इन रौचक खेलों को भूले आज के बच्चे

Old-Game

नमस्कार दोस्तों, आज के आधुनिक युग में समय जैसे-जैसे आगे बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे हमारे देश के भविष्य कहलाने वाले बच्चे अपने आपको केवल मोबाइल फोन तक ही सीमित रखते जा रहे है, यहां तक कि बहुत से बच्चों को उनके माता-पिता द्वारा खेले जाने वाले पुरातन खेलों तक के बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए हम आज के इस कॉलम में आपको बताने जा रहे है कुछ ऐसे खेलों के बारे में जिनको खेलने से बच्चों का शरीरिक व मानसिक विकास होता था।

पिट्ठू:-

Pittu

इस खेल में बच्चों की दो टीमें बनती थी जिसमें बराबर खिलाड़ी हुआ करते थे। खेल की शुरूआत टॉस के साथ होती थी, जो टीम टॉस जीत जाती थी वह पहले खेलती थी। खेलने के लिए पत्थर की 6-7 एक समान टुकड़े जिनको बॉल की मदद से टीम के खिलाड़ी द्वारा गिराया जाता था और टुकड़े गिरने के बाद उस टीम के प्लेयर भाग जाते थे। विरोधी टीम द्वारा इस दौरान दूसरी टीम के खिलाड़ी को बॉल से मारा जाता था अगर उस टीम के किसी खिलाड़ी के लग गई तो उस टीम का खिलाड़ी आऊट हो जाता था। लेकिन अगर बिना बॉल लगे बारी ले रही टीम के खिलाड़ी अगर पत्थर के टुकड़ों को जोड़ देती है तो उस टीम का एक प्वाइंट हो जाता है। इसी प्रकार यह गेम आगे चलती रहती है।

गिल्ली-डंडा:-

Gulli-Danda

बच्चों द्वारा इस खेल को भी बड़े शोक के साथ खेला जाता था। इस खेल में लकड़ी की छोटी गिल्ली और एक फुट तक का एक डंडे द्वारा इस खेल को खेला जाता था। इस खेल में भी दोनों टीमों में बराबर के खिलाड़ी होते थे और एक बड़े से ग्राउंड में दोनों टीमें एकट्ठा होकर इस खेल को खेलती थी। इस खेल की खासियत यह थी कि इस खेल में बच्चों की अच्छी खासी वर्जिश हो जाया करती थी, क्योंकि इस खेल में डंडे द्वारा गिल्ली के बड़े दूर-दूर तक शॉट लगाए जाते थे जिस पर विरोधी टीम दौड़-दौड़ कर गिल्ली को लाने के लिए जाती थी।

कंचे:-

Kanche

कांच की छोटे-छोटे गोलाकृति के कंचों द्वारा भी बच्चों द्वारा खूब खेला जाता था। इस खेल में भी दो तीन तरह के खेल होते थे, जिनमें मुख्य खेल जमीन एक एक छोटा गड्डा बनाकर खेला जाता था। जिसमें बच्चों द्वारा एक समान कंचे डालकर सभी कंचों को उस गड्डे में डाला जाता था और जितने ज्यादा कंचे उस गड्ढे में आते उस खिलाड़ी के जितने के चांस ज्यादा हो जाते थे, लेकिन अगर किसी खिलाड़ी के अपनी बारी के दौरान तीन कंचे गड्डे में आ जाते तो उसको फाउल माना जाता और उसकी बारी कैंसल हो जाती और उसे फाउल के रूप में एक कंचा देना पड़ता। बच्चों द्वारा इस खेल को बहुत बड़ी तादाद में एकत्रित होकर अलग-अलग या इकट्ठे खेला जाता था। इस खेल का क्रेज इतना था कि इस खेल को छोटे बच्चों के अलावा बड़े व्यक्तियों द्वारा भी बड़े उत्साह के साथ खेला जाता था।

बांदर किल्ला:-

इस खेल को खेलने में बच्चों को बहुत आनंद आता था। इस खेल में सभी बच्चे अपनी चप्पले गोल दायरे में डाल देते। इसमें एक खिलाड़ी जिसकी बारी होती वह उस गोल घेरे में खड़ा हो जाता था और बाकि खिलाड़ी घेरे के बार रहते। घेरे के अंदर वाला खिलाड़ी बाहर वाले सभी खिलाड़ियों से घेरे में रखी चप्पलें निकालने से बचाता है और बाहर वाले खिलाड़ी चालाकी से घेरे के अंदर वाली चप्पलें निकालने की कोशिश में लगे रहते है। लेकिन अगर घेरे में से चप्पलें निकालते समय अगर बारी देने वाला खिलाड़ी बाहर वाले खिलाड़ी को टच कर देता है तो वह बच जाता और बारी अब उस खिलाड़ी की आ जाती है, लेकिन अगर बाहर वाले खिलाड़ी धीरे-धीरे करके घेरे में रखी चप्पलें निकाल लेते है तो अंत में घेरे वाला खिलाड़ी भाग जाता है और बाहर वाले खिलाड़ी उसके पीछे चप्पलों से हमला बोल देते है। जब तक वह निर्धारित की गई जगह को नहीं छूता तब तक उस पर चप्पलों से हमला होता रहता है। इस तरह बच्चों द्वारा इस खेल का आनंद उठाया जाता था।

-मांगे लाल, सच कहूँ

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