के साथ केंद्र सरकार के खिलाफ संघर्ष में कामयाबी हासिल की है। बाकी 13 किसान संगठनों के अलग रहने का क्या प्रभाव पड़ता है यह तो समय बताएगा, परन्तु इसके साथ वोट बँटने के कारण सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए नई स्थिति पैदा हो सकती है। बेशक किसान अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने में पिछड़ गए हैं। फिर भी कृषि प्रधान राज्यों में किसान वोटों का अपना महत्व है।
राजनीति अपने आप में जहाँ एक विचार और सिद्धांत है वहां राजनीति का सम्बन्ध रणनीतिक तैयारी और तजुर्बो के साथ भी है। सवाल यह भी रहेगा क्या किसान नेता और वर्कर दिग्गज राजनीतिज्ञों का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक तैयारी कर सकेंगे? यह मसला भी विचारणीय है कि हर पार्टी का अपना किसान विंग है और खेती पर राजनीति है। इसी तरह गठजोड़ की भी राजनीति है। मौजूदा समय में अकाली दल और बसपा, दूसरी तरफ पंजाब लोक कांग्रेस भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। सुखदेव सिंह ढींडसा की पार्टी भी अभी गठबंधन में व्यस्त है। किसानों की पार्टी द्वारा भी एक पार्टी के साथ गठबंधन करने की चर्चा है। यह गठजोड़ कब सिरे चढ़ता है यह सवाल भी किसान पार्टी के लिए बना हुआ है।
बेशक किसानों का दावा है कि वह राजनीतिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए राजनीति में उतरे हैं परन्तु राजनीति करने के लिए राजनीतिक सिद्धांतों और तकनीकों के लिए समय की जरुरत है। इस घटनाचक्र ने खेती मुद्दों की अहमियत और बढ़ा दी है बाकी राजनीतिक पार्टियों के लिए यह चुनौती भी बन गई है कि वह खेती मुद्दों पर कम से कम किसानों की पार्टी के बराबर या उससे आगे होकर चलें, लोकतंत्र में हर किसी को राजनीति में अपना आप अजमाने का अधिकार है। फिर भी राजनीति के बुनियादी तत्वों को समझना और समय देना पड़ेगा।
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