गांव लालेआणा(भटिंडा) में एक ऐसा परिवार था जिसका वहां के एक परिवार से काफी मनमुटाव था। इस परिवार का मुखिया हमेशा अपने पास हथियार रखता था। उसने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से नाम दान लिया हुआ था। एक दिन वह पूजनीय परम पिता जी से मिला। उसे देखकर पूजनीय परम पिता जी बोले, ‘‘बेटा! क्या बात है, तू हर वक्त हथियार अपने पास रखता है?’’ वह बोला, पिता जी हमारी दुश्मनी बहुत है। इतना सुनकर पूजनीय परम पिता जी बोले, ‘‘बेटा, दुश्मनी को खत्म करो।
इसने बहुत से घर बर्बाद कर दिये। सत्संगी को हमेशा सबके साथ प्रेम का व्यवहार रखना चाहिए। तू गांव में जाकर इस बंदूक को संभाल कर रख दे। फिर खाली हाथ उनके (दुश्मन) के घर जाकर दीनतापूर्वक उनको कहना कि अपनी कोई दुश्मनी नहीं है।’’ फिर वह पूजनीय परम पिता से बोला कि पिता जी, खाली हाथ जाऊंगा तो कहीं वे मुझे मार न दें। पूजनीय परम पिता जी कहने लगे, ‘‘नहीं, तू सीधा उनके घर जाना। तू डर मत, हम तेरे साथ हैं। ऐसा कुछ नहीं होगा।’’ घर जाकर उसने अपने सतगुरू के वचनानुसार वैसा ही किया। बंदूक रखकर वह खाली हाथ सीधा उनके घर चला गया। जब वह उनके आंगन में गया तो उसने अपने दोनों बाजू ऊपर उठा लिये और नम्रतापूर्वक कहने लगा कि मैं तुम्हारे पास दुश्मन बनकर नहीं बल्कि दुश्मनी खत्म करने आया हूं। मुझे पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज जी ने आपके पास गिल-शिकवे दूर करने के लिए भेजा है।
उसकी नम्रता देखकर वे अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने भी उस व्यक्ति को क्षमा करते हुए अपने घर में आदर सहित बैठाया और चाय वगैरह पिलाई। फिर सदा के लिए वे आपसी वैर-भाव भुलाकर एक हो गए। यह पूजनीय परम पिता जी पावन शिक्षाओं पर अमल करते हुए ही संभव हुआ। बाद में उस परिवार ने भी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नामदान प्राप्त कर लिया।
– श्री हाकम सिंह, महमा सरजा, बठिंडा।
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