यह समय सख्ती का है और यदि सरकार के प्रति देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है, तो यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं। कोरोना के बढ़ते मामले और उसके साथ ही, इलाज, दवाओं और आॅक्सीजन के बढ़ते अभाव से निपटने के लिए सिवाय सख्त रुख अपनाने के कोई उपाय नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके पूछा है कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार के पास क्या नेशनल प्लान है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने, उसके वितरण की गति तेज करने और स्वास्थ्य सुविधाओं तक उसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए तेज गति से काम करने की जरूरत पर बल दिया है। ऑक्सीजन की आपूर्ति को अबाध बनाना सबसे जरूरी है। उच्च अधिकारियों को जमीनी हकीकत नजर आनी चाहिए। अब बंद कमरों में बैठकर संवाद करने या भाषण देने का कोई विशेष अर्थ नहीं है।
कोरोना महामारी हमें बीमारियों से उत्पन्न उस भयावह स्थिति की याद दिलाती है, जिसे हम रोक नहीं सकते। लेकिन यह भी सच है कि कोविड टीका के कारण ही इस महामारी को समाप्त करने और जीवन के पुनर्निर्माण का एक तरीका अब हमारे पास उपलब्ध है। बीमारी की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लाशें जलाने और दफनाने के लिए जगह कम पड़ने लगी है। ऐसी परिस्थिति में सरकार और व्यवस्था के प्रति अविश्वास का प्रदर्शन स्वयं को व समाज को खतरे में डालने जैसा है। ऐसे में संयम और सतर्कता ही ऐसे तरीके हैं, जिससे हम महामारी के महाजाल को काट सकते हैं। नेता लोग यदि किन्हीं दो-तीन अस्पतालों का भी मुआयना कर लें तो वस्तुस्थिति सामने आ जाएगी। बड़े नेताओं को सीधे जुड़कर काम करना होगा। केवल कागजों पर इंतजाम कर देना किसी अपराध से कम नहीं है। आदेशों-निर्देशों को जमीन पर उतारना होगा।
कोरोना की दवाइयों, इंजेक्शनों और अस्पताल के बैड के लिए जो कालाबाजारी चल रही है, वह मानवता के माथे पर कलंक है। अभी तक एक भी कालाबाजारी को चौराहे पर सरेआम नहीं लटकाया गया। क्या हमारी सरकार और हमारी अदालत के लिए यह शर्म की बात नहीं है? होना तो यह चाहिए कि इस आपातकाल में, जो भारत का आफतकाल बन गया है, कोरोना के टीके और उसका इलाज बिल्कुल मुफ्त कर दिया जाए। यह अच्छी बात है कि हमारी सेना और पुलिस के जवान भी कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान कर रहे हैं। यदि महामारी इसी तरह बढ़ती रही तो कोई आश्चर्य नहीं कि अर्थव्यवस्था का भी भट्ठा बैठ जाए और करोड़ों बेरोजगार लोगों के दाना-पानी के इंतजाम के लिए भी संपन्न राष्ट्रों के आगे हमे गिड़गिड़ाना पड़े। इस नाजुक मौके पर यह जरूरी है कि हमारे विभिन्न राजनीतिक दल आपस में सहयोग करें और केंद्र तथा राज्यों की विपक्षी सरकारें भी सांझा रणनीति बनाएं। एक-दूसरे की टांग खींचना बंद करें। आपातकाल में सिर्फ विपक्षी नेता तंग थे लेकिन इस आफतकाल में हर भारतीय सांसत में है।
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