सोशल मीडिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियां अपनी आय में वृद्धि करने के लिए गंभीरता से गतिविधियां चला रही हैं। ट्विटर ने नया सीईयो नियुक्त किया है। फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया के मंच मोटा पैसा कमा रहे हैं, जहां तक बदलाव व नियुक्तियों का संबंध है इसके पीछे कंपनी की मंशा अपने को मजबूत व लोकप्रिय बनाना माना जा रहा है। फिर भी कंपनी का का पूरा ध्यान आय पर केंद्रित रहता है। यह कहने में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं कि सोशल मीडिया आलोचना का भी शिकार हो रहा है। आलोचना की सबसे अधिक चर्चा कभी अमेरिका में ज्यादा होती थी लेकिन अब भारत सहित अन्य विकासशील व गरीब देशों में भी सोशल मीडिया कंपनियों पर सवाल हो रहे हैं। इन विवादों में फर्जी खबरें बड़ा मुद्दा है।
भारत के प्रसंग में भी कई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर पक्षपाती होना, झूठी खबरें न हटाने और गुमराह करने वाला प्रचार करने के आरोप लगते रहे हैं। डाटा लीक का मामला भी चर्चा में बना हुआ है। समाज में हिंसक और भड़काऊ प्रचार को फैलाने के भी आरोप लगे हैं। वास्तव में सोशल मीडिया अपने शाब्दिक अर्थों के विपरीत चलता नजर आता है। किसी कंपनी के साथ सोशल शब्द जुड़ने का तात्पर्य समाज के हित में काम करना होता है जहां समाज कल्याण की चर्चा प्रमुखता से होनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि सूचना आवश्यक और जल्दी मिलनी चाहिए लेकिन सूचना के नाम पर झूठा प्रचार बेहद खतरनाक है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर झूठ का प्रचार नहीं होना चाहिए। यही कारण है अलग-अलग देशों की सरकारें सोशल मीडिया के खिलाफ नियमों को लेकर सख्त बिल लाने की तैयारी में हैं। भारत सरकार द्वारा भी ऐसा ही बिल पारित करने की चर्चा है।
नि:संदेह वैज्ञानिक युग सूचना क्रांति का युग है जहां सोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। समाज में अमन, सद्भावना और वास्तविक्ता जनता की प्राथमिक आवश्यकता है। कंपनियों के संचालकों का नैतिक कर्तव्य है कि वह सरकारों की सख्ती का इंतजार करने की बजाय मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें, अपने प्लेटफार्मों को सुरक्षित और विश्वसनीय बनाएं। हिंसा, अश्लीलता, झूठा प्रचार, नस्लभेद, राजनीतिक पक्षपात जैसी बुराइयों को सामाजिक मीडिया से दूर रखा जाए। समाज के अस्तित्व के साथ ही सामाजिक मीडिया का अस्तित्व है।
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