सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा गुरुग्राम। जैसे इंसान इंसानों में अपने हित और अहित करने वालों की पहचान रखता है, वैसे ही कीटों में भी अपने दुश्मनों और हितैषियों की पहचान रखनी जरूरी है। क्योंकि सभी कीट किसानों के दुश्मन नहीं होते। यानी सभी कीट फसलों को नुक्सान नहीं पहुंचाते। इसलिए खरीफ फसलों में हानिकारक कीड़े मारने से पहले मित्र कीटों की पहचान करें। मनुष्य ने कीटों को या तो उनके मित्रों या शत्रुओं में विभाजित किया हुआ है, जबकि धरती मां की दृष्टि में सभी जीवों को समान मूल्यों के साथ जीने का समान अधिकार है। कुछ कीट जैसे मधुमक्खियां, रेशम कीट, लाख कीट या परागणक उपयोगी कीट कहलाते हैं।
क्योंकि उनके उत्पाद मनुष्य के लिए लाभकारी होते हैं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के पूर्व निदेशक मानव संसाधन प्रबंधन और कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख रहे प्रसिद्ध कीट वैज्ञानिक प्रो. राम सिंह किसानों और प्रकृति के हित में अपने अनुभव सांझा करते हुए कहते हैं कि जब कोई मधुमक्खी कॉलोनी किसी व्यक्ति के घर के आसपास बसने की कोशिश करती है तो वह व्यक्ति या तो इस कॉलोनी को खदेड़ देगा, या काटे जाने और उपद्रव के डर से कीटनाशक स्प्रे से उसे नष्ट कर देगा। क्योंकि उसके पास विकल्प है कि जरूरत पड़ी तो बाजार से शहद खरीद लेंगे। लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि अगर मधु मक्खियों जैसे परागणकर्ता नष्ट हो जाएं तो इस ग्रह पर
कीड़े मारने हेतु कृत्रिम कीटनाशकों का प्रयोग
कीटनाशकों के आविष्कार के बाद किसानों ने फसलों को नुक्सान पहुंचाने वाले कीड़ों को कीटनाशकों के उपयोग से अंधाधुंध समाप्त करने का प्रयास शुरू कर दिया। वास्तव में किसी भी फसल पर पाए जाने वाले कीड़ों की 99.9 फीसदी आबादी को प्रकृति द्वारा विभिन्न जैविक (शिकारियों, परभक्षी, परजीवी, परजीवी रोग और भोजन) और अजैविक (तापमान, वर्षा, हवा, बाढ़ आदि) एजेंसियों के माध्यम से संतुलन में रखा जाता है। इस घटना को किसी भी जीव की सामान्य संतुलन स्थिति के रूप में जाना जाता है। इसे पर्यावरण प्रतिरोध में वृद्धि करके जैविक क्षमता पर नियंत्रण के रूप में भी जाना जाता है। किसान अभी भी संतुष्ट नहीं हैं। वे चाहते हैं कि उनकी फसल को मात्रा और गुणवत्ता दोनों के मामले में कोई नुक्सान न हो और किसान फसलों पर दिखाई देने वाले कीटों की 0.1 फीसदी आबादी को भी खत्म करने के लिए इच्छुक हैं। उन्हें इस दृष्टिकोण के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
सरसा में कपास पर 162 कीड़े सूचीबद्ध
प्रो. राम सिंह कहते हैं कि कपास की फसल का उदाहरण लें तो एक मौसम में कपास की फसल में आने वाले 1326 कीटों को सूचीबद्ध किया गया है। भारत के उत्तरी भाग (सरसा जिले) में उनकी उपस्थिति के लिए 162 कीड़े दर्ज किए गए थे, लेकिन मुश्किल से 3 से 4 कीड़ों को किसी विशेष मौसम में प्रमुख कीट के रूप में नामित किया जा सकता है। आर्थिक क्षति से बचने के लिए मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। बाकी कीट या तो बहुत मामूली महत्व के होते हैं, जिससे मामूली नुक्सान होता है या हानि रहित होते हैं। अन्य समूह में किसानों की मदद करने वाले कीट हैं (शिकारी और परजीवी सहित), क्योंकि वे अन्य शाकाहारी कीड़ों को भोजन के रूप में खाते हैं। ये कीट बड़ी संख्या में हैं और किसानों द्वारा अपनी फसलों के प्रमुख कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव से जल्दी ही मर जाते हैं।
पाइरिला के नियंत्रण का उत्तरी भारत में सर्वोत्तम उदाहरण
गन्ने में 80 के दशक में विनाशकारी कीट पाइरिला के नुक्सान से फसल को बचाने के लिए बहुत सारे कीटनाशक स्प्रे किए गए तब भी भारी नुक्सान हुआ। लेकिन पिछले 40 वर्षों के दौरान 3 से 4 पाइरिला के प्राकृतिक शत्रुओं (परजीवी) के उपयोग से पाइरिला का उत्तरी भारत में पूर्ण नियंत्रण किया गया। प्रो. राम सिंह 1985-86 में हरियाणा के छह चीनी मिल क्षेत्रों में पाइरिला के प्रबंधन में प्राकृतिक दुश्मनों की सफलता की निगरानी करने वाली टीम का हिस्सा थे। किसानों को हर फसल में मौजूद कम हानिकारक कीटों या मित्र कीटों के बारे में शिक्षित करने की बहुत आवश्यकता है, ताकि उपयोगी कीटों का संरक्षण किया जा सके और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग कम किया जा सके। प्रोफेसर राम सिंह ने समझाया कि कैसे किसान बाहरी रूप से समान दिखने के कारण एक मित्र कीट को अपना दुश्मन समझ लेते हैं।
मित्र कीट व शत्रु कीट के बीच का अंतर
मित्र कीट लेडीबर्ड बीटल विभिन्न फसलों जैसा की सरसों, सब्जियां, ककड़ी, भिंडी, कपास आदि में नरम शरीर वाले कीड़े जैसा की एफिड, स्केल कीड़े, मिली बग (रस चूसने वाले कीट) को खाते हुए पाए जाते हैं। यह मित्र कीट कई कीड़ों को खाता है, जो फसलों को काफी नुक्सान पहुंचाते हैं। आकार और रंग में इसी तरह का दिखने वाला बीटल, जिसे लोकप्रिय रूप से हड्डा बीटल के नाम से जाना जाता है। यह बैंगन, टमाटर और आलू की पत्तियों को गंभीर नुक्सान पहुंचाती है। दोनों में अंतर यह है कि लेडीबर्ड बीटल का सिर काला होता है और हड्डा बीटल का सिर नारंगी होता है।
एक परभक्षी कीट जिसे प्रार्थना मंटिस कहा जाता है। खरीफ की फसलों पर अन्य हानिकारक कीड़ों को खाने के लिए आमतौर पर देखा गया है। यह कीट हरे वयस्क टिड्डे की तरह दिखता हैं, जो खरीफ मौसम में कई फसलों की पत्तियों पर भक्षण करता हैं। किसान गलती से कीटनाशकों के प्रयोग से टिड्डा समझकर प्रीइंग मैंटिस को मार सकते हैं।
एक परभक्षी रेडुविड बग कपास के खेत में अन्य हानिकारक कीड़ों को खाते हुए काफी आसानी से देखा जा सकता है। वहीं कपास की फसल पर अगस्त से अक्टूबर तक कपास का हानिकारक कीट लाल बग बहुत आम है। परभक्षी को किसान आसानी से लाल बग समझकर नियंत्रण उपायों को आमंत्रित कर सकते हैं।
लेसविंग के लार्वा जुलाई से अक्टूबर तक कपास और अन्य फसलों के कई रस चूसने वाले कीड़ों का बहुत प्रभावी शिकारी है। लेकिन साथ ही फसल के पत्तों में एक लेसविंग जैसा दिखने वाला टिड्डा किसानों को अनावश्यक रूप से कीटनाशकों के छिड़काव के लिए आसानी से भ्रमित कर सकता है।
एपिरिकेनिया मोथ गन्ना पाइरिला का एक बहुत ही प्रभावी परजीवी है, जो आसानी से सफेद मक्खी का वयस्क समझा जा सकता है और किसानों को कीटनाशक छिड़काव के लिए प्रेरित कर सकता है।
सर्दियों में सरसों और संबंधित सब्जियों के विभिन्न कीड़ों पर एक और परजीवी डायएरेटीला रैपे रंग और आकार में आसानी से सरसों कि आरा मक्खी वयस्क ऋके समान दिखता है और नियंत्रण उपायों का उपयोग करने के लिए किसानों का ध्यान आकर्षित कर सकता है।
टैचिनिड फ्लाई अन्य हानिकारक कीड़ों को खाने वाला एक उपयोगी परभक्षी है, लेकिन यह मक्खी आकार और रंग में मवेशी जानवरों के प्रमुख परजीवी मक्खी समान दिखती है, जिससे कभी-कभी गलत फैसले लिए जा सकते हैं। कीटनाशकों के विवेकहीन प्रयोग के पक्ष में नहीं
कीटनाशकों के विवेकहीन प्रयोग के पक्ष में नहीं
प्रो. राम सिंह ने किसानों को खेत में कीटनाशकों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतने के ये कुछ ही उदाहरण दिए हैं। किसानों को अपनी फसलों में मौजूद हानिकारक बीमारियों और कीड़ों को जानने के साथ अन्य हानि रहित और किसान हितैषी कीड़ों को जानने की भी समान आवश्यकता है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक या दो बड़े कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए इस प्रक्रिया में 100 निर्दोष जानवरों की मौत हो जाती है। यह एक अत्यधिक नाजुक कृषि-परिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है, जो स्वयं मनुष्य के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। पर्यावरण में ऊर्जा के प्रवाह और खाद्य श्रृंखला में गड़बड़ी मनुष्य के अस्तित्व के लिए सीधे तौर पर हानिकारक हंै। इसलिए प्रो. राम सिंह फसलों में कीटनाशकों के विवेकहीन प्रयोग के पक्ष में नहीं हैं।
इंडोनेशिया में चावल की फसल में कीटनाशकों पर पाबंदी
प्राकृतिक शत्रुओं के माध्यम से गन्ना पाइरिला नियंत्रण के अलावा प्रो. राम सिंह ने इंडोनेशिया के एक अन्य अत्यधिक सफल उदाहरण का हवाला दिया। 1980 के दशक में सरकार ने चावल की फसल में किसी भी कीटनाशक की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। 5 से 6 वर्षों के प्रतिबंध के दौरान कीटनाशकों के उपयोग के बिना चावल की फसल का क्षेत्र और उपज लगातार बढ़ी, क्योंकि किसानों को किसान फील्ड स्कूलों के माध्यम से सलाह दी गई थी कि कीटनाशकों के बिना कीड़ों और बीमारियों को कैसे नियंत्रित किया जाए। अब समय आ गया है कि किसान अपने मित्र कीटों की उचित पहचान कर पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से आर्थिक क्षति को रोकने के लिए कीटों की निगरानी करें और कीटनाशक मुक्त फसल सुनिश्चित करें।
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