वर्तमान में सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगनी करने का महत्वपूर्ण लक्ष्य रखा है। आगामी दो सालों में इस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव दिखाई देता है किंतु इस क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हो रही है क्योंकि कृषि अवसंरचना जैसे सिंचाई, भंडारण, शीतागारों आदि में निवेश बढ रहा है। किंतु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि छोटे और सीमान्त किसानों पर ध्यान दिया जाए, उनकी ऋण की समस्याओं का समाधान किया जाए और उनके लिए सिंचाई सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं।
छोटे किसान भारत के गौरव हैं और उन पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में इस बात का उल्लेख किया था किंतु हाल के सालों में सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं से अधिकतर बडेÞ किसान और कुछ सीमा तक मध्यम किसान प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा देश में चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर इस बात पर प्रश्न चिह्न लग गया है कि किसान प्रधानमंत्री के इन शब्दों को कितनी गंभीरता से लेते है क्योंकि सरकार अभी तक किसानों के समक्ष झुकने को तैयार नहीं है। साथ ही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कृषि क्षेत्र में सुधार हुआ है और हाल के आंकडे इस बात की पुष्टि करते हैं।
वर्ष 2020-21 में देश में सर्वाधिक 308 मिलियन टन खाद्यानों का उत्पादन हुआ है जो पिछले वर्ष के उत्पादन की तुलना में 3.7 प्रतिशत अधिक है। यह जानकारी केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने दी है। मंत्रालय ने यह भी बताया कि खाद्यान्न टोकरियों में प्रमुख फसलें धान, गेहूं, मक्का, चना और तिलहन में रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। तिलहन के उत्पादन में 9 प्रतिशत तथा दालों के उत्पादन में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार इन क्षेत्रों को प्राथमिकता दे रही है। चालू वर्ष के बजट में कृषि क्षेत्र के डिजिटलीकरण और कृषि अवसंरचना निधि के विस्तार की दिशा में प्रयास किए गए हैं और यह देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत है।
मंडियों के डिजिटलीरकरण से प्रौद्योगिकी उपयोग में सहायता मिलेगी जिससे कार्य कुशलता बढ़ेगी। कृषि क्षेत्र मे ऋण की उपलब्धता लंबे समय से समस्या रही है और इस बारे में प्रश्न उठते रहे हैं कि क्या ऋण सभी किसानों को उपलब्ध हो रहे हैं। इसके लिए पंचायतों और नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी आवश्यक है कि क्या छोटे किसानों की ऋण की आवश्यकताओं को पूरा किया जा रहा है। किंतु केंद्र सरकार ने इस संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया है और न ही देश के पिछडेÞ जिलों के निर्धनतम किसानों तक पहुंचने की सरकार की कोई योजना है।
इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि परंपगरात कृषि के बजाय कृषि के विविधीकरण की आवश्यकता है। इस संबंध में केपीएमजी ने पाया है कि कृषि के लिए 16.5 लाख करोड़ के ऋण के लक्ष्य से ऋण का प्रवाह बढेÞगा और इससे पशुपालन, डेयरी आदि भी लाभान्वित होंगे। वर्ष 2011 की जनगणना में कहा गया था कि प्रत्येक दिन दो हजार किसान कृषि कार्य को छोड़ रहे हैं हालांकि कृषि अभी भी अधिकतर भारतीयों की आजीविका का मुख्य आधार है। अखिल भारतीय स्तर पर सीमांत और छोटे किसान जिनके पास ढ़ाई हेक्टेयर से कम भूमि है उनकी कुल संख्या 87 प्रतिशत है।
किसानों की जनगणना उनके पास उपलब्ध भूमि के आधार पर की जाती है जो छोटे और सीमांत किसानों की संख्या के मामले में अलग अलग राज्यों में व्यापक अंतर है। इन वर्गों के किसानों को अपने उत्पाद तुरंत बेचने पड़ते हैं। शायद इसके लिए मूल्य और उत्पादों की मात्रा पहले से निर्धारित होती है। अधिकतर किसानों के पास अपने उत्पादों को रूक कर बेचने की क्षमता नहीं होती है ताकि उन्हें बढ़ा हुआ दाम मिल सके। ऋणी होने के कारण वे अपने उत्पादों को बिचौलियों को देने के लिए बाध्य होते हैं जो उन्हें ऋण देते हैं तथा इस संबंध में राज्य की एजेंसियों की कोई भूमिका नहीं होती है। अत: किसानों की दशा में सुधार नहीं हो रहा है क्योंकि बडे और मध्यम किसानों की ऋण की आवश्यकताओं का ध्यान रखा रहा है किंतु छोटे और सीमान्त किसानों की ऋण की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा है।
हाल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया कि वे अपने पूंजीपति मित्रों को 40 लाख करोड़ रूपए का कृषि व्यापार सौंपना चाहते हैं। उनके अनुसार वे इस बात को समझ गए हैं और प्रत्येक नागरिक को इस खतरे को समझना चाहिए और किसानों का साथ देना चाहिए। उन्होंने एक आंकड़ा प्रस्तुत किया और प्रश्न उठाया कि वित्त मंत्री इस बात को किस तरह स्पष्ट करेंगे कि लॉकडाउन के दौरान 85 प्रतिशत भारतीयों को आय का नुकसान हुआ है जबकि भारत के अरबपतियों की आय 35 प्रतिशत बढ़ी है। किसानों के आंदोलन को जनता का समर्थन मिलता जा रहा है और इसका कारण यह है कि कृषि क्षेत्र में निजी पार्टियों का प्रवेश हो रहा है जिनकी विश्वसनीयता संदेह से परे नहीं है और यह छोटे तथा सीमांत किसानों के लिए अच्छा नहीं है।
किसानों के ऐसे आंदोलन के प्रभाव को समझना होगा और इसने अब एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया है और इसका प्रभाव ग्रामीण जनता पर भी पड़ रहा है। पंजाब ने हाल के नगरपालिका चुनावों और उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा चुनाव ऐसे समन्वित आंदोलन के प्रमाण होंगे। इस आंदोलन ने कांग्रेस को वामपंथी लोकप्रिय रूख अपनाने में सहायता की है। विपक्ष के सामने अब एक बड़ी चुनौती यह है कि वे किसानों और कृषि संकट के समाधान ढूंढे और उसमें आर्थिक समृद्धि, बेरोजारी तथा कृषि विकास को भी जोडे। हाल के वर्षों में देश में किसानों के बडे आंदोलनों में गुजरात में पाटीदार आंदोलन, महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन और हरियाणा में जाट आंदोलन उल्लेखनीय रहे हैं जो रोजगार और कृषि संकट पर आधारित रहे हैं।
सरकार का ध्यान बडेÞ किसानों पर ही आधारित नहीं होना चाहिए। उन्हें छोटे और सीमान्त किसानों की भी सुध लेनी चाहिए जिनको दैनिक कृषि कार्यों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अत: बेहतर होगा कि एक तकनीकी समिति का गठन किया जाए जिसमें किसान संगठनों के नेताओं को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए कि किस प्रकार छोटे किसानों को आगामी पांच वर्षों में सहायता उपलब्ध करायी जा सकती है। इसके अलावा उन्हें उत्पादन तकनीकी, कृषि के आधुनिकीकरण, ऋण आवश्यकताओं, जल की उपलब्धता आदि के बारे में भी जागरूक कियाजाए। यदि सरकार छोटे और सीमान्त किसानों का भला करने का इरादा रखती है तो उसे इस दिशा में कदम उठाने होंगे।
-धुर्जति मुखर्जी
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।