बाढ़ का बढ़ता प्रकोप

Flood in Indonesia

महाराष्ट्र पिछले कई दिनों से बाढ़ की चपेट में है। भू-स्खलन के कारण राज्य में 150 के करीब मौतें हो चुकी हैं और शवों की तलाश फिलहाल जारी है। राज्य सरकार राहत कार्यों में जुटी हुई है लेकिन समस्या इतनी विकराल है कि केंद्र सरकार को यहां पूरी मदद करनी होगी। यहां राज्य सरकार को किसी राजनीतिक प्रतिष्ठा को छोड़कर लोगों के जीवन को प्राथमिकता देनी होगी। केंद्र को मदद देने में किसी भी प्रकार की देरी नहीं करनी चाहिए। बाढ़ की समस्या इतनी भयानक है कि लोगों को बचाने में किसी भी प्रकार की देरी लोगों की जानों पर भारी पड़ सकती है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जब मौसम विभाग भारी बारिश की चेतावनी देता है तब बाढ़ संभावित क्षेत्रों में साजो-सामान सहित पूरी तैयारी पहले से हो जानी चाहिए, लेकिन हमारे देश में लापरवाही इस कद्र होती है कि स्थानीय लोगों को सतर्क करना तो दूर बल्कि पर्यटकों को भी आने-जाने से नहीं रोका जाता।

भले ही प्रकृति मनुष्य की समझ से परे है, फिर भी मानसून के दिनों में सैलानियों के लिए विशेष तौर पर ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कोई समय व तारीख तय की जा सकती है। बाढ़ से निपटने के लिए तकनीक व संसाधनों के प्रयोग बढ़ाया जाना चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-कानूनी निर्माण बढ़ रहा है, जो बर्बादी को निमंत्रण देने का दूसरा नाम है। बिना मंजूरी के इमारतों का निर्माण के दौरान सुरक्षा संबंधी मापदंडों का ध्यान नहीं रखा जाता। इसी तरह पहाड़ी प्रदेशों में वृक्षों की गैर-कानूनी कटाई व माइनिंग का धंधा भी जारी है। वृक्ष कभी डैम का काम करते थे जिनकी कटाई होने से पानी की गति तेज हो रही है, जिसके बाद जलस्तर बढ़ने के कारण बाढ़ आ जाती है। अब तो बाढ़ को प्रत्येक वर्ष की एक रूटीन घटना समझा जाने लगा है। प्रत्येक वर्ष जानी नुक्सान के साथ-साथ अरबों रुपए का सरकारी व निजी संपत्ति का नुक्सान होता है।

बहरहाल जलवायु में आ रहे बदलाव के चलते यह तो तय है कि प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। इस लिहाज से जरूरी है कि मुंबई के बरसाती पानी का ऐसा प्रबंध किया जाए कि उसका जल भराव नदियों, नालों और बांधों में हो, जिससे आफत की बरसात के पानी का उपयोग जल की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में किया जा सके। साथ ही शहरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए कृषि आधारित देशज ग्रामीण विकास पर ध्यान दिया जाए। बाढ़ को रोकने के लिए कार्यविधि न के बराबर हैं। दरअसल बाढ़ की समस्या समस्या कुछ दिनों बाद आई-गई कर दी जाती है। केवल मृतकों के परिजनों और प्रभावित क्षेत्रों को मुआवजा देना बाढ़ का समाधान नहीं है। बाढ़ के वास्तविक्त कारणों को खत्म करने के लिए राष्ट्र स्तरीय नीतियां व कार्यक्रम बनाने की सख्त आवश्यकता है।

 

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