सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक के नाम के बिना इन्सान का अंत:करण साफ नहीं होता और जब तक दिल का शीशा साफ नहीं होता तब तक मुसलाधार बरसती मालिक की दया-मेहर भी नजर नहीं आती। अपने दिलो-दिमाग को बुराइयों से रहित करने के लिए एक नाम ही उपाय है और कोई उपाय नहीं है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि गुरुमंत्र, नाम, कलमा आपको लगातार अता करना होगा यानि लगातार सुमिरन करना होगा, तभी मन जालिम से लड़ा जा सकता है।
वरना अंदर के गिरे हुए विचार, अंदर की बुरी सोच इन्सान को कहीं का नहीं छोड़ती। अपने अंदर की सोच को काबू करने के लिए सुमिरन करो। अंदर बुरी सोच आ गई, कुछ नहीं होता। बस उस पर अमल न करो लेकिन लगातार सोच चलती रहती है तो लगातार सुमिरन भी चलना चाहिए ताकि उस सोच का असर आपके जीवन पर न हो। मालिक की खुशियों में मन की सोच बाधा न बने, इसलिए लगातार सुमिरन करना जरूरी है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब भी आप घुम रहे हैं, खाली हैं, चलते, बैठके, काम-धंधा करते हुए राम का नाम जपते रहो। जिह्वा से राम-नाम जपना है, इसमें क्या कोई टैक्स लगता है? यह तो है नहीं कि साइड से बोझ उठाकर लाना है।
ख्यालों से जपते रहें। बैठ-बैठे आप किसी का बुरा सोचते हो तो दूसरों का बुरा सोचना अपना ही बुरा करना है। तो बजाय दूसरों का बुरा सोचें, बेहतर है कि आप सुमिरन करके, भक्ति-इबादत करके अपने आपको मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल बना लें और वो किया गया सुमिरन मालिक जरूर कबूल करता है। दो-चार मिनट जितनी देर भी आप सुमिरन करते हैं, वो मालिक की दरगाह में जरूर कबूल होता है। इसलिए चलते, बैठते, काम-धंधा करते हुए सुमिरन करते रहना चाहिए।
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