उत्तर प्रदेश के एक गांव गेजा से श्री मामराज ने जब पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज से नाम लिया तो उसका जीवन ही बदल गया। सतगुरू जी की याद और दर्शन पाने की तड़प उसे हर समय रहती थी। वह सभी मासिक सत्संगों पर डेरा सच्चा सौदा, सरसा पहुंचने को तैयार रहता। कई बार तो उत्तर प्रदेश से सरसा के लिए पैदल ही चल पड़ता। सतगुरू के दर्शन पाना ही उसका लक्ष्य होता। शाही दरबार में आकर उसे दुनिया भर की खुशियां प्राप्त होती। मासिक सत्संग में अभी चार-पांच दिन ही शेष थे। भक्त मामराज को अपने मुर्शिद के पास जाने की प्रबल इच्छा पैदा हुई। अकेला ही वह सरसा के लिए घर से पैदल चल पड़ा। दिल के अंदर सतगुरू की प्यारी यादें संजोए, ख्यालों में पिछले मासिक रूहानी सत्त्संगों की मधुर यादों को ताजा करता हुआ अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था। सत्संगी मामराज अपने सारे फिक्र उस फिक्र करने वाले स्वामी को सौंपकर बेफिक्र था।
रास्ते में एक गांव में सांयकाल उस भक्त ने पानी पिया तथा वहां पड़Þी चारपाई पर बैठ गया। भक्त मामराज को नींद आ गई। वह घर एक चौधरी का था। उन लोगों ने उसे चोर समझकर एक कमरे में बंद कर दिया और सोचा कि सुबह पुलिस थाने में दे आएंगे। वह कमरे में बंद था। सतगुरू जी से सहायता की पुकार करते हुए सुमिरन पर बैठ गया। उसको अपने मुर्शिद पर पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास था। आधी रात के समय उस परिवार के मुखिया का लड़का उठकर अपने पिता के पास आकर कहने लगा कि मुझे एक सफेद कपड़ों वाले, सफेद दाढ़ी वाले बाबा जी अपनी डंगोरी से कुछ कहते हैं। चौधरी ने अपने लड़के को बताया कि जो बेटा सो जा, सपना होगा।
परंतु उस लड़के के साथ तीन बार ऐसा हुआ और लड़का बोला कि बाबा जी ने कहा है कि हमारे आदमी को बिना कसूर तुमने क्यों पकड़ा? फिर उस परिवार को सारी बात समझ में आई। तुरंत भक्त मामराज के पास परिवार के सदस्य आए और सारी बात उससे पूछी कि तू कहां से आया है और तूने कहां जाना है? सफे द दाढ़ी वाले, बाबा जी कौन हैं? सारी बात पता चलने पर चौधरी परिवार को अपनी नादानी पर पश्चाताप हुआ और वे माफी मांगने लगे। वहां से भक्त मामराज फिर पैदल खुशी-खुशी सतगुरू जी के दर की ओर चल पड़ा।
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