श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल में घुसे आतंकियों ने पहचान पत्र देखकर जिस प्रकार एक सिख और एक हिंदू शिक्षक की हत्या कर दी, उससे कश्मीर में आतंकवाद अपने वीभत्स रूप में लौटता दिख रहा है। इसके पहले भी वहां लोगों को चुन-चुनकर मारा जा चुका है। पिछले दिनों ही श्रीनगर में मेडिकल स्टोर चलाने वाले एक कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी गई थी। इस तरह की घटनाएं केवल आतंकियों के दुस्साहस को ही नहीं बयान करतीं, बल्कि कश्मीर घाटी में बचे-खुचे अल्पसंख्यकों के मन में खौफ भी पैदा करती हैं। एक हफ्ते में श्रीनगर में ही सात नागरिक मारे जा चुके हैं। आतंकी इस बार आम लोगों को और उनमें भी गैर-मुस्लिमों को निशाना बना रहे हैं।
द रेजिस्टेंट फ्रंट नामक लश्कर की एक संस्था ने कहा कि बिंदरू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे और हम सिर्फ उन्हें मारते हैं, जो कश्मीर-विरोधी गतिविधियां करते हैं। जवाब में मक्खन लाल बिंदरू की बेटी डॉ. श्रद्धा बिंदरू ने एक वीडियो में दहशतगर्दों को ललकारते हुए कहा है कि जिसने भी मेरे पिता को मारा है, हिम्मत है तो मेरे सामने आए और बहस करे। दूसरी बात यह कि इन आतंकी घटनाओं के पीछे एक अलग मंशा दिख रही है। इसमें भारी-भरकम हथियार भी इस्तेमाल नहीं किए जा रहे। ज्यादातर घटनाओं में पिस्तौल का उपयोग किए जाने की सूचना है। यह काम उन नए लोगों से भी करवाया जा सकता है, जिन्हें खास ट्रेनिंग देने का मौका नहीं मिला हो। यानी पाकिस्तान के आतंकी शिविरों में प्रशिक्षित आतंकवादियों के बजाय आतंकी प्रवृत्ति के स्थानीय युवाओं के सहारे आतंकवाद के इस नए रूप को आगे बढ़ाया जा रहा है।
सोशल मीडिया पर लोगों ने कश्मीर में 1990 के दशक की वापसी को लेकर डर जताना शुरू कर दिया। हालांकि आतंकी उस दौर को दोहराने की स्थिति में तो नहीं हैं, लेकिन वे हिंसा के जरिये कश्मीर में अल्पसंख्यकों के मन में डर बैठाना चाहते हैं, ताकि घाटी में उनकी वापसी के प्रयासों की रफ्तार सुस्त पड़ जाए। बिहार के निवासी अपनी जिजीविषा के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं। वे किसी भी चुनौती के सामने डिगते नहीं। पिछले दिनों बिहार के भागलपुर के वीरेंद्र पासवान रोजगार की तलाश में कश्मीर आए थे। आतंकियों ने धमकी दी कि बाहरी लोग कश्मीर आकर स्थानीय लोगों के रोजगार न छीनें।
दिन भर में लगभग 250 रुपये कमाने वाले वीरेंद्र पासवान ने भला किस कश्मीरी का रोजगार छीना होगा? इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि कश्मीर में घटी हाल की घटनाएं एक ओर जहां आम लोगों के मनोबल को गिराने, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा बलों की चिंता बढ़ाने वाली हैं। आतंकी नेटवर्क अफवाहों के सहारे भी दूरियां बढ़ाने और फिर उसका फायदा उठाने की ताक में रहता है। सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवाद रोधी रणनीति बदलने के साथ अपनी आक्रामकता बढ़ानी ही होगी। उन्हें न केवल आतंकियों को चुन-चुनकर मारना होगा, बल्कि उनके खुले-छिपे समर्थकों पर भी लगाम लगानी होगी।
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