खेतों में धान की पराली को नष्ट कर मिला अधिक उत्पादन और खर्च में आई कमी
गुरतेज जोशी
मालेरकोटला। पिछले कई सालों से वातावरण की शुद्धता को मुख्य रखते गांव रुसतमगढ़ के किसान हरमनदीप सिंह ने कभी भी धान की पराली को आग नहीं लगाई बल्कि की धान की पराली को खेतों में ही नष्ट कर हर साल अच्छी उपज लेता है। जानकारी के मुताबिक हरमनदीप पिछले 3 सालों से अपने खेतों में पराली को नष्ट कर पराली का प्रबंध कर रहा है। 27 वर्षीय हरमनदीप सिंह पोस्ट ग्रैजुएट किसान करीब 34 एकड़ जमीन पर जुताई कर रहा है, जिसमें 13 एकड़ की मालकी और 21 एकड़ जमीन ठेके पर ली हुई है।
प्रगतिशील किसान द्वारा हैपी सिडर के साथ करीब 30 एकड़ क्षेत्रफल में बिजवाई की जाती है जो कि पंजाब सरकार के कृषि विभाग की तरफ से सब्सिडी पर लिया था। इस के अलावा वह 4 एकड़ में सब्जियां और मक्का की खेती करता है। उसने बताया कि पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी और कृषि विभाग के आधिकारियों के सुझाए तरीकों से आधुनिक तकनीकी और नयी तकनीक की मशीनरी से धान की पराली का प्रबंधन करना और भी आसान हो गया है। उसने बताया कि पराली (फसलों की अवशेष) को खेत में जज्ब करने के लिए उलटावां हल और सुपर सिडर उसने खुद अपनी, बचत से खरीदे हैं। हरमनदीप सिंह ने बताया कि वह हैपी सिडर से गेहूं की बिजवाई करता है, उनके निजी तजुर्बे अनुसार हैपी सिडर से बीजी गेहूँ का उत्पादन पारंपरिक तरीके से बीजी जाने वाली गेहूं से और अधिक प्राप्त हुआ है।
क्या कहना है कृषि अधिकारी नवदीप कुमार का
कृषि विकास अधिकारी मालेरकोटला नवदीप कुमार ने बताया कि मिशन तंदरुस्त धान की पराली के अवशेष को संभाल के लिए जागरूक करने सम्बन्धित विभाग की ओर से बड़े स्तर पर शुरू की मुहिम के नतीजे आने शुरू हो गए हैं। उन्होंने बताया कि पराली को आग लगाने से जमीन की उपजाऊ शक्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और वातावरण दूषित होता है। कई बार पराली से उठे धुओं की चपेट में आने साथ कीमती जानें भी जाती हैं। विभाग ने पराली के अवशेष की सभ्य संभाल के लिए अलग -अलग खेती मशीनें किसानों को सब्सिडी पर मुहैया करवाई हैं, जिससे पंजाब सरकार के मिशन तंदरुस्त पंजाब को कामयाब किया जा सके।
हरमनदीप ने बताया कि ऐसा करने से खाद और कीटनाशकों का प्रयोग आधा रहा गया है क्योंकि फसल के अंदर धान के पराळी को मिलाने से मिट्टी की सेहत में बहुत सुधार होता है। यह सब पंजाब कृषि की ओर से अलग अलग समय पर लगाई जातीं जागरूकता पैदा करने वाली प्रदर्शनियों के दौरों से संभव हुआ है, जिनसे प्रेरित होकर पिछले कई सालों से किसान ने धान की पराली को जलाना बंद कर दिया, जिससे जमीन की सेहत में सुधार हुआ है।
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