माला टूटी तो आर्टिफिशियल ज्वेलरी बनाने का आया आइडिया
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एक हजार महिलाओं को दे रही रोजगार
सच कहूँ/ देवीलाल बारना, कुरुक्षेत्र। इंसान का शौक भी उसे हुनरमंद बना देता है और फिर उस हुनर से कामयाबी भी मिल जाती है। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में यूपी के इटावा से आई मीना यादव इसका उदाहरण है। उनके हाथ से बनी आर्टिफिशियल ज्वैलरी महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। मीना यादव का आर्टिफिशियल ज्वेलरी बनाने का बचपन का शौक 55 साल की उम्र में भी कायम है, मगर अब उनका शौक एक कला बन चुका है। उस शौक से उत्पन्न कला के जरिए न केवल उन्हें पहचान मिली बल्कि अब वह 1000 परिवारों को रोजगार भी दे रही है।
दो बार मिल चुका प्रादेशिक अवार्ड
इस कला के लिए यूपी सरकार उनको दो बार प्रादेशिक अवार्ड से सम्मानित भी कर चुकी है। अब उनका बेटा दीपक यादव उनके नक्शे कदम पर चलकर कामयाबी की सीढ़िया चढ़ रहा है। शिल्पकार मीना यादव बताती हैं कि बचपन में वह अपनी गुड्डे-गुड्डियों के लिए तरह तरह की मालाएं, बालियां, टॉप्स व अन्य तरह की आर्टिफिशियल ज्वेलरी घर में पड़े बेकार सामान से बनाती थी।
22 साल की उम्र में जीवन ने लिया नया मोड़
अभी उनका बचपन खत्म भी नहीं हुआ था कि 13 साल की उम्र में उनके माता-पिता ने उनकी शादी कर दी थी। तब उन्हें गुड़िया-पटोले छोड़कर ससुराल में चूल्हा-चौका संभालना पड़ा। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच समय भी गुजरता रहा। इस दौरान 22 साल की उम्र में उनकी जिंदगी में ऐसी घटना हुई, जिसने उनके जीवन को खास बना दिया। दरअसल, हुआ यूं की जब उन्होंने एक स्थानीय मेले से अपने लिए 50 रुपये की मोतियों की एक माला खरीदी, जो घर आने पर टूट गई।
उन्होंने कहा कि उस टूटी माला को देखकर उनका मन बहुत खिन्न हो गया और मीना उसी माला के मोतियों को समेट कर दूसरी माला बनाने में लीन हो गई। हालांकि उसे बनाने में बचपन के मुकाबले में कुछ ज्यादा समय लग गया। इसी दौरान उनको घर में पड़े बेकार सामान से आर्टिफिशियल कुछ सामान बनाकर उसे मार्केट में बेचने का सूझा। मीना ने बताया कि उन्होंने मार्केट से कुछ मोती लेकर उनकी माला, ब्रेसलेट, बालियां, टॉप्स व कुछ अन्य सामान बनाकर बेचना शुरू किया। उनकी कला के कद्रदान भी उनको मिलने लगे। यहां से उनके कारोबार की नींव पड़ गई। उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे मेले में स्टॉल लगानी शुरू की, जहां उनकी कला को पहचान मिल गई। इसी बूते पर उनको उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से साल 2003-04 और 2007-08 में दो बार राज्य प्रादेशिक अवार्ड से नवाजा गया।
50 से 400 तक का सामान और सभी हाथ से बना
मीना यादव ने बताया ने वह आठ साल से गीता महोत्सव में आ रही हैं। उनके स्टॉल पर सभी सामान हाथ से बना हुआ है। उनकी बनाई आर्टिफिशियल ज्वेलरी का डिजाइन भी सबसे अलग है, जो सिर्फ उनके पास ही है। उनके पास गीता महोत्सव में स्टॉल-22 पर मालाएं, बालियां, मंगलसूत्र, टॉप्स, बंदरवाल, छल्ले, ब्रेसलेट सहित अन्य सामान 50 से 400 रुपये की कीमत पर उपलब्ध है।
महिलाओं को बना रही स्वावलम्बी
मीना यादव अब यह काम खुद नहीं कर रही हैं। हालांकि उनके बेटे काम करते हैं। उन्होंने महिलाओं का एक समूह बनाया हुआ है, जिसमे एक हजार महिलाएं काम करती हैं। मीना उनसे सामान खरीदकर आगे बेचती है, उनसे जुड़ी महिलाओं को आमदनी हो रही है।
सरकारी नौकरी का मिला था ऑफर
मीना यादव ने बताया कि साल 2003 में उनको यूपी सरकार के एक विभाग में बतौर अधिकारी लगने का मौका मिला था, जिसे उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि वह कला और कारोबार से संतुष्ट है।
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