‘‘मस्ताना पैसों का भूखा नहीं है, मस्ताना प्यार का भूखा है’’

mastana

जब लगी तरबूज की बोली

मोती राम जिन्हें पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज प्यार से प्रह्लाद कहकर पुकारते, वाल्मीकि चौक सरसा का रहने वाला पुराना सत्संगी कविराज है। उसकी इच्छा थी कि हमारे इलाके के लोग शराब एवं मांस आदि का सेवन करते हैं यह सब बुराईयां दूर होनी चाहिए। अगर पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज कृपा करके हमारी बस्ती में आकर इनको समझाएं, सत्संग करें व नाम का प्रचार करें तो ये लोग भी अच्छाईयों की तरफ लगें, भक्ति मार्ग अपनाएं तथा नाम-शब्द प्राप्त करके अपना नसीब बनाएं। बेपरवाह जी शाह मस्ताना जी महमदपुर रोही गांव के अमरपुरा धाम में पधारे हुए थे। मोती राम भी वहां दर्श-दीदार करने के लिए गया हुआ था।

प्रह्लाद का विचार था कि मौका मिलने पर अपनी मांग आपजी के सामने रखेगा। आप जी ने सत्संग के दौरान बड़ी संख्या में पहुंची हुई साध-संगत को फरमाया, ‘‘सतगुरू जो वचन करे उसकी पालना करो।’’ आगे फरमाया, ‘‘आगे से हम केवल डेरों में ही सत्संग करेंगे अन्य स्थानों पर नहीं करेंगे।’’ यह सुनकर भक्त प्रह्लाद को लगा कि मेरा ख्याल तो पूरा होना मुश्किल है। हमारी गरीब बस्ती में डेरा बने, तभी बाबा जी का सत्संग हो सकता है। बाद में आप जी ने पूछा, ‘‘प्रह्लाद क्या बात है? तू उदास कैसे है?’’ उसने अपनी मंशा बताई और बस्ती में डेरा बनाने की प्रार्थना की।

Dera Sacha Sauda

आप जी प्रसन्न मुद्रा में बोले, ‘‘आश्रम का नाम क्या रखोगे?’’ वह बोला कि सांई जी आश्रम का नाम आप ही स्वयं रखेंगे। आप जी ने आश्रम का नाम ‘‘मौजपुरा धाम’’ रख दिया और अपने पावन सानिध्य में गरीब में एक आश्रम बनवाया और खूब खुशियां बांटी। गरीब-अमीर, ऊं च-नीच, जात-पात का कोई भेदभाव नहीं था। सभी ने एक साथ मिलकर सेवा की। सभी एक साथ बैठकर खाते-पीते थे। सतगुरू के रूहानी नजारे साध-संगत में सत्संग के दौरान देखने को मिले। नोट, सोना, चांदी व कपड़े आदि सत्संग के दौरान खूब बांटे जाते। दातार जी ने दूर-दूर तक राम-नाम का डंका बजाया। अनेक लोगों ने नाम-शब्द को प्राप्त कर अपना लोक व परलोक सुधार लिया।

एक सत्संगी बागड़ी के खेत में तरबूज की बेल पर एक बहुत सुंदर तरबूज लगा हुआ था। उसने उस तरबूज को वहीं उस टीले की रेतीली मिट्टी में दबा दिया और उस बेल की जड़ को श्रद्धापूर्वक हर रोज पानी देने लगा। उसने सोचा कि इस तरह दबाने से तरबूज बहुत मीठा, रसीला और स्वादिष्ट हो जाएगा और फिर वह इस तरबूज को निकालकर अपने सतगुरू को भेंट करेगा। जब आप जी लालपुरा गांव में पधारे तो उसने बड़े तरबूज को बाहर निकालकर पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज को भेंट कर दिया। आप जी ने तरबूज स्वीकार करके भक्त प्रह्लाद के हाथों अंदर कमरे में रखवा दिया।

अगले ही दिन प्रह्लाद ने देखा कि आप जी अंदर कमरे में पालथी लगाकर भजन में बैठे हैं और आप जी का दायां घुटना उस तरबूज को छू रहा है। तभी भक्त प्रह्लाद के दिल में ख्याल आया कि यह पावन तरबूज मुझे मिल जाए तो मेरा नसीब ही बन जाए। आप जी के पवित्र शरीर का स्पर्श पाकर तो तरबूज अत्यंत पवित्र हो गया है। इस तरबूज का कुछ अंश ही अगर मुझे मिल जाए तो मैं निहाल हो जाऊं। इस बार का मासिक सत्संग गांव लालपुरा बागड़ में था। पूजनीय शाह मस्ताना जी ने तभी एक अद्भुत खेल रचा। आप जी ने प्रह्लाद से कहा, ‘‘अंदर जाकर तरबूज यहां ले आओ। हम इसकी बोली लगाएंगे। जो भी इसकी ज्यादा कीमत चुकाएगा यह उसको ही दे देंगे।’’ प्रह्लाद अंदर से तरबूज उठाने चला गया। उसने सोचा बाहर तो सेठ लोग भी आए हुए हैं।

तरबूज की बोली होगी और मेरे पास तो पैसे भी नहीं है। अगर मुझे इस तरबूज का एक टुकड़ा भी मिल जाए तो मेरा नसीब बन जाएगा। उसने हुक्मानुसार तरबूज उठाकर आप जी के पास रख दिया। आप जी ने खड़े होकर अपने पवित्र चरण को तरबूज पर टिकाते हुए फरमाया, ‘‘जो इस मतीरे को खाएगा, उसको पांच साल का बना बनाया सुमिरन मिलेगा।’’ उस समय तरबूज की कीमत बहुत ही कम हुआ करती थी। लेकिन बोली 200 रूपये से शुरू होकर 750 रूपये तक पहुंच गई। डरते हुए मोती राम ने आप जी से पूछ लिया कि क्या हम गरीब लोग भी बोली लगा सकते हैं? आप जी ने फरमाया,‘‘बोली कोई भी लगा सकता है।

’’ बोली आगे बढ़ी और 850 रूपये तक पहुंच गई। प्रह्लाद ने फिर पूछा कि सांई जी, मैं भी बोली लगा दूं। इस प्रकार आप जी ने कहा‘‘तूं बोलता क्यों नहीं?’’ प्रह्लाद ने बोली लगा दी कि सांई जी, मैं इस तरबूज को खाने के बाद अपना सिर दे सकता हूं। आप जी ने एक, दो तीन फरमाकर बोली समाप्त कर दी। प्रह्लाद तरबूज उठाने को हुआ तो तभी शाह मस्ताना जी ने फरमाया, ‘‘ठहर! इस तरबूज की बोली दुबारा भी हो सकती है यदि किसी के पास दो सिर हों तो।’’ आप ने फिर फरमाया, ‘‘मस्ताना पैसों का भूखा नहीं है। मस्ताना प्यार का भूखा है।’’ सच्चे सतगुरू जी ने प्रह्लाद को प्यार देते हुए वचन फरमाया, ‘‘ये सारा तुम खाना, किसी को मत देना।’’

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