सरसा (सच कहूँ डेस्क)। बेअदबी और कोटकपुरा गोलीकांड जैसी दुखद घटनाओं के मामले छह साल बाद भी उलझन में पड़े हैं। दो आयोग और तीन एसआईटी का गठन किया गया, लेकिन पुलिस सही व तथ्यपरक जांच ही नहीं कर पाई। उल्टा, निर्दोष डेरा श्रद्धालुओं के खिलाफ झूठे मुकदमें मढ़ दिए गए। वास्तव में, पुलिस जांच निष्पक्ष, वैज्ञानिक व व्यवहारिक तरीके से करने की बजाए राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती रही।
सबसे पहले बात करते हैं कोटकपूरा गोलीकांड की, जिसकी जांच करने के लिए तत्कालीन आईजी विजय कुंवर प्रताप सिंह के नेतृत्व में स्पेशल जांच टीम बनाई गई। जांच के दौरान ही कुंवर विजय प्रताप सिंह राजनीतिक बदलाखोरी के आरोपों में घिरे रहे। उस पर कई सालों तक यही आरोप लगता रहा है कि कुंवर विजय प्रताप जांच के बहाने अकाली दल को नुक्सान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। चुनाव के दौरान भी कुंवर विजय प्रताप ने इस तरह की ब्यानबाजी की जिससे उक्त पार्टी को नुक्सान हो। कुंवर प्रताप राजनेताओं की तरह व्यवहार करते नजर आए। इस एसआईटी ने पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक नजरिए से जांच की। हाईकोर्ट ने न केवल एसआईटी की रिपोर्ट बल्कि पूरी एसआईटी को ही नकार दिया।
दरअसल, इस एसआईटी ने जांच तो गोलीकांड की करनी थी, गोली किसने चलाई?, लेकिन एसआईटी ने कहीं की र्इंट कहीं का रोड़ा जोड़कर एक फिल्मी स्टोरी की स्क्रिप्ट लिख दी। हाईकोर्ट ने एसआईटी को फटकार लगाते हुए इसे राजनीति से प्रेरित और परिकल्पना पर आधारित बताया। दरअसल, कुंवर विजय ने अपनी स्टोरी में फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार व डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू जी को फिल्मी अंदाज में ही इस मामले से जोड़ दिया। विजय कुंवर प्रताप पर राजनीति करने के आरोप आखिर सच साबित हो गए, जब वे एक राजनीतिक पार्टी में शामिल हो गए।
यही वास्तविक्ता बरगाड़ी में हुई बेअदबी की घटनाओं में जांच करने वाली एसआईटी के अध्यक्ष डीआईजी रणबीर सिंह खटड़ा के बारे में सामने आई। खटड़ा ने भी वही सब किया, जैसा उसे राजनीतिक इशारा हो रहा था। पहले वो दो भाईयों जसविन्द्र सिंह व रूपिन्द्र सिंह को गिरफ्तार करते हैं और जोर-शोर से दावा करते हैं कि बेअदबी का मामला सुलझा लिया गया है। खटड़ा की कार्रवाई के बाद एडीजीपी इकबालप्रीत सिंह सहोता प्रैस वार्ता कर इस पूरे मामले की जानकारी मीडिया के सामने रखते हैं। जब समय बदलता है, सरकार बदलती है, तो राजनीतिक आका बदल जाते हैं।
अब खटड़ा मौके की तलाश करते हैं और महेन्द्रपाल बिट्टू सहित कई डेरा श्रद्धालुओं को बेअदबी के मामले में गिरफ्तार कर उन पर अत्याचार कर जबरदस्ती ब्यान लिखवा लेते हैं। खटड़ा की शातिराना चाल देखिए, वो बेअदबी के मामले में गिरफ्तारी करने का तो अधिकार ही नहीं रखते थे, परन्तु नई चाल चलते हुए उसने बसों की आगजनी के किसी मामले में डेरा श्रद्धालुओं की गिरफ्तारी को दिखाया और सुनियोजित तरीके से बेअदबी के केस में डालकर अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए कह दिया कि उसने बेअदबी का मामला सुलझा दिया है। इस जल्दबाजी में खटड़ा ये भी भूल गए कि जिस जसविन्द्र और रूपिन्द्र से पुलिस ने बेअदबी का कबूलनामा किया था, वो तो अभी ज्यों का त्यों है। खटड़ा की जांच पर भी सवाल उठे और हाईकोर्ट ने उसको एसआईटी प्रमुख पद से हटाकर नया प्रमुख लगाने के आदेश दिए।
खटड़ा की राजनीतिक पार्टियों से सांठगांठ भी अब और भी साफ नजर आ रही है। अकाली दल ने दावा किया है कि खटड़ा किसी राजनीतिक पार्टी के साथ मिलकर कोई साजिश रच रहे हैं। उक्त पार्टी ने ये भी कहा कि खटड़ा उनकी पार्टी के खिलाफ किसी महिला का बयान दिलवाने की तैयारी में हैं। अकाली दल की आशंका सच भी साबित हुई और अगले ही दिन उक्त महिला ने पार्टी के खिलाफ ब्यान भी दे दिया।
अब यह भी कहा जा रहा है कि खटड़ा को कोई बड़ा पद देने और उसके बेटे सतबीर सिंह खटड़ा को कोई राजनीतिक लाभ देने की तैयारी की जा रही है। सतबीर खटड़ा पिछले काफी समय से शिरोमणी अकाली दल में रहा है और 2017 में अकाली दल की टिकट से चुनाव लड़ चुका है। अब सतबीर खटड़ा ने अकाली दल से इस्तीफा दे दिया है। अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने के लिए रणबीर खटड़ा क्या-क्या गुल खिलाएंगे, ये देखना होगा।
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