सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि ऐसी कोई जगह नहीं, जहां वह परमपिता परमात्मा न हो। वो कण-कण, जर्रे-जर्रे में मौजूद है। कोई ऐसा सैकेंड नहीं होता, सैकेंड तो क्या सैकेंड का 100वां हिस्सा भी नहीं होता जब मालिक सारी त्रिलोकियों में न हो। हर समय, हर पल, हर जगह वो मौजूद रहता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान अगर आत्मिक आवाज को सुनता हुआ अच्छे कर्म करता है, तो मालिक उसके और नजदीक होता चला जाता है।
काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन व माया के पर्दे एक-एक करके गिरते चले जाते हैं, आत्मा-परमात्मा का मेल होने लगता है। आप जी फरमाते हैं कि अगर इन्सान मन के अधीन होकर मनमते लोगों की सुनता है, तो पर्दे मजबूत होते चले जाते हैं और मालिक अंदर होते हुए भी कभी भी महसूस नहीं होता। आप आत्मा, परमात्मा के बीच में जो पर्दें हैं, उनको गिराने के लिए सेवा और सुमिरन का सहारा लो। यही ऐसी ताकतें हैं, यही ऐसी शक्तियां हैं, जो आपके अंत:करण को साफ कर सकती हैं, आपके मन को आपका गुलाम बना सकती हैं और मन की गुलामी से आपको आजाद करवा सकती हैं।
इसलिए तन-मन-धन से सेवा करो, मालिक की औलाद का भला करो और साथ में सुमिरन करो। आप जी फरमाते हैं कि सुमिरन में ऐसी शक्ति है कि इन्सान घंटा-घंटा सुबह-शाम सुमिरन करे तो मालिक की दया-मेहर, रहमत बरसनी शुरु हो जाएगी।
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