सच कहूँ/संदीप सिंहमार, हिसार। वैश्विक महामारी कोविड-19 कोरोना वायरस का असर स्वास्थ्य के साथ-साथ शिक्षा में रोजगार पर भी पड़ा है। शुरूआत में लोगों को अपने स्वास्थ्य व रोजगार बचाने की चिंता थी वहीं अब शिक्षा की चिंता भी सताने लगी है। बच्चों की शिक्षा को लेकर सरकार चाहे परेशान हो या न हो लेकिन शिक्षा के मंदिरों में अध्ययनरत विद्यार्थी,अभिभावक शिक्षक व समाज के प्रबुद्ध लोगों ने इस विषय पर अब मंथन करना शुरू कर दिया है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी द्वारा एक दिन पहले घोषित किए गए दसवीं कक्षा के परीक्षा परिणाम के बाद अब इस परीक्षा परिणाम पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
हालांकि हरियाणा सरकार व हरियाणा के शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने आंतरिक मूल्यांकन व पर्यावरण के आधार पर प्रायोगिक परीक्षा में लगाए गए अंकों के आधार पर परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया है। जैसे ही यह परीक्षा परिणाम सामने आया तो शत-प्रतिशत अंक हासिल करने वाले बच्चों की संख्या 60 हजार को भी पार कर गई। ऐसी स्थिति में बच्चे अभिभावक व शिक्षक चिंतन की मुद्रा में आ गए। खास बात यह है कि दसवीं कक्षा तक पांच विषय तो अनिवार्य तौर पर पढ़ने पड़ते हैं। एक विषय ही विकल्प चुनना पड़ता है। दसवीं कक्षा के बाद जब विद्यार्थी 11वीं कक्षा में दाखिला लेता है तो उसे आर्ट्स, कामर्स, मैडिकल या मैडिकल में से एक दिशा चुननी पड़ती है। इन्हीं विषयों के आधार पर यह निर्धारण हो पाता है कि बच्चा भविष्य में एक शिक्षक,अधिकारी, चिकित्सक, बैंक बैंकिंग सेक्टर या फिर अन्य किस दिशा में अपने करियर की शुरूआत करना चाहता है।
वर्तमान में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड का जो परिणाम सामने आया है उसने सबको संशय में डाल कर रख दिया है, क्योंकि भारत देश की शिक्षा प्रणाली में अभी तक अभिभावक या शिक्षक की बच्चे के विषय चुनते आए हैं। विषय के चुनाव में स्वयं बच्चा दिलचस्पी नहीं दिखा पाता और बच्चा दिलचस्पी दिखाता भी है तो उसकी कोई सुनता नहीं है। अब सबसे बड़ी यही समस्या अभिभावकों को लेकर स्कूलों के दरवाजे तक है विषय निर्धारण के लिए इस परीक्षा परिणाम के साथ किसी प्रकार का कोई मापदंड अभी तक हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड हरियाणा शिक्षा निदेशालय पंचकूला व स्वयं हरियाणा सरकार के पास नहीं है।
मूल्यांकन,आंकलन या परिणाम ! हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा घोषित की गई दसवीं कक्षा के परिणाम के बाद सबसे बड़ी सोचने की बात यह है कि इस परीक्षा परिणाम को मूल्यांकन,आंकलन या फिर परीक्षा परिणाम कहा जाए। कोविड-19 के कारण शैक्षणिक सत्र 2020-21 में स्कूलों में फिजिकली तौर पर कक्षाएं दिसंबर में आरंभ हुई थी। मूल्यांकन के लिए बच्चों का फेस-टू-फेस होना जरूरी है। इसी प्रकार आंकलन तब होता है। जब एक निर्धारित समय में सिलेबस पूरा किया जाए। उसी सिलेबस में से सवाल पूछे जाते हैं तो उसे आंकलन कहा जाता है। फिर बात आती है परीक्षा परिणाम की। मूल्यांकन व आंकलन दोनों को जोड़कर परीक्षा परिणाम तैयार किया जाता है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में केंद्र सरकार के निर्देशानुसार परीक्षा परिणाम तो जारी कर दिया गया लेकिन उसमें मूल्यांकन व आंकलन को दूर रखकर तैयार किया गया है।
गिरेगा शिक्षा का स्तर:- दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत पहले ही शिक्षा के स्तर में कमजोर चल रहा है। बिना परीक्षा के परीक्षा परिणाम जारी करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट जरूर आएगी। दसवीं कक्षा के परीक्षा परिणाम का असर बाकी कक्षा के बच्चों पर भी देखने को मिलेगा। इस परीक्षा परिणाम से चाहे प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग ने अपनी पीठ थपथपा ली हो लेकिन इस परीक्षा परिणाम से न तो खुद विद्यार्थी संतुष्ट है और न ही अभिभावक। बिना मेहनत के शिक्षण संतुष्ट कैसे हो सकता है।
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