वाट्सऐप ने भारत सरकार द्वारा तीन माह पहले निर्धारित किए गए नियमों के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दे दी है। उसने दलील दी है कि नए दिशा-निर्देशों का पालन संभव नहीं है, क्योंकि ये व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करते है। जबकि सरकार ने ये निर्देश निजता की रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए ही बनाए थे। दरअसल ये कंपनियां इसलिए सरकाaर को आंखें दिखा रही हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारें तथा उनके पहरुए अपनी छवि चमकाने के लिए इनका मनचाहा इस्तेमाल करते रहे हैं। चुनाव में भी इनका उपयोग-दुरुपयोग खूब होता है। जबकि देश के नेतृत्वकर्ता भलीभांति जानते है कि इन कंपनियों का मकसद केवल मोटा मुनाफा कमाना है। देश को नहीं भूलना चाहिए कि व्यापार के बहाने ही देश को फिरंगी हुकूमत ने गुलाम बना लिया था। अब ये कंपनियां नागरिकों का आर्थिक व मानसिक दोहन करने में लगी है।
करोड़ों की संख्या में देश के नागरिकों को प्रभावित करने वाला सोशल मीडिया जब बेलगाम, निरंकुश और अश्लील हो जाए तो उस पर लगाम लगाना ही देशहित है। इस सिलसिले में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया ओटीटी प्लेटफॉर्म और न्यूज पोर्टल्स को मर्यादित बने रहने के लिए अपेक्षित दिशा-निर्देश जारी किए थे। जिससे नेटफिलिक्स-अमेजन, गूगल, फेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे इंटरनेट माध्ययम अनर्गल सामग्री नहीं परोस पाएं। यदि कोई अनुचित सामग्री प्रसारित हो भी जाए तो शिकायत मिलने के बाद उसे चैबीस घंटे के भीतर हटाना जरूरी था। मियाद पूरी होने से पहले ही वाट्सऐप ने सरकार को उच्च न्यायालय में यह कहते हुए अपील दायर कर दी कि ‘नई गाइडलाइन भारत के संविधान प्रदत्त निजता के अधिकारों का उल्लंघन करती है। क्योंकि इसमें सामग्री के स्रोत व पहचान बताने की अनिवार्य शर्त जुड़ी है।’ वाट्सऐप व अन्य प्लेटफॉर्म एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन अर्थात एक कोने से दूसरे कोने तक सूचना को गुप्त रखने के सिद्धांत पर काम करता है। कंप्युटर की भाषा में इसे एन्क्रिप्टेड यानी फाइल को गोपनीय करके देखना कहा जाता है। इसी बिंदु को अदालत में चुनौती दी गई है। साफ है, वाट्सऐप उपयोगकतार्ओं की गोपनीयता को उजागार हो जाने का खतरा जताकर अदालत गया है। अर्थात सरकार यदि हर संदेश को जानना चाहती है तो यह एक तरह से जन निगरानी से जुड़ा मामला हो जाता है।
गोरांग महाप्रभुओं के सामने दंडवत होना हमारी पुरानी फितरत है। वह काला अथवा वर्णसंकर हो तो भी हम सरलता से सम्मोहित हो जाते हैं। ज्ञान के जिस कथित विस्तार को विदेशी सोशल मीडिया अपनी सेवाएं भारत पर थोप रहे हैं, उस परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट करना लाजिमी है कि भारत में ज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनीक और अनुसंधान की बजाय 52 फीसदी से भी ज्यादा लोग इंटरनेट का उपयोग केवल फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप इत्यादि के लिए करते हैं, जिसमें महज सतही जानकारियां होती हैं। इससे इतर बड़ी संख्या ऐसे प्रयोगकर्ताओं की है, जो महज अश्लील एवं नग्न वीडियो के लिए ही नेट का इस्तेमाल करते हैं। देश के अनेक नाबालिग पोर्नोग्राफी और नशे के अंतरराष्ट्रीय रैकेट से जुड़कर अपना जीवन बर्बाद कर चुके हैं। हालांकि सोशल मीडिया के हानिकारक व अराजक तत्वों को केंद्र सरकार ने जान लिया था, इसीलिए रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि इस मीडिया का गलत उपयोग हो रहा है। आतंकी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने तक के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, इसीलिए यह फेक न्यूज और अफवाहें फैलाने का सरल और कारगर माध्यम बन गया है। लेकिन उसी को हर क्षेत्र में विकास का पर्याय मान लेना बड़ी भूल है, जिसे सुधारने की दिशा में कठोर कदम उठाने की जरूरत है।
यदि अमेरिका और उसके महाप्रभुओं की अनुकंपा ही विकास के आधार होते तो चीन भी उनका अनुसरण कर रहा होता। फेसबुक के कर्ता-धर्ता जुकरबर्ग कई कोशिशों के बावजूद चीन में अपना धंधा स्थापित करने में नाकाम रहे हैं। जबकि जुकरबर्ग ने इस मकसद पूर्ति के लिए चीनी भाषा मंदारिन सीखी और अपनी पुत्री मैक्सी के जन्म से पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से आग्रह किया था कि वे उसके लिए कोई चाईनीज नाम सुझाएं। लेकिन चीन इन भावुक टोटकों से नहीं पसीजा। जबकि जुकरबर्ग की पत्नी प्रेसिला चान खुद चीनी-वियतनामी मूल की अमेरिकी नागरिक हैं। बावजूद इसके फेसबुक के लिए चीन के रास्ते बंद हैं।
भारत की उदारता का इन माध्यमों ने कितना लाभ उठाया है, इसका पता इस बात से चलता है कि यूरोपीय महासंघ की सर्वोच्च अदालत ने फेसबुक और गूगल द्वारा यूरोप से अमेरिका को डेटा हस्तांतरित करने पर रोक लगाई हुई है। किंतु हमारे यहां डाटा का उपयोग जारी है। फेसबूक के 40 करोड़ से भी ज्यादा प्रयोगकतार्ओं की सभी सूचनाएं, मसलन चित्र, वीडियो, अभिलेख, साहित्य जो भी बौद्धिक संपदा के रूप में उपलब्ध हैं, उन्हें किसी को भी हासिल कराने का अधिकार है। इन जानकारियों को कंपनियों को बेचकर फेसबुक खरबों की कमाई कर रहा है। इन्हीं सूचनाओं को आधार बनाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार को अपनी मुट्ठी में ले रही हैं। इसके अलावा हरेक खाते से फेसबुक को औसतन सालाना 10,000 रुपए की आमदनी होती है। फेसबुक के 53 करोड़, वाट्सऐप 53 करोड़, यूट्यूब 44.8 करोड, 21 करोड़ इंस्टाग्राम और ट्विटर के 1.75 करोड़ भाारतीय ग्राहक हैं। विडंबना देखिए ये सभी माध्यम भारत में आयकर और सेवाकर से मुक्त हैं।
– प्रमोद भार्गव
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