कोरोना महामारी के कारण बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य सर्वाधिक प्रभावित हुुई। ज्यादातर राज्यों में जहां सवा साल से स्कूल बंद पड़े हंै, वहीं अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों के दबाव के कारण बच्चों का इलाज प्रभावित हुआ है, उन्हें समुचित चिकित्सा सुविधाएं सुलभ नहीं हो पायी है। महामारी के दौरान दो करोड़ तीस लाख बच्चों को डीटीपी का टीका नहीं लग पाया है, जो चिंताजनक स्थिति है। छोटे बच्चों को डिप्थीरिया, टिटनेस और काली खांसी से बचाने के लिए ये टीके जीवन रक्षक हैं। डीटीपी टीकाकरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पोलियो, चेचक जैसी बीमारियों से बचाने वाले टीके हैं। दुनिया में आबादी का बड़ा हिस्सा खासतौर से बच्चे पहले ही कुपोषण से जूझ रहे हैं।
ऐसे में अगर बच्चे को जीवन रक्षक टीके नहीं लग पायेंगे तो बच्चे कैसे स्वस्थ कैसे जीयेंगे? महामारी ने बच्चों की जिन्दगी को बदलकर रख दिया है, स्वास्थ्य खतरों में धकेल दिया है। हालांकि ऑनलाइन कक्षाओं और परीक्षाओं का प्रयोग बहुत सीमा तक कामयाब नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर लोगों के पास ऑनलाइन शिक्षा के बुनियादी साधन जैसे स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप और इंटरनेट आदि उपलब्ध ही नहीं थे। ऐसे में विद्यार्थियों का बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित भी रहा। ऐसे विद्यार्थियों की तादाद भी कम नहीं होगी जो आधे-अधूरे मन से ऑनलाइन व्यवस्था को अपनाने के लिए मजबूर हुए। जिन बच्चों ने पूरी तरह आनलाइन शिक्षा को अपनाया है, उन पर तरह-तरह के शारीरिक एवं मानसिक दबाव बने हैं। स्कूल बंद होने के कारण स्कूल जाने वाले 33 फीसदी बच्चे प्रभावित हुए हैं।
यूनिसेफ के मुताबिक वैश्विक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पोषण, स्वच्छता या पानी की पहुंच के बिना गरीबी में रहने वाले बच्चों की संख्या में 15 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है। एक सर्वे में खुलासा किया गया है कि आॅनलाइन पढ़ाई के कारण बच्चों के देखने और सुनने की क्षमता प्रभावित हुई है। बच्चों को मोबाइल एडिक्शन हो रहा है। वो अब अकेले रहना अधिक पसंद कर रहे हैं, कुंठित है। बच्चों का रुझान अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम्स की ओर अधिक हो गया है। कोरोना काल में एक ओर जहां सभी को अपने रहने और काम करने की तरीकों में बदलाव करना पड़ रहा है तो वहीं बच्चों की पढ़ाई पर भी इस संकट का बहुत गहरा असर पड़ा है।
बच्चों के हाथों में अब कॉपी किताब से अधिक फोन, आईपैड या कंप्यूटर होता है। बदले शिक्षा के स्वरूप ने न केवल बच्चों को बल्कि शिक्षकों को भी ऊब एवं नीरसता दी है। तीसरी लहर की संभावनाओं के बीच स्कूलों का खुलना पूर्णत: सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। फिर भी यह तो तय है कि जैसे ही स्कूल खुलेंगे, विद्यार्थियों की भीड़ बढ़ेगी। और इसी के साथ तीसरी लहर का खतरा भी मंडराएगा। पूर्णबंदी खत्म होने के बाद चरणबद्ध तरीके से काफी हद तक प्रतिबंध हटाए जा चुके हैं। दफ्तरों से लेकर बाजार तक खुल गए हैं।
जिम, सिनेमाघर, होटल, रेस्टोरेंट, पर्यटन स्थल भी चालू हो चुके हैं। ऐसे में स्कूलों को भी अब और लंबे वक्त तक बंद रखना न तो संभव है, न ही व्यावहारिक। महामारी से पहले भी दुनिया भर में शिक्षा की स्थिति बहुत ज्यादा बेहतर नहीं थी। बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा को पटरी पर लाने के लिये सरकारों को गंभीर एवं व्यापक कदम उठाने होंगे।