विडंबना। सरकारी दावों के विपरित सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रही प्रतिभा
(Handball Player Anuradha )
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बोली-अगर सरकार से मदद मिली तो खेल में आगे बढूंगी और पिता का हो सकता है इलाज
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नेशनल में गोल्ड मैडल जीतना है लक्ष्य
सच कहूँ/कुलदीप स्वतंत्र रेवाड़ी। ‘सफलता उनको मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता होंसलों से उड़ान होती है’, जी हाँ, ये पंक्तियां गुनगुनाने में बहुत अच्छी लगती हैं। लेकिन इन पंक्तियों को सार्थक करने में बहुत पसीना बहाना पड़ता है। परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, जिनको अपने लक्ष्य को पाने की जिद्द होती है, वे परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए मंजिल की तरफ बढ़ने से नहीं रुकते। उन्हें हमेशा अपना लक्ष्य ही दिखाई देता है। ऐसी ही कुछ कठिन परिस्थितियों से लड़ रही हैं रेवाड़ी जिले के गादला गांव की हैंडबॉल खिलाड़ी अनुराधा।
कोचिंग के लिए वह गुरावड़ा स्टेडियम में 8 किलोमीटर दूर जाती
लगभग 5 साल पहले अनुराधा के पिता लकवा से पीड़ित हो गए और इसी समय उन्होंने हैंडबाल खेल क्षेत्र में कदम रखा। कोचिंग के लिए वह गुरावड़ा स्टेडियम में 8 किलोमीटर दूर जाती। अपनी किस्मत आजमाने के लिए पिता की हालत को देखकर अनुराधा को लगा कि कैसे वह अब कोचिंग ले पाएगी और अच्छी खिलाड़ी बन पाएगी। लेकिन अपने हौंसले और जज्बे के दम पर वह आगे बढ़ी और गुरावड़ा स्टेडियम में हैंडबाल की कोचिंग के लिए कदम रख दिया।
पशु पालकर चलाया घर का खर्च
पिता के लकवा पीड़ित होने से अनुराधा ने अपनी माँ के साथ मिलकर घर का खर्च चलाना शुरू कर दिया। घर में सुविधाओं का अभाव है, टॉयलेट तक नहीं है, बीपीएल कार्ड तक भी नहीं है। उन्होंने बताया कि उन्होंने बीपीएल के लिए अप्लाई किया हुआ है, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। अगर सरकार से मदद मिलती है तो बहन-भाई की पढ़ाई पूरी हो सकती है और मेरा गेम पूरा हो सकता है और पिता का इलाज भी हो सकता है। अनुराधा अपनी माँ के साथ मिलकर मेहनत मजदूरी करके अपने घर का खर्च चला रही है।
- धीरे-धीरे अनुराधा के लिए यह हर-रोज का हिस्सा बन गया।
- अनुराधा सुबह उठकर घर का काम निपटाती और दोनों छोटे भाई बहनों को स्कूल भेजती है।
- फिर खुद तैयार होकर गुरावड़ा स्टेडियम में पहुंचकर अभ्यास करना उनके जज्बे का हिस्सा है।
- इसी जज्बे के दम पर उन्होंने यहां तक का सफर तय कर लिया।
नेशनल में गोल्ड मैडल जितना सपना
अनुराधा ने कहा कि उनका सपना हैंडबाल में गोल्ड मैडल जितना है। उन्होंने बताया कि सिल्वर मैडल हासिल कर लिया है, अब गोल्ड मैडल जीतने के लिए वह खूब मेहनत करेगी और एक दिन अपने पिता के हाथ में गोल्ड मैडल अवश्य लाकर रखेगी।
पिता चला रहे थे किरयाना की दुकान
अनुराधा ने बताया कि उनके पिता राजबीर किरयाना की दुकान चलाते थे। लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। पांच साल पहले उनके पिता लकवा से पीड़ित हो गए और उनकी किरयाना की दूकान छूट गई। आठ महीने तक उनके पिता चारपाई पर ही रहे। उनके लिए चलना फिरना मुश्किल हो गया था।
- अनुराधा के सपने घर की दयनीय हालत के अँधेरे में गुम होते नजर आ रहे थे।
- दुकान की जिम्मेदारी उनके चाचा ने ले ली।
- इन विकट परिस्थितियों में अनुराधा ने गुरावड़ा के खेल परिसर में हैंडबाल की कोचिंग के लिए पहला कदम रखा था।
- अनुराधा ने अब पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने मेहनत के बल पर राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल कर लिया।
ये रहीं उपलब्धियां :
जनवरी 2017 में बंगलौर में आयोजित स्कूली नेशनल अंडर-17 में सिल्वर मैडल, नेशनल स्कूल गेम्स 2017-18 एनसीटी दिल्ली में तीसरे स्थान पर रही। नेशनल स्कूल गेम्स 2018-19 शिवपुरी मध्य-प्रदेश में भाग किया। गर्ल्स गवर्नमेंट कॉलेज गुरावड़ा में बेस्ट एथलीट का अवार्ड जीता।