उर्वर भूमि के मालिक उद्यम कृषक सुन।
नींव के सृजक प्रभाकर श्रमिक सुन।
तेरे खून पसीने में तो सूरज है।
सुन्दर कायनात तेरी ही मूर्त है।
रीस तेरी कर सकता भी भगवान नहीं।
तेरे जैसा दुनिया में इन्सान नहीं।
कर्मठता का सारा तन्मय तेरा है।
अम्बर भीतर तेरे साथ सवेरा है।
तेरे नयनों से ही चांद सितारे हैं।
तेरे करके धरती पास नजारे हैं।
तुझ से ऊंची-सच्ची कोई शान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
धर्म तेरा है धरती, धरती जात तेरी।
सौहार्दयता में चढ़ती प्रभात तेरी।
कण-कण तेरा अपना कोई ना दूजा है।
श्रम तेरी में मन्दिर जैसी पूजा है।
कौन तेरी हिम्मत से कुर्बान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
तेरे सदके सूखे में खुशहाली है।
महक रही गुलशन की डाली डाली है।
पर्वत चीर दिखावें, कुण्ड़-नहर निकालें।
सहरा का सीना चीर समन्दर निकालें।
और किसी का ऐसा तो ईमान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
आविष्कारों के सिर ताज रखाए तूं।
चांद के ऊपर जाकर चांद सजाए तूं।
उन्नति का तू सच्चा सूत्राधर रहा।
तेरे में अलौकिक एक भंडार रहा।
तू अन्नदाता है तेरी पचहान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
मूल्य तेरा न पाए नेता रिश्वतखोर।
कदर तेरी पड़ जाती गर होते और।
तेरा खून-पसीना लूटा चोरों ने।
बाग में सुन्दर नाच रचाते मोरों ने।
तू नहीं कोई भोला तू नादान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
वैकुण्ठकी परिभाषा काशतकारी में।
कुंदन उगता तेरी कारगुजारी में।
मिट्टी तेरी पूजा मिट्टी भक्ति है।
तेरे सिर पर मानवता की शक्ति है।
तेरे बल के आगे ‘बालम’ बलवान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
बलविन्द्र बालम, गुरदासपुर
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