देश इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। एक तरफ संक्रमण के मामले हमारे अनुमानों से कहीं अधिक दर से बढ़ रहे हैं तथा दूसरी तरफ हमारे अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में बिस्तरों, दवाओं और आॅक्सीजन सिलेंडरों की उपलब्धता नहीं है। ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि कब हमें अस्पताल जाने की जरूरत है और कब हम घर पर ही संक्रमण से मुक्त हो सकते हैं। संकट की इस घड़ी में सिंगापुर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश मदद के लिए आगे आए हैं। लेकिन इस संकट पर अमेरिका की चुप्पी सबको हैरान कर रही थी जबकि भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है। यहां तक कि अमेरिका ने भारत में वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने से भी इनकार कर दिया था। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि भारत में फैले व्यापक कोरोना संक्रमण के इस दौर में हम और मजबूती से भारत के साथ खड़े हैं। हम इस मामले में अपने साझेदार भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
हम जल्द ही भारत के लोगों और भारतीय हेल्थकेयर हीरो के लिए अतिरिक्त सहायता मुहैया कराएंगे। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी कहा कि भारत में कोरोना संकट को लेकर अमेरिका बहुत चिंतित है। हम अपने दोस्त और सहयोगी भारत की मदद की दिशा में काम कर रहे हैं जिससे वे इस महामारी का मुकाबला बहादुरी से कर सकेंगे। अमेरिका के दो शीर्ष अधिकारियों के बयान के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि बाइडेन प्रशासन कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा सकता है। हालांकि अमेरिका ने टीके बनाने में काम आने वाली करीब 37 वस्तुओं का निर्यात रोक दिया ताकि अमेरिका में फाइजर, बायोएनटेक और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों के टीके जोरशोर से बनाए जा सकें। ये खास चीजें यूरोप की कंपनियां भी बनाती हैं, लेकिन वे बड़ी सप्लायर नहीं हैं। लिहाजा भारत और यूरोप में टीके बना रही कंपनियां दिक्कत में फंस गईं।
कोविशील्ड बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने बाइडेन से निर्यात खोलने की गुहार लगाई, तो कोवैक्सीन बना रही भारत बायोटेक के सीएमडी डॉ कृष्णा एल्ला ने भी चिंता जताई। अपील विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी की और कहा कि भारत दुनिया की मदद करता है तो अब दुनिया को भारत की मदद करनी चाहिए। लेकिन अमेरिकी ने टीका निर्माण के कच्चे माल से निर्यात प्रतिबंध हटाने से साफ इनकार कर दिया था। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि बाइडेन प्रशासन का पहला दायित्व अमेरिका के लोगों की जरूरतों का ध्यान रखना है। अभी अमेरिका अपने लोगों के महत्वाकांक्षी टीकाकरण के काम में लगा है।
अमेरिका के पास टीके की जरूरत से ज्यादा अतिरिक्त खुराक हैं जिनका इस्तेमाल कभी नहीं किया जाना है। अमेरिका में टीकाकरण तेजी से चल रहा है और वहां चार जुलाई तक पूरी आबादी को टीका लगाने का काम पूरा हो जाएगा। यही स्थिति यूरोप के कई अन्य देशों की है। अब ऐसा लग रहा है कि अमेरिका अब अपने रंग में वापिस आ गया है। उसको केवल अमेरिकी लोगों से मतलब है, दुनिया के जीने मरने से कोई लेना देना नहीं है। अच्छा है कि अमेरिका समय रहते यह बात समझ ले कि महामारी से जंग अकेले-अकेले नहीं, मिलकर लड़नी होगी क्योंकि एक भी व्यक्ति असुरक्षित रह गया तो कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा।
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