सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की ताजा रपट के अनुसार देश बेरोजगारी के भयावह दौर से गुजर रहा है। मई महीने में देश में बेरोजगारी दर 12 फीसद रही, जो पिछले एक साल में सर्वाधिक तथा अप्रैल महीने की तुलना में चार फीसद अधिक है। महामारी की वजह से न सिर्फ शहरी बल्कि एक बड़ी ग्रामीण आबादी को भी बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ा है। पिछले एक महीने में शहरी और ग्रामीण बेरोजगारी दर में क्रमश: पांच और तीन फीसद की वृद्धि हुई है। बढ़ती बेरोजगारी ने सरकार और समाज की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
देश में बेरोजगारी का यह हाल तब है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को लॉकडाउन से बचाने और राज्यों को इसे ‘अंतिम विकल्प’ के रूप में इस्तेमाल करने की नसीहत दी थी। जिसके बाद कई राज्यों ने पूर्ण तो कइयों ने आंशिक रूप से लॉकडाउन लगाए। उत्तरप्रदेश सरकार ने ‘आंशिक कोरोना कर्फ्यू’ जबकि झारखंड सरकार ने इसे ‘स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह’ नाम देकर आर्थिक संतुलन स्थापित करने की कोशिशें कीं। लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचती है और इस दौरान बेरोजगारी दर बड़ी तेजी से बढ़ती है। पिछले साल तालाबंदी और आर्थिक गतिविधियों के ठप्प हो जाने से मई महीने में ही बेरोजगारी दर अप्रत्याशित रूप से 23.5 फीसद तक पहुंच गई थी। लेकिन केंद्र की सकारात्मक पहल और राज्यों द्वारा समझदारी से इस विकट स्थिति को संभालने की कोशिशों का ही नतीजा है कि गत वर्ष की तुलना में मई महीने में बेरोजगारी दर उसकी आधी रही। हालांकि साल भर बाद भी लोगों की नौकरी छीनने के मामलों में किसी भी तरह की कमी नहीं आई है।
एक सर्वे के अनुसार देश के 97 फीसद घरों में आय प्रभावित हुई है। वहीं आजीविका और आय के खत्म होते स्रोत ने तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसी विकृतियों को बढ़ावा दिया है। 45.6 फीसद बेरोजगारी दर के साथ दिल्ली पहले, जबकि हरियाणा 29.1 फीसद के साथ दूसरे स्थान पर है। बेरोजगारी के मोर्चे पर कमोबेश सभी राज्यों का हाल बुरा है। पिछले साल कोरोना की वजह से डूबी अर्थव्यवस्था को उबारने की कोशिशों पर दूसरी लहर ने पानी फेरने का काम किया है। एक अदृश्य विषाणु ने सामाजिक और आर्थिक ढांचे को तहस-नहस कर दिया है। बढ़ती बेरोजगारी से गरीबी की समस्या ने और विकराल रूप धारण कर लिया है।अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 23 करोड़ लोग गरीबी के दलदल में फंसे थे।
वहीं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की मानें तो वैश्विक बेरोजगारी ने कामकाजी निर्धनता उन्मूलन में पिछले पांच साल की प्रगति को व्यर्थ कर दिया है। कामकाजी निर्धनता 2015 के स्तर पर लौट गई है। उसी वर्ष 2030 का टिकाऊ विकास एजेण्डा भी तय हुआ था। निष्कर्ष यह है कि जहां से शुरूआत की गई थी, महामारी की वजह से पांच साल बाद फिर वहीं पहुंच गये। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अनुमान लगाया कि अगर दुनिया में महामारी नहीं आती तो करीब तीन करोड़ नई नौकरी पैदा हो सकती थी। हालांकि ऐसा नहीं है कि देश में बेरोजगारी और नौकरी छीने जाने के मामले कोरोना काल में ही बढ़े हैं। वास्तव में देश में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या प्रारंभ से ही विकास की अनुगामी समस्या बनी हुई है।
आमतौर पर प्रचलित मजदूरी दर पर योग्यता के अनुसार काम न मिलने की दशा को बेरोजगारी कहा जाता है। प्रच्छन्न, खुली, चक्रीय, मौसमी और शिक्षित आदि बेरोजगारी के ही प्रकार हैं। इनमें शिक्षित बेरोजगारी राष्ट्र की प्रगति में सबसे बड़ी बाधक साबित होती हैं।
क्षमताओं से परिपूर्ण युवा जब नौकरी के लिए बहाली की बाट जोहता है या फिर अपनी योग्यता से नीचे की नौकरी करने को लाचार होता है, तो इस तरह वह क्षुब्ध मन से काम करना प्रारंभ कर देता है। विडंबना यह है कि एक तरफ देश में रोजगार के अवसरों की भारी कमी है, तो दूसरी तरफ बेरोजगारी का दंश झेल रहे भुक्तभोगियों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है,फलस्वरूप बेरोजगारी की गर्त में फंसे रहना उनकी विवशता हो जाती है। इसी बेबसी की आड़ में कई युवा नकारात्मक मार्ग अख्तियार कर लेते हैं और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर देते हैं।
विश्व के सबसे बड़े युवाराष्ट्र में शिक्षित और डिग्रीधारी बेरोजगार युवाओं की फौज भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।यह चिंतन करने का समय है कि कहीं हमारी मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में खोट तो नहीं, क्योंकि ऐसी शिक्षा ग्रहण करने से क्या फायदा, जो कल युवाओं को जीविकोपार्जन के लिए दर-दर भटकने को मजबूर करे। जब ऐसी विकट स्थिति पढ़े-लिखे युवाओं के जीवन में आएगी तो या तो वे अपनी रुचि और समझ के साथ स्वरोजगार अपनायेंगे या नकारात्मक रुख अपनाकर सरकारी व्यवस्था के खिलाफ हिंसक या अहिंसक तौर पर आक्रोश व्यक्त करेंगे।
हालांकि देश में सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो, बेरोजगारी की समस्या सदैव बरकरार ही रही है।क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल भरा कार्य रहा है। बहरहाल बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए सरकार को जहां ठोस नीति के जरिए बेकारी उन्मूलन और अवसरों के सृजन के प्रति संजीदा होना चाहिए, वहीं नौकरी के लिए केवल सरकार पर आश्रित ना होकर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाना भी युवाओं के लिए फायदेमंद हो सकता है। कोरोना से उपजा रोजगार का यह संकट कब खत्म होगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन फौरी तौर पर लोगों में व्याप्त आर्थिक असुरक्षा के भाव को खत्म करने की दिशा में सरकार को कड़े से कड़े कदम उठाने होंगे।
– सुधीर कुमार
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