वर्तमान में देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस नामक एक ऐसे दुष्चक्र में फंसी है जिससे निकलने के लिए असाधारण कदमों और उपायों की आवश्यकता है। जहां एक ओर कोरोना वायरस की वजह से मानव जीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त एवं प्रभावित हुआ है, वही दूसरी तरफ यह प्रकृति के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। हम केवल सिक्के के एक पहलू के आधार पर कोरोना वायरस को महामारी मान रहे हैं, परंतु यदि दूसरे पहलू को देखा जाए तो यह पारिस्थितिकी तंत्र, प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए तो वरदान सिद्ध हो रहा है। पूरी दुनिया जिस पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और चिंता की खातिर बड़ी-बड़ी संगोष्ठियां और कार्य योजनाएं बनाती रही, वैश्विक चिन्तन होता रहा, अरबों रुपये भी खर्च हो चुके हैं पर फिर भी कुछ खास नतीजा नहीं निकला, वहीं यह काम कोरोना वायरस की बदौलत अब सुधरने लगा है।
इंसानियत पर भारी कोरोना ने बड़ी सीख और ज्ञान भी दिया। प्रकृति ने हम इंसानों को जीवन-यापन के लिए एक से बढ़कर एक संसाधन दिए, मगर अपने लालच एवं स्वार्थ के चलते इंसान सबकुछ से निर्वासित हो गया और हालात ऐसे बन गए है कि उसे अपने-अपने घरों में बंद होकर जीना पड़ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर देश में कहर बरपा रही है, इसके चलते मानवीय क्रियाएं ठप्प पड़ चुकी है और इसका प्रत्यक्ष लाभ प्रकृति को मिल रहा है। वातावरण स्वच्छ और निर्मल हो रहा है, पानी, नदियां, हवा, जंगल, भूमि एवं पूरा पर्यावरण खिलखिला रहा है। हवा शुद्ध होने से आसमान भी साफ दिखने लगा है। कुछ हद तक पक्षियों का कलरव दुबारा गूंजने लगी है। सड़कें प्रदूषण रहित हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से कोरोना वायरस के कारण यह पहला मौका है जब पृथ्वी से जहरीली गैसों का उत्पादन बेहद कम हुआ हो। भूवैज्ञानिकों के मुताबिक अब पृथ्वी उतनी नहीं कांप रही जितनी पहले कांपती थी।
ये भूवैज्ञानिक दृष्टि से एक बड़ा अवसर है। भूकंप वैज्ञानिकों की कहना है कि 2020 में लगे लॉकडाउन के कारण दुनिया भर में कम हुए ध्वनि प्रदूषण के चलते वे बहुत छोटे-छोटे भूकंप को भी मापने में सफल सिद्ध हो रहे हैं, जबकि इससे पहले ये भी बड़ी कठिनाई से संभव हो पाता था। इस महामारी ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि संकट की घड़ी में सारी दुनिया एक साथ खड़ी होकर एक-दूसरे का साथ देने के लिए तैयार है। तो फिर क्या यही जज्बा, जोश और इच्छा शक्ति हम पर्यावरण बचाने के लिए जाहिर नहीं कर सकते? हमें विश्वास है इस समय का अंधकार हम स्वच्छ और हरे-भरे वातारण से मिटा देंगे। आज जब हम घरों में बैठे हैं तो हमारे पास सलीके से सोच-विचार, चिंतन करने का पर्याप्त समय है। हमें भावी पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्रीय खतरों से निपटने के लिए, आज यह उपयुक्त समय है जब हमें प्रकृति के लिए कुछ करने की जरूरत है, नहीं तो हमें इसके खतरनाक परिणाम जरूर देखने को मिलेंगे।
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