काबुल फतह के डेढ़ सप्ताह के बाद भी तालिबान के खंूखार आतंकी अफगानिस्तान की ऐतिहासिक पंजशीर घाटी तक नहीं पहुंच पाए हैं। हालांकि पिछले दिनों तालिबान ने पंजशीर के शेर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद को चार घंटे के भीतर सरेंडर करने का अल्टीमेटम दिया था। लेकिन मसूद ने सरेंडर करने के बजाए तालिबान से जंग लड़ने का ऐलान किया है। मसूद ने जंग में अमेरिका से मदद की गुहार लगाई है। उसका कहना है कि वे अफगान स्वतंत्रता के अंतिम गढ के रूप में पंजशीर की रक्षा करेंगे।
अहमद मसूद तालिबान आक्रमणों से पंजशीर को सुरक्षित रखने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। अहमद शाह ने रूस और तालिबानी आक्रमण के विरूद्ध अकेले जंग लड़ी थी। रूस और तालिबान उन्हें कभी हरा नहीं पाया। 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तब उन्होंने विद्रोही ताकतों के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए उन्हें पीछे लौटने को मजबूर कर दिया था। अहमद शाह को पकड़ने के लिए सोवियत सेना ने पंजशीर में नौ बार अभियान चलाए लेकिन उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ी। मुट्ठी भर लड़कों के दम पर सोवियत सेना को करारी शिकस्त देने के कारण अहमद शाह मसूद को पंजशीर के शेर की उपाधि दी गई।
साल 1995-96 में जब काबुल को तालिबान ने पूरी तरह से घेर लिया था तब अहमद शाह मसूद ने कट्टर इस्लामी विचारधारा को ठुकरा कर खिलाफत की आवाज बुंलद की । तालिबान की क्रूर और आतंकी विचारधारा के विरूद्ध उन्होंने संयुक्त इस्लाम मोर्चे का गठन किया जो बाद में नॉर्दन एलांयस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1996 से 2001 के बीच तालिबान को पूरे देश पर कब्जा करने से रोकने के लिए नॉर्दन एलांयस बड़ी बाधा बना था। तालिबान से चार गुना छोटा होने के बावजूद नॉर्दन एलांयस ने जिस हौंसले के साथ तालिबान से लड़ाई लड़ कर पंजशीर की पहुंच से तालिबान को दूर रखा उसे आज भी याद किया जाता है।
पंजशीर काबुल से करीब 100 किलोमीटर उतर-पूर्व में स्थित अफगानिस्तान का एक अहम प्रांत हैं। इसकी जनसंख्या करीब 1 लाख 73 हजार है। अफगानिस्तान के 34 सूबों में से केवल यही एक ऐसा सूबा है, जो पहले भी तालिबान के नियंत्रण से बाहर था और इस बार भी तालिबान के नियंत्रण से बाहर है। 70-80 के दशक में जब सोवियत सैनिकों ने अफगानिस्तान पर धावा बोला था उस वक्त उन्हें भी यहां के लड़ाकों से मुंह की खानी पड़ी थी। चारों ओेर से पहाड़ियों से घिरा यह प्रांत इस बार भी तालिबान के खिलाफ विद्रोह की आवाज बुलंद करता हुआ दिख रहा है।
अब, अफगानिस्तान की इसी ऐतिहासिक और अजेय घाटी पंजशीर में शेर दिल पिता अहमद शाह मसूद के 32 वर्षीय बेटे अहमद मसूद के नेतृत्व में तालिबान के खिलाफ रणनीति बनाई जा रही है। तालिबान के खिलाफ रणनीति में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर अता मुहम्मद नूर भी मसूद के साथ हैं। जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया है, तभी से पंजशीर घाटी में विद्रोही लड़ाकों का जुटना शुरू हो गया था। बताया जा रहा है कि इसमें सबसे ज्यादा संख्या अफगान नेशनल आर्मी के उन सैनिकों की है, जिन्होंने तालिबान के विरूद्ध हथियार नहीं डाले। सालेह इसी इलाके से आते हैं।
उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झूकूंगा। सालेह अशरफ गनी की अनुपस्थिति में खुद को राष्ट्रपति घोषित कर चुके हैं। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, त्याग-पत्र या मृत्यु हो जाने की स्थिति में उपराष्ट्रपति देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है। सालेह तालिबान का विरोध करने के लिए अपनी सेना को पंजशीर में केन्द्रित कर रहे हैं। समाचार तो यह भी है कि अफगानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों से भी तालिबान विरोधी गुटों के लड़ाके अफगानिस्तान के वॉरलॉर्ड कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के गढ पंजशीर में इक्कठा होना शुरू हो गये हंै।
बचपन से ही मसूद ने अपने पिता को तालिबान के खिलाफ लड़ते हुए देखा जिसके कारण अफगानिस्तान और पंजशीर की भौगोलिक परिस्थितियां उनके लिए नई नहीं है। अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए साल 2019 में उन्होंने नॉर्दन अलांयस की तर्ज पर अफगानिस्तान में राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट) बनाकर तालिबान के साथ जंग का ऐलान किया । द वाशिंगटन पोस्ट में छपे लेख में भी मसूद ने तालिबान के विरूद्ध अपने इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। मसूद ने अपने लेख में कहा कि मैं मुजाहिदीन लड़ाकों के साथ तालिबान से मुकाबला करने के लिए तैयार हूं। हमारे पास गोला बारूद और हथियारों का बड़ा भंडार है, जिन्हे हमने अपने पिता के समय एकत्र किया था, क्योंकि हम जानते थे कि यह दिन आ सकता है।
तालिबान के साथ अहमद मसूद के इस संघर्ष में सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंजशीर के साथ जबानी प्रतिरोध में जुटा तालिबान अगर पूरी ताकत के साथ पंजशीर पर हमला कर देता है, तो मसूद और उसके मोर्चें का क्या होगा। सच तो यह है कि तालिबान अब तक दूर से ही पंजशीर को ललकार रहा है, उसने पंजशीर में प्रवेश करने की कोशिश ही नहीं की हैं। अगर पंजशीर की घेराबंदी कर ली जाती है, तो मसूद कितने दिन तक तालिबानियों का मुकाबाला कर सकेगा। अतंत: उसके पास भी सरेंडर के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह जाएगा। फिर सबसे अहम तथ्य यह है कि इस बार तालिबान पुराने वाला तालिबान नहीं है, उसके पास अत्याधुनिक हथियार और गोलाबारूद का बड़ा भंडार है, जिसे भागते हुए अमेरिकी सैनिक यहीं छोड़ गए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि मसूद का प्रतिरोध कब तक और कितना सफल रहेगा।