नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। उच्चतम न्यायालय ने दो तेलुगू चैनलों-एबीएन आंध्र ज्योति और टीवी5-के खिलाफ राजद्रोह के मामले में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर सोमवार को रोक लगा दी, साथ ही यह भी कहा कि राजद्रोह की एक बार फिर व्याख्या करने का समय आ गया है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की अवकाशकालीन खंडपीठ ने कहा कि पहली नजर में ऐसा प्रतीत होता है कि आंध्र प्रदेश पुलिस की ओर से राजद्रोह के मामले में दर्ज प्राथमिकियां मीडिया की आजादी को कुचलने का प्रयास है।
न्यायालय ने एबीएन आंध्र ज्योति और टीवी5 की ओर से क्रमश: पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं – सर्वश्री सिद्धार्थ लूथरा और श्याम दीवान- की दलीलें सुनने के बाद कहा, ‘हमारा मानना है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए (राजद्रोह) और 153 (साम्प्रदायिक नफरत फैलाने) के प्रावधानों की व्याख्या करने की आवश्यकता है, खासकर प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों के नजरिये से। दोनों अधिवक्ताओं ने दलील दी थी कि सत्तारूढ़ वाईएसआरपी के बागी सांसद रघुराम कृष्णम राजू के प्रेस बयान प्रकाशित करने के लिए प्राथमिकियां दर्ज की गयी हैं। याचिकाकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश पुलिस की प्राथमिकियों को रद्द करने तथा शीर्ष अदालत के गत 30 अप्रैल के आदेश के उल्लंघन के लिए अवमानना का मामला चलाने का अनुरोध किया है।
क्या है पूरा मामला:
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत 30 अप्रैल को एक आदेश जारी किया था, जिसके अनुसार कोरोना के मामले के संबंध में की गयी शिकायतों के लिए नागरिकों के खिलाफ गिरफ्तारी और मुकदमे की कार्रवाई नहीं की जायेगी। न्यायालय ने अगले आदेश तक दोनों चैनलों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी। न्यायालय ने हालांकि पुलिस जांच पर रोक लगाने का अनुरोध यह कहते हुए ठुकरा दिया कि इस चरण में वह केवल कार्रवाई पर रोक लगायेगा।
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