काम के लिए दर-दर की खा रहे ठोकरें
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फैक्ट्री मालिकों ने खड़े किए हाथ, काम बंद होने के चलते मजबूर
फरीदाबाद। लॉकडाउन के कारण कई दिहाड़ी मजदूरों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। लॉकडाउन के कारण कई मजदूर, रिक्शा चालक बेरोजगार हो चुके हैं। जी हां, कोरोना के प्रहार ने मजदूरों को बेजार कर दिया है। जिंदगी को चौराहे पर खड़ा कर दिया है। कई मीलों पैदल चल रहा है, कोई बीच में ही टूट रहा है। कोई भूख से लड़ रहा है, कोई सिस्टम से हार रहा है। किसी की नौकरी छूट गई, किसी के सपने टूट गए, कोई रोड पर रोटी मांग रहा है, कोई पापड़ बेच रहा है।
ईमानदारी से कमाते थे। घर का चूल्हा जलता था। पेट की भूख मिटती थी, लेकिन आज मजदूर वर्ग मुसीबत से जूझ रहा है। राम खिलावन, श्रवण, राजू, मोहन, आसिफ, मन्नू, राजा आदि मजदूरों ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि मालिक कहते हैं कि लॉकडाउन ज्यादा दिनों तक खींचेगा तो मुश्किल होगी। अब कुछ समय में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाएगा। रोज लेबर चौक पर आकर रोज कुआं खोदना और रोज पानी पीने का काम करते हैं, रोज इन्हें तलाश होती है एक काम की, जिससे वे दो वॉक़्त की रोटी अपने परिवार और पेट के लिए कमा सकें।
पापड़ बेचने वाले दिलजान और रिक्शा चालक विन्नू कहते हैं कि सरकार तो भईया ऊंचे पहुंच वालों की है, हमें तो खुद ही अपना बसेरा करना है। गर्मी के कारण दोपहर में कम बिक्री होती है और शाम होते ही पुलिस के डंडे पड़ने लगते हैं। घर में खाना बहुत मुश्किल से बन पा रहा है। बच्चों की स्थिति खराब है। जिंदा रहना है साहब तो कुछ तो करना ही होगा। रोड पर भीख मांग कर खाने से अच्छा है, ईमानदारी से कुछ कमा कर खाया जाए। जिंदगी की जंग में खुद को बचाये रखने के लिए मजदूर आज भी लड़ रहे हैं। हार कर बैठ जाने के बजाय नई राह भी निकाल रहे हैं। अब देखना यह होगा कि कब तक मजदूर यहीं रोटी का मोहताज होगा। कब तक दर-दर की ठोकर खाएगा।
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