अब सामान्य व्यक्ति भी मानने लगा है कि जिस क्षेत्र में चुनाव होगा, वहां जनमानस के मुद्दों पर राजनीति का घी डाला ही जाएगा। लखीमपुर खीरी की दुखद घटना के पीछे भी राजनीति के प्रपंच आसानी से खोजे जा सकते हैं। चूंकि, उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं, लिहाजा हर राजनीतिक दल अपना वोट बैंक तैयार करने की कोशिशों में जुट गया है। लखीमपुर की आग पर राजनीतिक रोटी सेंकने वाले भी इसे गहराई से समझते हैं। राजनीति का एक मकसद लोक का व्यापक हित होता है, लेकिन दुर्भाग्यवश राजनीति व्यापक हित की चिंताओं की बजाय अपनी चिंताओं में ही डूबी नजर आती है। चिंता इस बात की होनी चाहिए कि आंदोलन हिंसक न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने किसान कानूनों के खिलाफ सुनवाई करते हुए कहा है कि जब भी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, कोई उनकी जिम्मेदारी नहीं लेता। जो आठ जानें गयी हैं, उनके बदले में सरकारें चाहे जितना भी मुआवजा दें, सामाजिक संगठन उनके लिए चाहे जितनी मोटी रकम जुटा लें, लेकिन रकम किसी भी जिंदगी के बराबर नहीं हो सकती। जो लोग इस घटना में मारे गये हैं, आगामी जिंदगी में असल कीमत उनके परिवारों को चुकानी है। भाजपा के थिंक टैंक रहे गोविंदाचार्य ने इस घटना के बाद राजनीतिक दलों से अपील की थी कि वे ऐसा कार्य न करें, जिससे अव्यवस्था उत्पन्न हो। शायद राजनीति समझती है कि अगर वह ऐसी घटनाओं का फायदा नहीं उठाए, तो वह अप्रासंगिक हो जायेगी, लेकिन वह भूल जाती है कि ऐसी घटनाओं पर जब राजनीति होती है, तो उससे उपजी चिंगारी शोले बनने लगती है, जिसकी तपिश सबको चपेट में ले लेती है।
उम्मीद है, जांच में पूरे तथ्य सामने आयेंगे और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। वैसे जिस तरह कुछ लोगों को निर्दयता पूर्वक पीटते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आये हैं, उससे साफ है कि बदले की आग में निर्मम हत्याएं की गयीं और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को अपराधी माना जाना चाहिए और कानून को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। लखीमपुर की घटना उत्तर प्रदेश पुलिस पर भी सवाल उठाती है। जहां उपमुख्यमंत्री का कार्यक्रम होना हो, वहां उपद्रव की आशंका का पता अगर पुलिस नहीं लगा पाती है और एहतियातन कदम नहीं उठा सकती है, तो यह उसकी नाकामी ही है।
उत्तर प्रदेश पुलिस आंदोलनकारियों की मंशा और उनकी संख्या का सही अंदाजा लगाने में असफल रही है। नहीं तो वह एहतियातन वहां पुलिस बल का इंतजाम रखती। उत्तर प्रदेश सरकार को इस पर भी ध्यान देना होगा। आखिर में एक और तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम को सिर्फ कानून और व्यवस्था का विषय ना समझा जाए, बल्कि इसके गहरे निहितार्थों, लक्ष्यों और दूरगामी प्रभावों का भी ख्याल किया जाना चाहिए। तभी भविष्य में ऐसी घटनाओं को होने से पहले ही रोका जा सकेगा। किसान संगठनों को भी सावधान रहना होगा कि उनके समर्थक भी हिंसक ना हों। हिंसा अंतत: हर पक्ष के लिए नुकसानदायक होती है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।