संयुक्त किसान मोर्चा के बातचीत के प्रस्ताव को स्वीकार क्यों नहीं कर रही सरकार
सच कहूँ/अनिल कक्कड़, चंडीगढ़। राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने आरोप लगाया कि सरकार किसान आंदोलन और कोरोना दोनों को ही जानबूझकर खत्म करना नहीं चाहती। ताकि, इनकी आड़ में लचर अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, बिगड़ी हुई कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके। उन्होंने आगे कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के बातचीत के प्रस्ताव के महीने भर बाद भी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, यही कारण है कि सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार संयुक्त किसान मोर्चा के बातचीत के प्रस्ताव को स्वीकार क्यों नहीं कर रही है। एक तरफ तो सरकार में बैठे हुए लोग कह रहे हैं कि किसान आंदोलन से कोरोना बढ़ा है, दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से आये बातचीत के प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। सरकार के रवैये से ऐसा लगता है कि वो चाहती है कि लोग कोरोना से जूझते रहें और देश के किसान अपनी मांगों को लेकर दु:खी मन से अंतहीन आंदोलन करते रहें।
हाथ पर हाथ धरे क्यो बैठी है सरकार?
दीपेंद्र ने सरकार से सवाल किया कि वो कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही? पिछले साल के लॉकडाउन के बुरे असर से शहरों और गांवों के गरीब अभी तक जूझ रहे हैं और इस बीच कोरोना की दूसरी लहर ने उन्हें आर्थिक तौर पर बुरी तरह तोड़ दिया है। आर्थिक लिहाज से देखा जाए, तो महामारी में इलाज के बढ़ते खर्च, ऑक्सीजन, दवाईयों की किल्लत कालाबाजारी और डीजल-पेट्रोल की आसमान छूती कीमतों, भारी-भरकम टैक्स वसूली से लगातार बढ़ रही महंगाई जैसे कारणों ने आम गरीबों, किसानों की परेशानियों में जले पर नमक छिड़कने का काम किया है।
सरकार एमपीलैड फंड बहाल करे तो पूरा फंड सरकारी अस्पतालों को देंगे
दीपेंद्र ने कहा कि भगवान करे कि तीसरी लहर आये, लेकिन अगर आई तो ऐसी तैयारी हो कि फिर किसी की जान जाने की नौबत न आये। महामारी के समय सांसद निधि से जनस्वास्थ्य हित में काफी काम किये जा सकते हैं। अगर भारत सरकार सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि एमपीलैड को बहाल करती है तो वे इस साल का पूरा फंड हरियाणा के सरकारी अस्पतालों, सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, मोबाइल मेडिकल वैन व अन्य बुनियादी सुविधाओं को मुहैया कराने में लगा देंगे।
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