सच कहूँ/कर्मवीर
जुलाना। पौली गांव का एक किसान कंपनी से कांट्रैक्ट फार्मिंग करके लाखों की आमदनी कर रहा है। किसान की जमीन भी कम है तो उसने अलग ही तरीका अपनाया। किसान ने पावन धरती नामक कंपनी से कांट्रैक्ट करके साढ़े पांच लाख खर्च किए। कंपनी ने इसके बदले किसान के घर पर ही 280 स्केयर फीट का एक टैंक बनवाया है। जिसमें सीप डाली गई है जिनमें मोती तैयार होंगे। मोतियों से किसान को लाखों की आमदनी हो रही है। पौली गांव के किसान शमशेर मलिक ने बताया कि उसके पास जमीन भी कम थी तो उसने पावन धरती नामक कंपनी से संपर्क किया जिससे उसे लाखों की आमदनी हो रही है।
कंपनी के साथ उसका दो साल का कांट्रेक्ट है
किसान ने बताया कि उसने साढ़े पांच लाख खर्च किए थे। कंपनी ने उसके घर पर एक टैंक बनवाया जिसमें सीप डाली गई हैं। कंपनी उसे हर 20 दिन के बाद साढ़े बारह हजार रुपये दे रही है। इसके अलावा पांच हजार रुपये उसे सीप फार्म की रखवाली और बिजली बिल के मिल रहे है। कंपनी के साथ उसका दो साल का कांट्रेक्ट है। जोकि कोर्ट द्वारा उसे साढ़े पांच लाख की गारंटी के तौर पर कई प्लाटों की रजिस्ट्री मिली है। सीप का संभाल के लिए हर सप्ताह चिकित्सकों की टीम आती है, जो कि कंपनी ही सब खर्च वहन करती है। कंपनी सीप तैयार होने पर पांच प्रतिशत पूरी ब्रिक्री के हिसाब से देगी। एक सीप से लगभग चार से पांच मोती तैयार होते हैं।
मथुरा की कंपनी ‘पावन धरती’ से कांट्रैक्ट करके साढ़े पांच लाख खर्च किए
एक मोती की कीमत 160 रुपये होती है। अगर सारी सीप मर भी जाती है तो भी किसान को मरी हुई सीपों की कीमत का पांच प्रतिशत मिलता है। मरी हुई सीप दवाइयों में प्रयोग की जाती है। किसान के अनुसार कंपनी से उसे लाखों का फायदा हो रहा है। क्योंकि उसके पास ज्यादा जमीन भी नहीं है तो भी वो लाखों रुपये इस खेती के द्वारा कमा रहा है। किसान शमशेर मलिक ने बताया की उसने मथुरा की कंपनी ‘पावन धरती’ से कांट्रैक्ट करके साढ़े पांच लाख खर्च किए। कंपनी उसे हर 20 दिन के बाद साढ़े बारह हजार रुपये खाते में डालती है। इसके अलावा सीप फार्म की रखवाली के लिए पांच हजार रुपए कंपनी अलग से देती है।
कंपनी ने ही किसान के खेत में 280 स्केयर फुट टैंक बनाकर दिया है। किसान ने बताया की कंपनी के साथ उसका दो साल का कांट्रेक्ट है। जोकि कोर्ट द्वारा उसे साढ़े पांच लाख की गारंटी के तौर पर कई प्लाटों की रजिस्ट्री मिली है। अगर सारी सीप मर भी जाती है तो भी किसान को मरी हुई सीपों की कीमत का पांच प्रतिशत मिलता है। मरी हुई सीप दवाइयों में प्रयोग की जाती है। किसान के अनुसार कंपनी से उसे लाखों का फायदा हो रहा है।
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