जानें, प्रेस की स्वतंत्रता क्या है
आज वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे है। प्रेस की आजादी को लेकर 3 मई को संयुक्त राष्टÑ महासभा ने वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे घोषित किया। दुनिया भर में पत्रकारिता को लेकर हो रही चिंताओं और चुनौतियों के बीच पत्रकारिता के स्वरूप और चरित्र बदलाव आया है। देश में भी पत्रकारिता के उतार चढ़ाव के दौर को बेहद करीब से देखा और महसूस किया है। राजनीति, अपराध, पूंजीवाद आदि के आपसी हितों के टकराव बीच आगे बढ़ती मीडिया को भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। दुनिया भर की सरकारों को यह याद दिलाना है कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की रक्षा और सम्मान करना इसका कर्तव्य है। लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उनको बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
आज की बात करे तो कोरोना काल में दुनिया भर में प्रेस की भूमिका अहम हुई है। कोरोना से जुड़ी गलत जानकारी को फैलने से रोकने के लिए प्रेस अहम भूमिका निभा रहा है। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र भी भ्रामक सूचनाओं और गलत जानकारी, नफरत भरे संदेशों और बयानों से मुकाबला करने के लिए कोशिश कर रहा है। इस बीच वैश्विक महामारी से मीडिया पर हुए असर के आकलन के लिए एक सर्वेक्षण कराया गया जिसमें 125 देशों के 14 हजार पत्रकारों और समाचार प्रबंधकों ने हिस्सा लिया। इस सर्वे को पत्रकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय केन्द्र (आईसीएफजे) और कोलंबिया विश्वविद्यालय ने साझा रूप से करवाया। आईसीएफजे की प्रमुख जॉयस बारनेथन के मुताबिक मीडिया, विज्ञापन से हासिल होने वाले राजस्व पर निर्भर है. सर्वे में 40 प्रतिशत संस्थानों ने 50 से 75 फीसदी की गिरावट दर्ज होने की बात कही है।
मीडिया पर है व्यावसायीकरण का दबाव
कई वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि मीडिया आज व्यावसायीकरण के दौर से गुजर रहा है। नई तकनीक के दौर में अखबारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। इस प्रतिस्पर्धा के कारण खर्चें बढ़े हैं। इन खर्चों को पूरा करने के लिए ज्यादातर अखबार या मीडिया संस्थान सरकार और बड़ी कंपनियों पर निर्भर हुए हैं। इन कंपनियों पर निर्भरता ने उनकी आजादी को लेकर उन्हें समझौता करने को विवश किया है। हालांकि इन परिस्थितियों के बीच भी कई पत्रकार समझौता नहीं करते। उनके भीतर जिद्दीपन उसे हर खबर जनता के सामने लाने को प्रेरित करता है। वह खतरे उठाकर भी अपना दायित्व निभाता है। यह अलग बात है कि उसे समाज, प्रशासन और सरकार से सहयोग नहीं बल्कि उपेक्षा मिलती है।
क्या सच में प्रेस फ्रीडम है
वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं। बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वे फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं। विभिन्न देशों की सरकारें भी विभिन्न कानून लाकर प्रेस पर काबू पाना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत सरकार ने हाल ही में आॅनलाइन मीडिया वेबसाइट पर निगरानी रखने के लिए नया कानून पेश किया है। इसके तहत सरकार आॅनलाइन कुछ भी छपने पर नियंत्रण करना चाहती है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का कारण
भारत सहित कई देशों से पत्रकारों के ऊपर हुए अत्याचारों की खबर आती रहती हैं। इसके अलावा मीडिया हाउस के एडिटर, प्रकाशकों और पत्रकारों को डराया जाता है। इन्हीं सभी चीजों को देखते हुए हर साल प्रेस की आजादी का दिन मनाया जाता है।
गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के दिन गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार दिया जाता है। गिलेरमो कानो कोलंम्बिया के अखबार एल एस्पक्टाडोर के संपादक थे, उन्होंने दुनिया के अब तक के सबसे बड़े ड्रग माफिया पाब्लो एस्कोबार के अपराधों के विरूद्ध पत्रकारिता करते हुए अपनी जान दे दी थी। यह पुरस्कार उस संस्थान के व्यक्ति को दिया जाता है जो प्रेस की फ्रीडम के लिए बड़ा कार्य करता है। इसके साथ ही प्रेस स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों और यूनेस्को के सदस्य राज्यों द्वारा नाम प्रस्तुत किए जाते हैं।
21वीं शताब्दी में आज भी लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा और अनभिज्ञ है
भारत जैसे विकासशील देशों में मीडिया पर जातिवाद और सम्प्रदायवाद जैसे संकुचित विचारों के खिलाफ संघर्ष करने और गरीबी तथा अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा और अनभिज्ञ है, इसलिये यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाएं और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए, ताकि वे सजग भारत का हिस्सा बन सकें।
क्यों मनाया जाता है?
दुनिया भर के कई देश पत्रकारों और प्रेस पर अत्याचार करते हैं। मीडिया संगठन या पत्रकार अगर सरकार की मर्जी से नहीं चलते हैं तो उनको तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। मीडिया संगठनों को बंद करने तक के लिए मजबूर किया जाता है। उनको आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं जैसे उन पर जुर्माना लगाना, आयकर के छापे, विज्ञापन बंद करना आदि। संपादकों, प्रकाशकों और पत्रकारों को डराया-धमकाया जाता है।
उनके साथ मारपीट भी की जाती है। अगर इससे भी वे बाज नहीं आते हैं तो उनकी हत्या तक करा दी जाती है। ये चीजें अभिव्यक्ति की आजादी के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा हैं। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए दुनिया भर में प्रेस की आजादी का दिन मनाया जाता है। इस मौके पर नागरिकों को बताया जाता है कि कैसे प्रेस की आजादी को छीना जा रहा है। साथ ही सरकारों को भी जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित किया जाता है।
पहली बार कब मनाया गया?
1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए एक पहल की थी। उन्होंने 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों से संबंधित एक बयान जारी किया था जिसे डिक्लेरेशन आॅफ विंडहोक के नाम से जाना जाता है। उसकी दूसरी जयंती के अवसर पर 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया। तब से हर साल 3 मई को यह दिन मनाया जाता है।
भारत के पिछड़ने का यह सिलसिला कई वर्षों से जारी
दुनिया भर में प्रेस की आजादी पर नजर रखने वाली संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, 2020 रिपोर्ट जारी की थी। इस वार्षिक रिपोर्ट में भारत दो पायदान नीचे खिसक गया है। प्रेस की आजादी के मामले में भारत जहाँ पिछले वर्ष 140वें पायदान पर था, वहीं इस वर्ष 142वें पायदान पर आ गया है। हालाँकि भारत के पिछड़ने का यह सिलसिला कई वर्षों से जारी है। वर्ष 2016 में भारत जहाँ 133वें स्थान पर था, वहीं 2017 में 136वें, 2018 में 138वें, 2019 में 140वें और अब 2020 में 142वें पायदान पर है। वर्ष 2014 में 140वें पायदान पर होने के बाद वर्ष 2016 में 133वें पायदान पर आना प्रेस की आजादी के लिये एक शुभ संकेत जरूर था लेकिन उसके बाद भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट से सवाल खड़े होने स्वाभाविक हैं।
मीडिया विनियमन हेतु न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के दिशा-निर्देश
- रिपोर्टिंग में निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता: सत्यता और संतुलन बनाए रखना टी.वी समाचार चैनलों का उत्तरदायित्व है।
- तटस्थता सुनिश्चित करना: टी.वी समाचार चैनलों को किसी भी विवाद या संघर्ष में सभी प्रभावित पक्षों, हितधारकों और अभिकर्ताओं से समानता का व्यवहार कर तटस्थ रहना चाहिये ताकि वे अपना विचार प्रस्तुत कर सकें।
- अपराध और सुरक्षा उपायों पर रिपोर्टिंग करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अपराध और हिंसा का महिमामंडन न किया जाए।
- महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध हिंसा या उत्पीड़न का चित्रण: समाचार चैनलों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी महिला, बालिका या किशोर, जो यौन हिंसा, आक्रामकता, आघात से पीड़ित हैं अथवा इसका साक्षी रही/रहा है, को टी.वी पर दिखाने के दौरान उनकी पहचान को उजागर न किया जाए।
- निजता का सम्मान करना: चैनल को व्यक्तियों के निजी जीवन या व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के नियम का पालन करना चाहिये, जब तक कि इस तरह के प्रसारण के स्पष्ट रूप से स्थापित वृहद और अभिज्ञेय सार्वजनिक हित न हों।
प्रेस की आजादी में आ रही कमी के मूल कारण
- पिछले एक दशक में जिस तरह प्रेस की आजादी में कमी आई है उससे यह पता चलता है कि प्रेस की आजादी का आकलन जिन संकेतकों पर किया जाता है उनकी स्थिति दिनोंदिन बिगड़ रही है। इसलिये जरूरी है कि इन संकेतकों पर ही गौर किया जाए।
- अगर बहुलवाद के स्तर की बात करें तो इससे मीडिया में अपने विचारों को प्रस्तुत करने की सीमा का पता चलता है लेकिन हाल के दिनों में मीडिया पर ईमानदारी से रिपोर्टिंग न करने के आरोप लगते रहे हैं। इसे जरूरी मुद्दों की बजाय गैर-जरूरी मुद्दों पर बात करने की मीडिया की प्रवृत्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है।
- कानूनी ढाँचे की बात करें तो प्रत्यक्ष रूप से पत्रकारिता पर नियंत्रण करने के लिये वर्तमान में कोई ठोस कानून तो नहीं है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से कुछ कानूनों में प्रेस पर नियंत्रण के प्रावधान जरूर हैं।
- इसके अलावा, प्रेस की आजादी में मीडिया का निगमीकरण भी एक बड़ी रुकावट है। ज्यादातर मीडिया हाउसेज की कमान अब उद्योगपतियों के हाथों में चले जाने से सच्ची पत्रकारिता के बजाय अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाना प्रेस की प्राथमिकता हो गई है। इसे लोकतंत्र की विडंबना ही कहेंगे कि जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है वह मीडिया आज पूंजीपतियों का हिमायती बनता दिख रहा है।
पत्रकार भी अग्रिम पंक्ति के योद्धा : उपराष्ट्रपति
- विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की दी शुभकामनाएं
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने मीडिया समुदाय को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि उन्हें पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति कटिबंध रहना चाहिए। नायडू सोमवार को यहां जारी एक संदेश में कहा कि सूचना क्रांति के इस दौर में पत्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और भरोसेमंद तथा पुष्ट तथ्यों को सामने लाते हैं। वे पूरे समाज को गलत सूचनाओं से भी बचाते हैं। नायडू ने कहा, ‘प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर मीडिया से जुड़े सभी भाई बहनों को बधाई।
स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है।’ उन्होंने कहा कि महामारी के इस दौर में पत्रकार भी अग्रिम पंक्ति के योद्धा रहे हैं और उन्होंने प्रशंसनीय कार्य किया है। देश के पत्रकारों ने जोखिम उठाकर लोगों तक लगातार प्रमाणिक और सही जानकारी पहुंचाई है तथा लोगों को कोविड-19 सम्यक व्यवहार अपनाने के लिए शिक्षित किया है। इस अवसर पर नायडू ने पत्रकारों से पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों सत्यता, तथ्यपरकता, सटीकता, निष्पक्षता और स्वतंत्रता के प्रति कटिबद्ध रहने का आह्वान किया।
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