दु:खों से घिरी बहन को पूज्य गुरु जी ने बख्शा खुशहाल जीवन

Guru-ji

सतगुरु की रजा, रमज और रहमत की कोई सीमा नहीं होती और न ही इसे कोई समझ सकता है। उनका हर कर्म सृष्टि के भले के लिए होता है। वे अपने बच्चों के भारी कर्मों को काटकर उनके जीवन को खुशियों से महका देते हैं। आज की साखी ऐसे ही जीवन के सत्य अनुभव पर आधारित है।

बहन गुरप्रीत कौर सुपुत्री सरदार हरनेक सिंह, गली गोदिया प्रैस होरो मजैस्टिक, श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब) से पूज्य सतगुरु जी की अपने ऊपर हुई दया, मेहर रहमत को इस प्रकार बयां करती है।
बात उस वक्त की है जब वो 13 वर्ष की थी। गुरप्रीत कौर एक भयानक बीमारी की चपेट में आ गई। शरीर में इतना दर्द होता कि पीड़ा से उसका रंग पीला जर्द और शरीर ठण्डा हो जाता। उस असहनीय दर्द से वो बहुत देर तक तड़पती रहती। उसकी इस हालत को देखकर उसके माता-पिता और बहन-भाई परेशान हो जाते और सोचते कि इसका क्या बनेगा। दर्द होने के कारण उसकी छाती में रिसोलिया हो गईं। इस बीमारी को लेकर उसने अच्छे-अच्छे विशेषज्ञ डॉक्टरों से इलाज करवाया, लेकिन रत्ती भर भी असर नहीं हुआ।

गुरप्रीत का सबसे पहले दुग्गल होम्योपैथिक फिजिशियन से करवाया गया लेकिन कोई लाभ न हुआ। उसके बाद परिवार वाले उसे डॉक्टर मिसेज रेणू गर्ग (एम.डी., डी.जी.टी.) भटिण्डा के अस्पताल ले गए। तीन-चार महीने तक वहां इलाज चलता रहा। दर्द में कोई कमी न आने के कारण उसे भटिण्डा के एक मशहूर हार्ट स्पैशलिस्ट डॉक्टर मोहन लाल गर्ग (एम.बी.बी.एस., एम.डी.) के अस्पताल में दाखिल करवाया गया। लेकिन उसकी सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ा। इसके बाद गुरू नानक अस्पताल कोटकपूरा रोड़ मुक्तसर में दिल और छाती रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मदन मोहन बांसल (एम.बी.बी.एस., एम.डी.) के यहां से तीन महीने तक इलाज चलता रहा। हजारों रुपये खर्च करने के बाद भी गुरप्रीत कौर की बीमारी वैसी की वैसी रही। इस दौरान उसके शरीर की रसौलियां काफी बड़ी हो गई और डॉक्टरों ने आॅप्रेशन करवाना जरूरी बता दिया।

फिर उसका रसौली का पहला आॅप्रेशन भटिण्डा के सरकारी अस्पताल में हुआ। तीन-चार महीने बाद उसका दूसरा ऑपरेशन मुक्तसर में करवाया गया। आॅप्रेशन के बाद दर्द से गुरप्रीत कौर का बुरा हाल हो गया। वो चैन से ना तो खुद टिक पा रही थी और ना ही घरवालों को टिकने देती थी। दर्द कम होने की बजाय लगातार बढ़ता जा रहा था। इसके बाद परिवार वाले उसे बी.डी.एस. गोल्ड मैडलिस्ट डॉक्टर जे.आर. सोफ्ट के पास दयानंद मेडिकल कॉलेज लुधियाना में ले गए और वहां गुरप्रीत का इलाज चला।

यहां अस्पताल में करीब 10 हजार रुपये के टैस्ट करवाए गए और तब जाकर कहीं दवाई दी गई। इलाज के वक्त तो उसे दर्द में थोड़ी राहत महसूस हुई, लेकिन जब घर पर वापिस पहुंची तो दर्द पहले की तरह बढ़ गया। इतना वक्त बीतने के बाद रसौलियों का आकार और बढ़ गया, जिसके कारण उसका तीसरा आॅप्रेशन डॉक्टर सुभाष गोयल (एमबीबीएस) दयानंद मैडिकल कॉलेज, लुधियाना से करवाया गया। ऑपरेशन के बाद गुरप्रीत को टांकों के कारण असहनीय दर्द सहना पड़ा और हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी।

गुरप्रीत कौर ने बताया कि वो दुनिया में मर-मर के जीअ रही थी। परमात्मा के आगे रोजाना ये ही अरदास करती कि हे परमात्मा मुझे मौत ही दे दे, क्यों तड़पा-तड़पा कर इतनी भयानक सजा दे रहा है। गुरप्रीत की बुरी हालत को देखकर उसकी गली में रहने वाली नाम लेवा लड़की वीरपाल और उसकी मौसी घर वालों से मिली और कहा कि आप गुरप्रीत को सरसा ले जाओ, वहां पर हुत बीमार ठीक होते हैं, लेकिन गुरप्रीत के परिवार वालों ने उनकी बात अनसुनी कर दी। क्योंकि उसका परिवार एक बाहर-मुखी बाबा के पीछे लगा हुआ था। उसने कहा कि गुरप्रीत के ऊपर किसी ओपरी चीज का असर है। उस बाबा ने कहा कि हम सात पाठ करेंगे और 35000 रुपये लेंगे। परिवार के लोग बाबा की बातों में आ गए और वहां पर एक पाठ में 7000 हजार रुपये भी खर्च कर दिए।

लेकिन इसके बावजूद गुरप्रीत का दर्द पहले से ज्यादा बढ़ गया। उस बाबा के पास गुरप्रीत के परिवार वाले तीन-चार साल जाते रहे, लेकिन गुरप्रीत की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। जब गुरप्रीत कौर का परिवार मन्नतें मांग-मांग कर, पूजा कर करके, बाबाओं के आगे हाथ जोड़-जोड़ कर और डॉक्टरों के चक्कर काट-काट कर थक गया तो उसकी मौसी के दोबारा कहने पर परिवार वालों ने डेरा सच्चा सौदा का रूख किया। 13 नवम्बर 1998 के दिन गुरप्रीत और उसके परिवार वालों ने सरसा दरबार में आकर रूहानी सत्संग सुना और 14 नवम्बर को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से नाम दान की अनमोल दात प्राप्त की।

गुरप्रीत बताती हैं कि नाम लेने के बाद उसे ऐसे लगा जैसे इससे पहले उसके सिर पर पाप कर्मों का लाखों मन बोझ था। जो नाम लेते ही उतर गया। मैं ऐसे डॉक्टर के पास पहुंच गई हूँ। जहां मेरे शरीर का भी इलाज होगा और मेरी आत्मा का भी। इससे पहले गुरप्रीत के जीवन के लगातार आठ साल बिस्तर और अस्पतालों में गुजरे थे। लेकिन नाम लेने के बाद उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलावा आया। अब वो दस-पन्द्रह दिनों में अगर बीमार हो भी जाती तो दो-तीन दिनों में ही ठीक हो जाती।

अब गुरप्रीत को लंगर घर में पक्की सेवा मिल गई। कहां तो उसका परिवार और कबीला गुरप्रीत की बीमारी को देखकर ये कहते कि ये (गुरप्रीत) मर जाए तो अच्छा है। कहां, दरबार में 150 सेवादार बहनों का गुरप्रीत के साथ इतना प्रेम-प्यार बढ़ गया कि जैसे वो सभी एक ही परिवार के सदस्य हों। नाम लेने के बाद गुरप्रीत के तीन आॅप्रेशन शाह सतनाम जी सार्वजनिक अस्पताल श्री गुरूसर मोडिया में हुए, जो पूरी तरह सफल रहे और उसे कोई तकलीफ भी नहीं हुई।

एक बार फिर गुरप्रीत कौर की छाती में एक बड़ी रसौली हो गई, जिसके ऑपरेशन से उसके जीवन को खतरा हो गया था। माता गुरदेव कौर लक्कड़वाली ने उसे शाह सतनाम जी स्पैशलिटी अस्पताल में दाखिल करवाया और सुमिरन किया व सतगुरु जी के चरणों में अरदास दुआ की। इसी दौरान उसे दस्त लग गए और जो रसौलियां इतनी सख्त थी, वो दस्त के जरिए बाहर निकल गई और वो बिल्कुल स्वस्थ हो गई। उसके बाद उसके शरीर में न तो कोई रसौली हुई और न ही कभी दर्द हुआ। अब गुरप्रीत कौर दरबार में सेवा करती हैं।

गुरप्रीत कौर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का कोटि-कोटि धन्यवाद करते हुए कहती हैं कि सतगुरु जी ने मेरे मृतप्राय: शरीर में फिर से नया जीवन दान दिया है। सतगुरु जी के चरणों में यही अरदास है कि सारी उम्र डेरा सच्चा सौदा दरबार में मानवता की सेवा और सुमिरन में ही गुजरे। ये शरीर जिसकी अमानत है, उसके ही लेखे लग जाए, क्योंकि सतगुरु के इस उपकार का बदला मैं करोड़ों जन्म पाकर भी नहीं उतार सकती।
”ऐहो मंग मंगां मेरे सतगुरु दयाल जी, ओड़ निभ जाए प्रीती चरणां दे नाल जी।”

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