पंचकूला(सच कहूँ न्यूज)। 18 अक्तूबर को पंचकुला की सीबीआई कोर्ट ने रणजीत हत्याकांड में जो निर्णय दिया आज भले ही वह एक बारगी पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां व अन्य लोगों के खिलाफ गया है व जमाना तरह-तरह की बातें सोचता है। परन्तु उक्त दोष व सजाएं सच्चाई से कोसों दूर हैं, सच्चाई अभी सामने आना बाकी है जो कि उच्च न्यायालय में साबित होगी। यहां रणजीत हत्याकांड का पूरा केस क्या है? व कैसे इसमें खट्टा सिंह जैसे बार-बार मुकर जाने वाले गवाहों को सुना गया और मीडिया में पूज्य गुरू जी के अक्स को जानबूझकर एक षड्यंत्र के तहत बिगाड़ने का कुप्रयास किया गया, ताकि नशा माफिया, भ्रष्ट राजनीतिकों एवं झूठे लोगों की चालें कामयाब हो जाएं, जिसमें वो लोग अभी थोड़ा सफल भी हो गए हैं, परन्तु अब झूठ ज्यादा देर तक आगे टिकने वाला नहीं है। इस पर सच कहूँ ने वरिष्ठ वकील अमित तिवाड़ी से बात की है। पेश है उनसे की गई पूरी बातचीत…
प्रश्न : रणजीत हत्या से जुड़ा ये पूरा मामला क्या है?
देखिए रणजीत सिंह जो मर्डर केस है, ये 10 जुलाई 2002 को एज पर प्रॉसीक्यूशन केस, शाम को लगभग साढ़े पाँच बजे प्रॉसीक्यूशन का ये कहना है कि रणजीत सिंह जब अपने खेतों में अपने मजदूरों को चाय देने के लिए आया, उसके पिता भी वहां खड़े थे, जब वो चाय देने के बाद वापिस बाइक पर बैठा तो दोनों तरफ खेतों से चार लोग निकले और उन्होंने ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं, जिससे उसका देहांत हो गया। उसे तुरंत हॉस्पिटल ले गए और ही वॉज डिक्लेयरड ब्रॉड डैड। तो ये वो पूरा मामला था जिसकी जांच पहले पुलिस ने की। फिर हाईकोर्ट में मैटर गया, हाईकोर्ट ने इसको सीबीआई को ट्रांसफर किया। फिर सीबीआई ने जांच की, दे फाइल्ड कपल ऑफ चार्ज शीट। अल्टीमेटली 2007 में उन्होंने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के खिलाफ भी चार्जशीट दायर की। तो पिछले 13-14 सालों से वो ट्रायल चला, उसमें कन्वीक्शन हुई और सभी एक्यूज प्रशंस को लाइफ टर्म संटेंश अवार्ड की है।
प्रश्न : इस मामले में सीबीआई की जांच पर क्या कहेंगे?
देखिए जांच हो या ट्रायल हो, उसका मुख्य उद्देश्य होता है सच्चाई सामने आए। क्योंकि एक साइड आरोप लगाती है, दूसरी साइड कहती है कि मैंने ये क्राइम नहीं किया गया है। एक थर्ड इंडिपेंडेंट एजेंसी जांच करती है। फिर ट्रायल होता है, इस पूरे प्रोसेस को जो आब्जेक्ट है, वो है डिस्कवरी ऑफ ट्रूथ। अब देखा ये गया है कि जनरली हाई प्रोफाइल केसिस मे, इस तरह के केसिस में पहले जांच होती है, फिर ट्रायल होता है, फिर सच निर्धारित होता है। कि ये इस केस का सच है। इसमें पहले दिन ही सच निर्धारित कर दिया जाता है कि हाँ, ये तो इन्होंने ही क्राइम किया है और उसके बाद उसी प्रकार से जाँच, उसी प्रकार से ट्रायल कंडक्टर कराया जाता है। तो जाँच इस केस में पुलिस या सीबीआई जांच इस केस में पूरी तरह से डिफिक्टिड जांच है, फ्रेमडप एंड कुकडअप दी इन्टायर केस, विटिनिसस प्लांट किए, जो सच्चाई नहीं थी, इसलिए आज इतने मैटीरियल कॉन्ट्रिडंक्शंस हैं, इम्प्रूवमेंटस हैं तो जांच मेरे हिसाब से बिल्कुल ही गलत थी।
प्रश्न : जब जाँच में इतनी खामियां थी तो फिर भी बचाव पक्ष की दलीलों को कोर्ट ने इग्नोर क्यों किया?
देखिए एक बात समझिए, इस तरह के मुकदमें में एक ऐसा वातावरण बनाया जाता है कि जिसमें कि ज्यूडिशियल इंडीपेंडेंस को भी खतरा होता है। दो साइड एक कोर्ट के सामने हैं, एक प्रॉसीक्यूशन है, एक डिफेंस है। इट इज एक्सपैक्टिड दैट दी आॅर्गन विल रिमेन इंडिपेंडेंट और अपना इंडीपेंडेंट माइंड अप्लाई करेंगे और फैक्ट के आधार पर, मैरिट के आधार पर वो फैसला देंगे। अब आप इस केस में देखिए, रिसेंटली क्या हुआ, 23 तारीख को फैसला सुरक्षित रख लिया गया, 26 तारीख को फैसला आना था, 24 तारीख को अचानक एक फ्रीविलेस पिटीशन डाली जाती है और कोर्ट के ऊपर या सीबीआई के पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के ऊपर एक आरोप लगाया जाता है। गंभीर आरोप, आधारहीन, जिस पर कोई तथ्य नहीं है, कोई सबूत नहीं है।
यहां तक कि अगर आप उस पिटीशन को देखेंगे तो उसमें लिखा है कि कम्पलेनेंट को ये रिलायबल सोर्सिस से पता चल गया है कि खट्टा सिंह को रिलाय नहीं करेगी कोर्ट और इसलिए क्वीट हो जाएंगे। अब सवाल उठता है कि कैसे पता चला कम्पलेंनेंट को जब वो कोर्ट में नहीं आता था, किसी ऑर्डर शीट में भी नाम नहीं है उसका। तो इस तरह के केसिस में एंटी डेरा फोर्सिस हैं, वो इतनी एक्टिव हैं और ऐसा इन्वायरमेंट क्रिएट कर देती हैं, जिसमें कि ज्यूडिशरी ऑर्गन विद ऑल ड्यू रिस्पेक्ट वो भी कॉर्नर आउट हो जाता है। उस पूरी पिटीशन का प्रपज ये था कि हम ये चाहते हैं कि और आप इसको इसी तरह से डिसाइड करो। आप नहीं करोगे तो आप गलत हो, हम आरोप लगा देंगे। तो कहीं न कहीं इंडीपिडेंट एप्लीकेशन ऑफ ज्यूडिशिएल माइंड हैम्पर होता है, प्रेज्यूडिज होता है, इम्पेक्टि होता है, ये मेरा मानना है व्यक्ति। इस केस में इस तरीके से हुआ है।
अब दूसरा उदाहरण देख लिजिए आप खट्टा सिंह जब होस्टाइल होता है, खट्टा इज द् मेन विटनेस, स्टार विटनेस ऑफ प्रॉसीक्युशन। खट्टा सिंह होस्टाइल होता है तो एक आदमी जो ना कभी जांच में था, ना वो लिस्ट ऑफ विटनेसिस में है, ना वो कोर्ट में है। वो बीच में आ जाता है कि मैं भी कॉन्सपिरेसी का विटनेस हूँ। कौन लाया? किसके इंस्टींस पर आया, क्यों? तो ये ज्यूडिशियल प्रोसेस को कहीं न कहीं एंटी डेरा फोर्सेस ने इम्पैक्ट भी किया है और उसका इस तरीके से कॉर्नर आउट किया है कि एक ऐसा इन्वायरमेंट क्रिएट हो गया कि जिसमें कि इंडीपिडेंट एप्लीकेशन ऑफ माइंड वो नहीं रहा है।
प्रश्न : खट्टा सिंह को सीबीआई ने मुख्य गवाह के तौर पर पेश किया है, उसके बारे में क्या कहेंगे?
पहले आप एक बात बताइए कि खट्टा सिंह और अवतार में क्या फर्क है। सीबीआई का ये केस है इन सभी एक्यूज प्रसंस में खट्टा सिंह भी उनमें बैठा था, वहां पर ये कांसपीरेसी की, कि जाकर रणजीत को मार दो। ये सीबीआई का केस है। अवतार भी कुछ नहीं बोला, खट्टा भी कुछ नहीं बोला। सीबीआई के हिसाब से। मैं अपने केस की बात नहीं कर रहा हूँ। अवतार क्यों एक्यूज हैं और खट्टा क्यों बाहर है? खट्टा सिंह विटनेस प्लांट किया गया, उसको डराया-धमकाया गया, जो उसने पहले कहा भी था, कि यो तो तुम्हें भी मुलजिम बना देंगे या फिर तुम इनके खिलाफ गवाही दो और खट्टा सिंह ने फिर वो एक्सेप्ट किया, उसने स्टेटमेंट दिया, लेकिन उसके बाद वो कोर्ट में जाकर खुद भी कहता है कि मेरे से सीबीआई ने दबाव में बयान लिया है। फिर कोर्ट आया और होस्टाइल हो गया। फिर उस पर क्या प्रेशर एग्जर्ट किया गया या उसका पर्सनल विडेंटा क्या है, उसका पर्सनल कॉज क्या है कि वो फिर खड़ा हो गया कि अब मैं सच बोलूंगा। तो इस तरह के विटनेस की कोई रिलायबिलिटी नहीं होती।
खट्टा सिंह इज टोटली ए प्लांटिड फॉल्स विटनेस। आप एक दूसरी बात देखिए और मेरी एक रिक्सवेस्ट है पंजाब पुलिस से भी। 2004 या 2005 से आपने खट्टा सिंह को सिक्योरिटी दे रखी है, गनमैन दे रखे हैं। आज तक उसके ऊपर क्या थ्रैट है। क्या अटैक हुआ है। कितनी बार सिक्योरिटी रिव्यू हुई है। उस सिक्योरिटी में जो खर्चा होता है, वो पब्लिक मनी है ना, किस लिए दिया गया है उसको? आप पूरे देश में कोई ऐसा केस देख लिजिए जहां पर एक मर्डर का केस चल रहा हो और 50-100 विटनेसिस हों, कंपलेनेंट की फैमिली रैगूलर आएगी, क्योंकि उनका कॉज है, पर ये अकेला विटनेस है जो कोर्ट आता है, आकर मीडिया में बाइट देता है, क्या एजेंडा है इसका? कौन समर्थन कर रहा है इसको पीछे से? ये विटनेस जो बार-बार बयान बदलता है, स्टेट के खर्चे पर अपने पर्सनल कॉज को आगे बढ़ा रहा है, इसकी क्या रिलायबिलिटी है, चाहे लिगली देखें या अदरवाइज भी देखें। तो सभी फैक्टरस हैं, जो मुझे लगता है अपीलिट कोर्ट कहीं न कहीं कनसीडर करेगा।
तो खट्टा सिंह हमारे हिसाब से टोटली नॉन रिलायबल विटनेस, उसकी टेस्टीमनी, वो बार बार कसम खाकर अलग अलग बात बोलता है। अब आप बताइए वो 2012 में आया उसने कसम खाई कि मैं जो कुछ बोलूंगा सच बोलूंगा और होस्टाइल हो गया। 2018 में आया और कसम खाई कि मैं सच बोलूंगा और फिर वो सीबीआई को स्पोर्ट कर रहा है। कौन सी कसम सही थी और कौन सी कसम झूठी थी। मिनिंग क्या है फिर ऑथ का। तो खट्टा सिंह जैसे विटनेस पर विद ऑल रिस्पेक्ट टू द जजमेंट एंड द ऑनरेबल कोर्ट उन्होंने उसको अपने हिसाब से पढ़ा पर हमारा केस है कि इस विटनेस को कोई रिलाय नहीं कर सकता और ऐसे विटनेस हाईकोर्ट ने भी कह रखा है कि रिलाय नहीं करना। जैसे बीबी जागीर कौर का जो जजमेंट है, उसमें भी एक होस्टाइल विटनेस हुआ, दोबारा आता है, कोर्ट ने उसको नहीं रिलाय किया तो मुझे भी पूरा यकीन है कि हाईकोर्ट इन चीजों को देखेगा और कहीं न कहीं न्याय होगा।
ये सारा इंसीडेंट 2018 के बाद से शुरू हुआ। 2007 में जब उन्होंने स्टेटमेंट दिया, उसके बाद वो 2012 में फर्स्ट टाइम आए इन कोर्ट। होस्टाइल हो गया, सीबीआई की जो पूरी कॉन्सपिरेसी की थ्योरी थी वेनिस्ड, खत्म। 2017 में जब कन्वीक्शन हो गई, 2018 में अचानक फिर वो खड़ा होता है और कहता है कि मैं इसकी गवाही दूंगा। तो ये सब इतने फ्रैक्शन ऑफ टाइम में हुआ, और खास तौर से जब एक विटनेस दो बार कसम खाकर अलग-अलग बात बोल रहा है तो ऑब्वीसियली वो नॉन रिलायबल है। उसमें नॉर्को टेस्ट या कोई और टेस्ट उसका कोई मतलब ही नहीं है। ये सब इन्वेस्टिगेशन प्रपजिज से हो सकता है। नार्को वगैरहा जो सीबीआई वगैराह करवाते हैं उसे कानूनी तौर पर कोई मान्यता नहीं है। पर जहां तक ज्यूडिशयल डिसीप्लेन का सवाल है, इस तरह के विटिनेसिस को कोर्ट ने कभी रिलायबल नहीं माना है, पर अनफॉरच्यूनेटली इस केस में माना है, आई हैव नॉट सीन द जजमेंट, जब देखेंगे तब पता चलेगा कि किस तरह से माना है उसको।
प्रश्न : प्रॉसीक्यूशन की तरफ से एविडेंसिस की बात कही गई है उस पर क्या कहेंगे।
प्रॉसीक्यूशन हैज टू राइट टू अप टू काइंडज ऑफ एवीडेंस। एक डायरेक्ट, खट्टा सिंह को उन्होंने कॉन्सपिरेसी का विटनेस बताया है। दूसरा सरकर्मस्टांशियल एवीडेंसिस। जिसमें उन्होंने अलग-अलग सरकमस्टाइंसिस बताए हैं, वो भी कहीं मैच नहीं होते। तो अगर खट्टा नॉन रिलायबल है तो उसको हटा दो तो आप सरकमस्टासिंयल एविडेंस बचे। सरकर्मस्टांसियल एवीडेंस में भी किसी प्रकार का कोई मिलान नहीं है। अच्छा एक बात बताइए कि पिता के सामने उसके बेटे को गोली मारी जाती है, सीबीआई का केस है ये। पिता उसका अस्पताल लेकर जाता है, जिसके ऊपर ताबड़तोड़ गोलियां चली हैं, ब्लड आया है, ब्लड निकला है, पिता अगर उसको अस्पताल लेकर गया है तो पिता के कपड़ों पर ब्लड क्यों नहीं है। जिस गाड़ी में लेकर गए हैं, वो गाड़ी कहां है?
पिता वहां था ही नहीं, इस इस तरीके के ऐसे ऐसे सरकमस्टासिस हैं। अब पिता एफआईआर में नाम लिखवाता है रामकुमार, राज सिंह कि उन्होंने मरवा दिया, मेरी पॉलिटीकल उनसे रंजिश है। और फिर बाद में 45 दिन बीतने पर कहता है कि नहीं-नहीं डेरे के लोगों ने मेरे सामने आकर मेरे बेटे को धमकाया था। अगर किसी पिता के सामने उसके बेटे को दो लोग आकर धमकाते हैं, एक बार नहीं उसके परिवार के सामने भी, बहन के सामने भी, बीवी के सामने और फिर वो उन्हीं व्यक्तियों को गोली मारते हुए देखेगा तो नाम नहीं लेगा क्या? और फिर उसका एक सिंपल सा बयान आ जाता है कि मैं डिस्टर्ब था। मुझे उस समय समझ नहीं आया। उनको इतनी समझ थी कि रामकुमार और राज सिंह का नाम लेने की। पर जिसको देखा था उनका नाम नहीं पता। ऐसे ही बहुत सारे सरकमस्टांसिस हैं, सब के सब म्यूचअली कॉन्ट्रीडिकटरी हैं, वो कहीं भी एक चेन ऑफ इवेंट नहीं करते। इसलिए इस केस में टेस्टमनी ऐसी है नहीं, एविडेंस ऐसा है नहीं कि वारेन कन्वीकंश्न मेरे हिसाब से।
प्रश्न : क्या मीडिया ट्रायल ने भी इस केस को प्रभावित किया है?
देखिए मीडिया को सेल्फ रिस्टेंस करना चाहिए और अगर आप मीडिया के बारे में गहराई से पता करेंगे तो जॉब ऑफ मीडिया टू रिपोर्ट। नॉट टू स्पॉट। पर ओवर द पीरियड ऑफ टाइम मीडिया ने अपना इतना ज्यादा रूख बदल लिया है कि पहले दिन से एक प्रसेप्सन क्रिएट कर दो कि दे आर सो पावरफुल, इन्होंने ऑफेंस किया है और इनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हो रहा है। सो दैट बिकॉज ऑफ दी पब्लिक प्रसेप्शन प्रेशर इज क्रिएटिड ऑन दी एडमिनिस्ट्रेशन एज वैल एज दी ज्यूडशरी, कि पब्लिक कांसस को सेटीसफाई करना है। तो मीडिया ट्रायल कहीं न कहीं 100 प्रसेंट इंपेक्ट करता है और उसने इस केस में भी किया है।
प्रश्न : तीनों केसों में पूज्य गुरु जी को ही टारगेट क्यों किया जा रहा है?
आप इतिहास उठाकर देख लो जब भी किसी संत ने, किसी व्यक्ति ने सोशल रिफॉर्म, पब्लिक को एक नई दिशा दिखाने की कोशिश की है, वो हमेशा प्रताड़ित हुआ है। उसको कष्ट सहना पड़ा है। वो अब गुरु जी के केस में भी है, अगर वो नशों के खिलाफ बोलते हैं तो कंप्लीटली अंगेस्ट ए ड्रग रैकेट और रिलिजयस एंगल्स भी हैं। तो इन सब चीजों को अगर आप गहराई से देखोगे और इनके बारे में गहराई से सोचोगे तब आपको पता लगेगा कि क्यों गुरु जी को टारगेट किया जा रहा है। कुछ पॉलिटिकल इंटरेस्ट हैं कुछ लोगों के, कुछ लोगों के इकनॉमिक इंटरेस्ट है, कुछ लोगों के रिलिजियस इंटरेस्ट हैं। आप दूर मत जाइए सिर्फ खट्टा की पूरी इन्वेस्टिगेशन करवा लिजिए सब पता चल जाएगा कि कौन-कौन लोग इसके पीछे हैं। हाउ इज ही कनेक्टिड एंड टू हूम इज कनेक्टिड? तो पूज्य गुरु जी इज प्रसनली टारगेटिड, बिकॉज इट सेटीसफाइज और ही इज एक्चुअली थ्रैट टू सम पिपल बिकॉज ऑफ देयर पालिटिकल इन्टरेस्ट और इकॉनामिक इंटरेस्ट। तो ऐसे लोगों को टारगेट किया जाता है, एंटी डेरा फोर्सिस द्वारा।
प्रश्न : गुरु जी के बारे में कोर्ट की सुनवाई के दौरान अक्सर कुछ नकारात्मक खबरें आती हैं, जैसे वो मुरझाए हुए बैठे थे, रहम की अपील कर रहे थे आदि-आदि।
उत्तर : मैं पाँच-सात दिन पहले खुद पूज्य गुरु जी से सुनारियां में मिलकर आया हूँ, ही इज फिट, ही इज नॉर्मल, ही इज फाइन। और दूसरा उनको पूरा विश्वास है कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा। तीसरा आज मीडिया ट्रायल हो या चाहे जो कुछ भी हो प्रॉसीक्यूशन की स्टोरी हो, वे पूरा जोर लगा रहे थे कि इसमें डेथ पैनल्टी हो, गुरु जी ने आज भी जब वो कोर्ट में पेश हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उन्होंने जज साहब से आज भी रिक्वेस्ट की थी कि सर सब्जेक्ट टू यअर्स ऑर्डर या नियमावली ये कहती है कि प्रशासन की मैं जो काम करता आया हूँ, समाज को सुधारने के लिए, समाज को मोटिवेट करने के लिए मैं यहां जेल में भी करना चाहता हूँ और जेल के माध्यम से बाहर भी करना चाहता हूँ। इस प्रकार की अगर कोई व्यवस्था बन जाए। तो गुरू जी बहुत ही पॉजीटिव हैं, बहुत ही शांत हैं। उनका पूरा फोकस इसी बात पर है कि मैं जो काम समाज सुधार का करता आया हूँ, वो मैं निरंतर करता रहूंगा। ये अड़चने हैं कुछ समय के लिए। पर ऐसा है सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं सकता।
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