सड़क हादसे में पैरालाइज्ड होने के बाद भी नहीं छोड़ा हौंसला
(Savita of Sirsa)
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बोलीं, अजीब तरीके से देखते हैं लोग, फर्क नहीं पड़ता, बच्चों का सुधारना है भविष्य
सच कहूँ/सुनील वर्मा सरसा। इंसान सपने देखता है, लेकिन समय की करवट के आगे उसके सपनों का वजूद नहीं रहता। वक्त बदलता है तो परिस्थितियों के आगे इंसान को अपने सपने भूलकर ढलना पड़ता है और पेट पालने के लिए जुट जाना पड़ता है। सरसा की सविता के भी सपने बड़े थे। मगर जीवन में आये संकट का सामना करने के लिए उसे ई-रिक्शा चलाना पड़ रहा है। सरसा की पहली ई-रिक्शा चालक सविता पैरालाइज्ड है और ई-रिक्शा चलाकर अपनी दो बेटियों व एक बेटे की परवरिश कर रही है और उनके सपनों को पूरा करने में लगी है।
20 साल बाद वापिस लौटी तो परिवार ने नहीं किया स्वीकार
मां-बाप ने सविता की शादी की। जिसके बाद ससुराल वालों की मारपीट सहन नहीं कर पाई और अपनी 2 बेटियों व एक बेटे को लेकर बहादुरगढ़ चली गई। किसी तरह उसने वहां अपना गुजर बसर किया। लेकिन समय के थपेड़ों ने सविता को वहां भी नहीं बक्शा। कोरोना महामारी में लगे लॉक डाउन के कारण सब बन्द हो गया। जिसके बाद उसका काम भी बन्द हो गया। करीब 20 साल बाद बहादुरगढ़ छोड़कर जब सरिता वापिस सरसा लौटी तो मां-बाप ने भी स्वीकार नहीं किया। जिसके बाद आज सविता ई-रिक्शा चलाकर अपना घर चला रही है।
2017 में हुआ था एक्सीडेंट
साल 2017 में सविता का एक्सीडेंट हुआ। जिसके बाद से सविता पैरालाइज्ड है। सविता की 2 बेटियां हैं व 1 बेटा है। सविता की एक बेटी नौवीं कक्षा में है व दूसरी लड़की ग्रेजुएट है। सविता ई रिक्शा चलाकर अपने बच्चों की पढ़ाई व घर दोनों चला रही है। सविता ने बताया कि घर में मेरे पिता हैं, भाई हैं, लेकिन मेरे साथ कोई भी खड़ा नहीं है। जिस कारण ई रिक्शा चला रही हूं।
बहादुरगढ़ में बेटियों के नाम पर चलाती थी टिफिन सर्विस
सविता ने बताया कि ससुराल वालों की प्रताड़ना सहन नहीं हुई जिसके बाद मैं बहादुरगढ़ अपने बच्चों को लेकर चली गई। बहादुरगढ़ में मेरा कोई अपना नही था। जैसे तैसे करके मैंने मेरी बेटियों के नाम से टिफिÞन का काम शुरू किया। लेकिन लॉकडाउन के कारण वो भी बन्द हो गया। सविता ने बताया कि थोड़े समय बाद जब किसान आंदोलन शुरू हुआ तो सरसा से कुछ लोग बहादुरगढ़ आए। उन्होंने मुझसे पूछा के आप कहां से हो। सविता ने बताया कि किसानों द्वारा अखबार में मेरे बारे में लिखा गया। जिसके बाद मेरे परिवार वालों को पता चला कि मैं बहादुरगढ़ में हूं। उसके बाद भी वो लोग मुझसे मिलने नहीं आए। जिसके बाद मैं खुद ही अपने बच्चों को लेकर सरसा आ गई।
भीख मांगने से अच्छा है कमा के खाती हूँ
सवारियों के व्यवहार को लेकर सविता ने बताया कि लोग बहुत ही अजीब तरीके से देखते हैं कि एक औरत रिक्शा चला रही है। लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि मुझे मेरे बच्चों का भविष्य सुधारना है। सविता ने बताया कि भीख मांगने से तो बढ़िया हूँ जो मेहनत करती हूं। सविता ने कहा कि दूसरे ई-रिक्शा चालक भी मेरा बहुत सहयोग करते हैं। मैं जहां कहीं से भी सवारी लूं तो कोई मुझे रोकता नहीं है।
अन्य ई-रिक्शा चालक सविता का करते हंै उत्साहवर्धन
ई-रिक्शा चालक प्रिंस मदान व रमेश कुमार ने कहा कि उन्हें अच्छा लगता है की एक महिला ई-रिक्शा चला रही है और अपने बच्चों का पेट भर रही है। उन्होंने बताया की सविता केवल सरसा में एक ही महिला ई-रिक्शा चालक है। उन्होंने बताया की सविता के इस जज्बे से हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इंसान को परिस्थितियों के आगे कभी हारना नहीं चाहिए बल्कि लड़ना चाहिए। ई-रिक्शा चालकों ने बताया की हमारी तरफ से सविता के लिए जो भी सहयोग रहेगा हम जरूर करेंगे। सविता ने हरियाणा सरकार से मांग की है कि सरकार द्वारा उसकी बेटियों को पढ़ाने में उसकी मद्द की जाए व उन्हें सरकारी नौकरी दी जाए।
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