इतिहासकारों ने भुलाया भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक को : गणेशीलाल वर्मा
भिवानी (सच कहूँ न्यूज)। मातादीन भंगी नहीं होते तो सन् 1857 का महान गदर इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं होता और न ही मंगल पांडेय सिपाही विद्रोह के नायक बनते। इतिहासकारों ने मातादीन के साथ अन्याय किया। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार को इतिहासकारों ने भुला दिया। यह बात सोमवार को गणेशीलाल वर्मा ने स्थानीय दिनोद गेट, गांधी नगर में स्वतंत्रता सेनानी मातादीन भंगी की जयंती के अवसर पर कहे। इस मौके पर स्वतंत्रता सेनानी मातादीन चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
गणेशी लाल वर्मा ने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शोला मंगल पाण्डेय थे तो शोले में आग पैदा करने की प्रथम चिंगारी मातादीन भंगी थे। मातादीन के पूर्वज मेरठ के रहने वाले थे। मगर वे नौकरी के सिलसिले में अंग्रेजों की तत्कालीन राजधानी कोलकाता में बस गए थे। वहां मातादीन बैरकपुर कारतूस फैक्ट्री में सफाई कर्मी थे। अंग्रेज फौज के संपर्क में रहने से मातादीन को वहां की सारी गतिविधियों की जानकारी रहती थी। 22 जनवरी 1857 को मातादीन ने मंगल पाण्डेय से कहा था कि जिन कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होती है, उन्हें अपने मुंह में डालकर दांतों से तोड़कर बंदूक में लगाते हो। यह सुनकर मंगल पाण्डेय के अंदर अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। विरोध को दबाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने मंगल पांडेय पर गोलियां चला दी।
इस घटना के कारण सैनिकों में विद्रोह भड़क उठा। मातादीन भंगी भी कर्तव्य निभाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने अंग्रेजों के रखे हथियारों, गोला-बारूद, रसद तथा ठिकानों का पता विद्रोही सिपाहियों को बता दिया और और 1857 की क्रांति में बड़े सहयोगी बन गए। बाद में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए भड़काने का मुख्य आरोपी मातादीन भंगी को माना। यह मुकदमा मातादीन भंगी के नाम से चला। सभी गिरफ्तार क्रांतिकारियों को कोर्ट मार्शल के जरिए फांसी की सजा दी गई। मातादीन भंगी भी मातृभूमि के लिए 08 अप्रैल 1857 को शहीद हो गए। पहली फांसी मातादीन भंगी को दी गई। उसके बाद मंगल पांडेय और बाकी गिरफ्तार सैनिकों को फांसी दी गई।
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