सरकार को पेगासस पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए

Pegasus Spyware

संसद के मॉनसून सत्र में इस बार हंगामा कथित तौर पर जासूसी के एक अंतरराष्ट्रीय भंडाफोड़ से जुड़ा है। पेरिस स्थित एक मीडिया नॉन प्रॉफिट फॉरबिडेन स्टोरीज और ऐमनेस्टी इंटरनैशनल को विभिन्न देशों के ऐसे 50,000 फोन नंबरों की सूची मिली, जिनके बारे में संदेह है कि पेगासस स्पाईवेयर के जरिए उनकी हैकिंग कराई गई। इन नंबरों में भारत के 40 पत्रकारों सहित केंद्रीय मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं, सुरक्षा संगठनों के मौजूदा और पूर्व प्रमुखों, वैज्ञानिकों आदि के भी शामिल होने की बात कही जा रही है। इस्राइल की एनएसओ नामक कंपनी का एक सॉफ्टवेयर है, पेगासस। इस सॉफ्टवेयर की खूबी यह है कि यह किसी के फोन और कंप्यूटर पर होने वाली बातचीत, संदेशों और चित्रों को रिकॉर्ड कर लेता है और उस व्यक्ति को इसकी भनक तक नहीं लगती।

संसद में विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया है कि पेगासस की सूची में 300 भारतीयों के नाम हैं। इस्राइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाईवेयर से जुड़ा विवाद दो साल पहले भी उठा था। सरकार ने तब भी इस बात से इनकार किया था कि किसी तरह की अवैध निगरानी कराई जा रही है। असली दिक्कत तब उपस्थित होती है, जब सरकारें जासूसी का इस्तेमाल राष्ट्रहित नहीं, स्वहित के लिए करती हैं। वरना क्या वजह है कि पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, जजों, उद्योगपतियों और अपने मंत्रियों को भी सरकार निशाना बनाती है? इस मामले में जिन लोगों की जासूसी करने के कथित आरोप लग रहे हैं, क्या वे राष्ट्रविरोधी हरकतों में शामिल हैं? पत्रकारों के खिलाफ जासूसी तो इसीलिए की जाती है कि उनकी खबरों के गुप्त स्रोतों का सरकार को पता चल सके। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा खंभा है। यह खंभा अगर खोखला हो गया तो विधानपालिका और न्यायपालिका का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

पत्रकारों और सच्चे नेताओं का जीवन खुली किताब की तरह होता है। उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं होता। उन्हें जो कहना या करना होता है, उसे वे खम ठोककर खुले-आम करते हैं। यदि उनका कोई दोष हो तो सरकार जरूर बताए। दोषियों के नाम प्रकट करने में सरकार को डर क्या है? प्राइवेसी लोकतंत्र की ओर से हर नागरिक को मिला एक ऐसा उपहार है, जिसे सत्ता के स्वभाव की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता। वैसे, अभी तो यह देखना होगा कि आरोपों में कितनी सचाई है, लेकिन अगर यह सच है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की इस कोशिश को हलके में लेना वैश्विक लोकतंत्र को खतरे में डालना होगा।

संसद में हंगामा होने पर सूचना तकनीक मंत्री वैष्णव ने जो जवाब दिया, वह खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं है। उन्होंने यह क्यों नहीं बताया कि सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया है या नहीं? इस जासूसी के मामले में भारत सरकार का रवैया दो-टूक होना चाहिए। या तो वह सारे तथ्य स्वयं ही प्रकट कर दे या उन लोगों से माफी मांगे, जिन निर्दोष लोगों पर वह जान-बूझकर या अनजाने में जासूसी कर रही थी। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो यह माना जाएगा कि वह निजता, गोपनीयता और आत्माभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रही है।

 

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