पिछले साल 9 से 10 हजार प्रति टन बिकने वाला कोयला, अब 23 हजार पहुंचा
सच कहूँ/सुनील वर्मा, सरसा। देश प्रदेशभर में इस साल कोयले के दामों में लगी आग के चलते यह कहना मुमकिन नहीं हो पा रहा कि विकास कार्योें अथवा नवीन घरों के निर्माण में ईंटें भट्ठों से आसानी से उपलब्ध हो पाएंगी, क्योंकि जिला के अधिकांशत: ईंट-भट्ठा संचालकों ने कोयलों के दामों में भारी बढ़ोतरी के चलते इस बार ईंट-भट्ठा न चलाने का मन बना लिया है। अह्म बात यह है कि यदि इस बार ईंट-भट्ठा संचालकों ने कोयले के बढ़े हुए भारी दामों के चलते भट्ठा संचालित नहीं किया तो भट्ठे पर काम करने वाले हजारों परिवारों के सामने भूखे मरने की नोबत आ जाएगी। ईंट-भट्ठों में यदि ईंट पकाने के लिए इस बार आग नहीं जली तो भट्ठों पर पथेरों के परिवारों के पेट की आग को कौन और कैसे शांत कर पाएगा? यह ज्वलंत प्रश्र है, जिसका जवाब वर्तमान समय में शायद किसी के पास न हो।
सरसा में 125 ईंट-भट्ठे संचालित
सरसा में इस समय 125 ईंट-भट्ठे संचालित किए जा रहे हैं मगर इस बार ये सभी पूर्व की मानिंद संचालित होंगे अथवा नहीं कहा नहीं जा सकता। क्योंकि इस समय पूरे देश में कोयले के दामों में इतनी अधिक बढ़ोतरी हुई है कि ये भट्ठा संचालित इस बार संचालन पर पसोपेश की स्थिति में हैं। ये स्थिति वास्तव में खतरनाक है क्योंकि जिस कोयले के दाम पिछले वर्ष तक 9 से 10 हजार प्रति टन थे, वही बढ़कर अब 23 हजार रुपए प्रति टन हो गए हैं, जिससे जिले के ईंट-भट्ठा संचालकों के हाथ पांव फूले हुए हैं। जिले में जिन भट्ठा संचालकों के पास एक से अधिक भट्ठे हैं, वे महज एक ही भट्ठा संचालित करने का सोच रहे हैं।
कोयले का नहीं है कोई दूसरा विकल्प
कोयले के माध्यम से भट्ठों पर पकाई जाने वाली ईंटों की गुणवत्ता को श्रेष्ठ माना जाता है और गुणवत्ता के लिहाज से कोयले का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हालांकि औपचारिकतावश तूड़ी से भी कई बार भट्ठों को ईंट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है मगर उससे पकने वाली ईंट की गुणवत्ता किसी भी तरह से उस ईंट के समान नहीं मानी जाती, जो कोयले के माध्यम से पकती है। भट्ठा संचालकों की पसोपेश के चलते अब भट्ठों पर काम करने वाली लेबर का भविष्य भी अधर में लटक गया है क्योंकि अमूमन एक भट्ठे पर करीब 400 लेबर काम करती है और इस लिहाज से जिले के 125 भट्ठों पर काम करने वाली लेबर हजारों में हैं, जो पूरी तरह से भट्ठों के संचालन पर ही निर्भर हैं।
ईंट-भट्ठा एसोसिएशन ने सरकार से लगाई गुहार
जिला ईंट-भट्ठा एसोसिएशन के अध्यक्ष भीम झूंथरा एवं वरिष्ठ पदाधिकारी ओमप्रकाश मेहता ने संयुक्त रूप से कहा कि कोयले के बढ़े हुए दामों के बीच यह मुमकिन नहीं होगा कि ईंट-भट्ठे पूरी तरह से संचालित किए जा सकें। 23 हजार रुपए प्रति टन कोयले की स्थिति से पूरा बजट ही बिगड़ गया है, ऐसे में केवल अब सरकारों पर ही सबकुछ निर्भर हो गया है कि वे इन दामों में किसी प्रकार कमी लाकर स्थिति को इस योग्य बनाएं कि भट्ठे ठीक समय पर पूरी तरह से संचालित हो सकें।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।