मीडिया का प्राण तत्व समाचार अर्थात सूचना है। आज सूचनाओं के इस महासमर में बहुत उल्टा सीधा सा दिखाई देता है। कौन सही है, कौन गलत है, जन सामान्य को यह समझ ही नहीं आ रहा है। चारों तरफ सूचनाओं का जाल फैला हुआ है। सभी अपने को सही साबित करने में लगे हुए हैं। आमजन से लेकर खास तक, नेता-अभिनेता, व्यापारी-नौकरी करने वाले सभी अपने को ठीक बताने में लगे हुए हैं। साक्षर हो या निरक्षर सोशल मीडिया सभी का अड्डा बना हुआ है। अड्डा शब्द इसीलिए प्रयोग किया गया, क्योंकि इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ओट में पता नहीं क्या-क्या किया जा रहा है। हालांकि गलत करने वाले बहुत कम होते हैं, लेकिन वही सभी लोगों पर प्रश्न चिह्न लगवा देते हैं। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया को चौथा स्तंभ माना गया है।
न्यायपालिका, कार्यपालिका, संसद अर्थात संसद के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा, चौथा स्तंभ हुआ मीडिया। विचार करें तो लोकतंत्र का यह भवन इन चार स्तंभों पर ही खड़ा है। मीडिया पूरी शासन व्यवस्था, सामाजिक कार्यशैली, सही-गलत आदि सभी बातों को जन समान्य तक पहुंचाने का कार्य करता है। विचारकों का यह भी मत है कि संसदीय लोकतांत्रिक देश में सरकार बनाना अर्थात चुनाव जीतना और सत्ता में आना तथा उसमें बने रहने के लिए मीडिया माध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मीडिया चाहे किसी भी देश का हो वह हमेशा राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों के निशाने पर रहता है। जब वह लोग सत्ता में होते हैं, तो उन्हें मीडिया सही लगता है। जैसे ही वे लोग सत्ता से दूर होते हैं, मीडिया को उल्टा-सीधा कहना शुरू कर देते हैं।
वास्तव में मीडिया तो वही था, वही है और वही रहेगा। लेकिन सत्ता जाते ही सारा दोष मीडिया के सिर पर फोड़ दिया जाता है। सत्ता अपनी राजनैतिक गलत नीतियों के कारण गई, जन तक सही से संवाद आप नहीं कर पाए पर सारा दोष मीडिया पर लगा दिया जाता है। ब्रिटिश सत्ता में एक दशक तक प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर का जब राजनैतिक सूर्यास्त हुआ और उन्होंने जब प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ी तो मीडिया को उन्होंने क्रूर नरपशु की संख्या दी। उनके इस बयान से पत्रकार हैरान रह गए। ब्लेयर का मानना था कि मीडिया नेताओं को सामाजिक फैसले लेने से रोकता है। विचार करें तो कोई भी फैसला लेना, न लेना उस देश की संसद, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल आदि द्वारा होता है।
मीडिया तो उन फैसलों को जनता के दृष्टिकोण से और सरकार के दृष्टिकोण से बताने-समझाने का प्रयास करता है। भारतवर्ष की भी बात करें तो यहाँ भी लंबे समय तक सत्ता में बने रहे राजनेताओं और राजनैतिक दलों की कुर्सी अब चली गई है। उनका राजनैतिक जीवन स्तर धीरे-धीरे नीचे आ रहा है। मीडिया में आकर यह लोग उल्टी-सीधी बयानवाजी करते हैं। मीडिया एक माध्यम है। वह तो सरकार और आमजन के बीच एक कड़ी का काम करता है। जो काम जन को पसंद है, उसे जन के द्वारा स्वीकार किया जाता है, जो उनको पसंद नहीं है उसे छोड़ दिया जाता है। फिर मीडिया पर सवाल क्यों उठाए जाते हैं।
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