मूंगफली एक महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है, जो भारत के ऊष्णकटबंधीय क्षेत्रों में उगाने के लिए उचित मानी जाती है। मूंगफली (अरैकिस हाईपोगिआ) फलीदार और दानेदार प्रजाति की फसल है। इसे कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे अर्थनट्स, ग्राउंडनट्स, गूबर पीस, मंकीनट्स, पिगमीनट्स और पीनट्स आदि। इसकी दिखावट और बनावट के बावजूद मूंगफली एक गिरी वाली नहीं फलीदार फसल कहलाती है। मूंगफली विश्व की तीसरी सबसे महत्तवपूर्ण तेल वाली फसल है और भारत में यह सारा साल उपलब्ध होती है। यह प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत है, जोकि ज्यादातर बारानी क्षेत्रों में उगाई जाती है। भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू आदि मुख्य मूंगफली के उत्पादन क्षेत्र है।
जलवायु
- तापमान- 20 डिग्री सेल्सियस-30 डिग्री सेल्सियस
- वर्षा- 50-75 सेमी.
- बुआई के समय तापमान- 25 डिग्री सेल्सियस-35 डिग्री सेल्सियस
- कटाई के समय तापमान- 18 डिग्री सेल्सियस-25 डिग्री सेल्सियस
मिट्टी
इसकी खेती रेतली दोमट और अच्छे निकास वाली रेतली चिकनी मिट्टी में की जाती है। अच्छे जल निकास वाली गहरी और उपजाऊ मिट्टी, जिसका पीएच 6.5-7 हो, इस फसल के लिए उत्तम मानी जाती है। अच्छी मिट्टी के लिए स्पेन और साथ ही साथ प्रचलित किस्में, वर्जीनिया की किस्मों से ज्यादा लाभदायक है। भरी जमीनों में फलियां कम पाई जाती है। मूंगफली के बढ़िया अंकुरण के लिए 31 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे बढ़िया होता है। भरी और सख्त चिकनी मिट्टी मूंगफली के लिए अनुकूल नहीं है, क्योंकि इस मिट्टी में फलियों के विकास में मुश्किल आती है।
जमीन की तैयारी
पिछली फसल की कटाई के बाद, मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की जोताई करे और फिर समतल करें। आवश्यकता पड़ने पर बारानी हलातों के लिए तीसरी जोताई जून महीने या जुलाई के शुरू में करें। जोताई के लिए तवियों या हल का प्रयोग करेें जब खेत सदाबाहार नदीनों से प्रभावित हो, तो उस समय जोताई की जरूरत होती है सिंचित हलातों में सिंचाई के स्त्रोतों के अनुसार खेत को क्यारियों में बांट लें और आवश्यकता-अनुसार आकार के बैड बनाएें बिजाई से एक महीना पहले 5-7 टन मुर्गियों की खाद या 10 टन रूडी की खाद डालें। यह मिट्टी की बंतर और पौधे के विकास में सुधार करती है।
बिजाई का समय
बारानी हलातों में मूंगफली की बिजाई मानसून शुरू होने पर जून के अंत वाले हफ्ते या जुलाई के पहले हफ्ते में करें।
जितनी जल्दी हो सके बिजाई कर दें, क्योंकि बिजाई में देरी होने से पैदावार में कमी आ जाती है।
फासला
फसल की किस्म के आधार पर फासला करें जैसे कि सामान्य फैलने वाली किस्म(एम 522) के लिए कतारों के बीच का फासला 30 सैं.मी. और पौधों के बीच का फासला 22.5 सैं.मी. रखेें गुच्छेदार किस्में(एसजी 99, एसजी 84) फासला 30गुणा15 सैं.मी. रखेें
बीज की गहराई
बिजाई से लगभग 15 दिन पहले पूरी तरह विकसित और सेहतमंद फलियों में से गिरियां हाथों से निकाले सीड ड्रिल के साथ 8-10 सैं.मी. की गहराई पर बीज बोयें और 38-40 किलो प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें।
बिजाई का ढंग
बिजाई सीड ड्रिल के साथ की जाती है।
बीज की मात्रा
इसकी बिजाई के लिए 38-40 किलो बीज प्रति एकड़ में बोयें।
बीजों का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद और विकसित गुठलियों का प्रयोग करेें छोटी, सिकुड़ी हुई और बीमारी वाली गुठलियों का प्रयोग बिजाई के लिए ना करें। मिट्टी से पैदा होने वाली बिमारियों से बचाने के लिए 5 ग्राम थीरम या 2-3 ग्राम कप्तान या 4 ग्राम मैनकोजेब या करबोक्सिन 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से प्रति किलो बीज का उपचार करेें रासायनिक उपचार के बाद 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स से प्रति किलो बीज का उपचार करेें बीजों के उपचार द्वारा नए पौधों को जड़-गलन से बचाया जा सकता है।
फसली चक्र
सिंचाई के साधकों की मौजूदगी में मूंगफली-पिछेती खरीफ का चारा/गोभी सरसों+तोरियां/आलू/मटर/तोरियां/रबी की फसलें आदि फसली-चक्र के तौर पर अपनाई जा सकती है। एक ही खेत में लगातार मूंगफली न बोयें, क्योंकि इस तरह करने से मिट्टी से पैदा होने वाली बिमारियों का हमला बढ़ जाता है।
खाद
खादों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें। आवश्यकता अनुसार ही खादों का प्रयोग करें और खादों का अनावश्यक प्रयोग ना करें। 13 किलो यूरिया और 50 किलो सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड़ में डालें और अगर मिट्टी में पोटाश की कमी हो तो 10 किलो पोटाश प्रति एकड़ में डालें, साथ ही जिप्सम 50 किलो प्रति एकड़ में डालें। जिप्सम का छींटा दें और खादों को बिजाई के समय ड्रिल कर दें। जिप्सम के साथ फलियों की बनतर में विकास होता है और फलियों में दानों की मात्रा बढ़ जाती है।
जिंक की कमी होने पर पौधे का ऊपरी हिस्सा छोटा रह जाता है और हल्का पीला दिखाई देता है। जिंक की गंभीर कमी होने पर पौधे का विकास रुक जाता है और गुठलियां सिकुड़ जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए जिÞंक सल्फेट हैप्टाहाईड्रेट 25 किलो या जिÞंक सल्फेट मोनोहाईड्रेट 16 किलो प्रति एकड़ में डालें। यह मात्रा 2-3 साल के लिए काफी है।
पानी में घुलनशील खादें-
फलियों की पैदावार में सुधार लाने के लिए तत्वों के घोल की स्प्रे करें। यह घोल तैयार करने के लिए डीऐपी 2.5 किलो, अमोनियम सल्फेट 1 किलो और बोरेक्स 0.5 किलो को 37 लीटर पानी में मिलाकर पूरी रात रखेें अगली सुबह घोल को छान लें और लगभग 32 लीटर घोल को निकाल लेें फिर इसे 468 लीटर पानी में मिला लें, ताकि एक एकड़ के लिए 500 लीटर की स्प्रे तैयार हो जाएें स्प्रे करने के समय प्लेनोफिक्स140 मि.ली. को भी मिलाया जा सकता है। इसकी स्प्रे बिजाई से 25 और 35 दिन बाद करे।
खरपतवार नियंत्रण
बढ़िया पैदावार लेने के लिए पहले 45 दिन फसल को नदीनों से बचाने के लिए बहुत जरूरी है। खास तौर पर बिजाई से 3-6 हफ्ते बाद का समय बहुत ही नाजुक होता है। नदीनों के कारण आम-तौर पर 30% पैदावार कम हो जाती है और ध्यान ना देने पर यह 60% तक कम हो जाती है। इसलिए शुरूआती समय में मशीनों और रसायनों द्वारा नदीनों को रोका जा सकता है।
फसल में दो बार कसी से गोड़ाई करें, पहली बिजाई के 3 हफ्ते बाद और दूसरी पहली गोड़ाई के 3 हफ्ते बाद। फलियां बनने के समय गोड़ाई ना करेें नदीनों के अंकुरण से पहले फ्लूक्लोरालिन, 600 मि.ली. या पेंडीमिथालिन 1 लीटर को प्रति एकड़ में डालें और फी बिजाई से 36-40 दिन बाद एक बार हाथों से गोड़ाई करें। दूसरी गोड़ाई के समय जड़ों के साथ मिट्टी चढ़ाएं। यह मूंगफली की फसल के लिए एक जरूरी क्रिया है। बिजाई के 40-45 दिनों के बीच जड़ों के साथ मिट्टी चढ़ाने पर फलियों के संचार में आसानी होती है और इससे पैदावार में भी विकास होता है।
सिंचाई
फसल के अच्छे विकास के लिए मौसमी वर्षा के अनुसार 2 या 3 बार पानी लगाएं। पहला पानी फूल निकलने के समय लगाएं। खरीफ की ऋतु में यदि फसल को लंबे समय के लिए प्रभावित हो, तो फलियों के बनने पर सिंचाई करें। फलियों के विकास के लिए मिट्टी की किस्म के अनुसार 2-3 सिंचाइयां करें। मूंगफली की आसानी से पुटाई के लिए कुछ दिन पहले एक बार फिर से पानी लगाएं।
जिंक की कमी: इसकी कमी से पौधे के पत्ते गुच्छों में दिखाई देते हैं, पत्तों का विकास रूक जाता है और छोटे नजर आते हैं। इसकी पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे 7 दिनों के फासले पर 2-3 बार करेें
सल्फर की कमी: इसकी कमी से नए पौधों का विकास रूक जाता है और आकार में छोटे नजर आते हैं छोटे पत्ते भी पीले हो जाते हैे पौधे के पकने में देरी होती है। इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ पर बिजाई और खूंटी बनने के समय डालें।
फसल की कटाई
खरीफ की ऋतु में बोयी फसल नवंबर महीने में पक जाती है, जब पौधे एक जैसे पीले हो जाते है और पुराने पत्ते झड़ने शुरू हो जाते है। अंत-अप्रैल से अंत-मई में बोई गयी फसल मानसून के बाद अंत-अगस्त और सितंबर में पक जाती है। सही पुटाई के लिए मिट्टी में नमी होनी चाहिए और फसल को ज्यादा पकने ना देें जल्दी पुटाई के लिए पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की तरफ से तैयार किये गए मूंगफली की पुटाई करने वाले यंत्र का प्रयोग करेें पुटाई की हुई फसल के छोटे-छोटे ढेरों को कुछ दिन के लिए धुप में पड़े रहने दें।
इसके बाद 2-3 दिनों के लिए फसल को एक जगह पर इकट्ठा करके रोजाना 2-3 बार तरंगली से झाड़ते रहे, ताकि फलियों और पत्तों को पौधे से अलग किया जा सके फलियों और पत्तों को इकट्ठा करके देर लगा देें स्टोर करने से पहले फलियों को 4-5 दिनों के लिए धुप में सूखा लें। बादलवाही वाले दिनों में फलियों को अलग करके ऐयर ड्राइयर में 27-38त् सै. तापमान पर दो दिन के लिए या फलियों के गुच्छे को (6-8%) सूखने तक रहने दें।
कटाई के बाद
फलियों को साफ और छांटने के बाद बोरियों में भर दें और हवा के अच्छे बहाव के लिए प्रत्येक 10 बोरियों को चिनवा दें। बोरियों को गलने से बचाने के लिए बोरियों के नीचे लकड़ी के टुकड़े रख दें।
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