एक तरफ देश कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की मार झेल रहा है दूसरी तरफ महंगाई ने आम आदमी का कचूमर निकाल दिया है। थोक महंगाई दर 10.49 फीसद पर पहुंच गई है। दालें, कच्चे तेल, रसोई गैस के रेटों में वृद्धि हो रही है। मरीजों की बढ़ रही संख्या के कारण सरकारी अस्पतालों की बात छोड़िए, निजी अस्पतालों में भी जगह नहीं मिल रही। उपचार के लिए मरीजों को भारी खर्च वहन करना पड़ रहा है दूसरी तरफ सब्जियां, फलों और राशन की महंगाई से गरीब और मध्यम वर्ग को दो-चार होना पड़ रहा है। सब्जियां, फलों की समस्या तो बहुत ही जटिल है। भले ही प्रशासन ने राशन, फलों और सब्जियों के रेट तय किए हैं लेकिन दामों को काबू रखना भले मुश्किल है लेकिन जरूरी है। वास्तव में दुकानदारों को सब्जियां बेचने के लिए जो रेट दिए गए हैं, उससे भी महंगे रेट पर दुकानदार खुद मंडी से खरीद रहे हैं। जब सब्जी उत्पादक माल लेकर मंडी पहुंचते थे तब रेट आधे भी नहीं मिलते थे।
इसीलिए किसानों का सब्जी की खेती से मोह भंग हो गया। कई किसानों ने सब्जियां नष्ट कर दीं, कईयों ने फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। उधर ट्रकों की उपलब्धता कम हो रही है, मंडी में सप्लाई न होने के कारण रेट बढ़ने स्वाभाविक हैं। यह तो सरकारों की कमजोरी है, जब महामारी भयानक रूप धर रही थी तब सब्जियों की सप्लाई में बाधा को देखा जाना चाहिए था। सरकार को इस मामले में लंबे समय तक की कोई योजना बनानी चाहिए थी। महज दुकानदारों के लिए बिक्री रेट तय करना उचित नहीं। दरअसल व्यवस्था में बड़ी कमी यह है कि फैसले धड़ाधड़ ले लिए जाते हैं, परंतु जमीनी कार्रवाई होने तक दो-तीन दिनों में ही स्थिति वहीं पुरानी वाली हो जाती है। दरअसल आवश्यकता इस बात की है कि सरकार कोरोना पीड़ित परिवारों की मदद करे। लॉकडाउन के कारण रोजगार पहले ही दम तोड़ रहे हैं। इन परिस्थितियों में सरकार को डीजल के रेटों में कटौती कर महंगाई को कम करना चाहिए।
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